,*कुछ घंटे तो गुजारे गांधी सागर तालाब में*
*”गांधी छाप” मशीन हैं “गांधी सागर तालाब”*
*सुशील चौहान*
भीलवाड़ा. लो साब हर बार की तरह *नए हुक्म* ने भी गांधी सागर तालाब देख लिया। घंटों का काम मिनिटों में कर लिया। वहां *बदबूदार हवा* हैं, कचरे के ढेर है, *झुग्गी के झुंड* है, *अतिक्रमण* की बाहर हैं। लेकिन ये *नए हुक्म* को *नहीं दिखाया* गया।हुक्म के दौरे से पहले ही *सड़क चमक* गई और हो गया निरीक्षण।
नए हुक्म आए और गांधी सागर तालाब न जाएं यह तो हो नहीं सकता। परम्परा अनुसार जो नए हुक्म आए वो आते ही गांधी सागर तालाब, महात्मा गांधी चिकित्सालय सहित शहर के अन्य स्थानों का निरीक्षण करते हैं, यानी *शहर की परिधि को नापते* हैं। होता कुछ नहीं।अब भाई *बीस साल तो मुझे* हो गए शहर में पत्रकारिता करते। हाकिम आते हैं और निरीक्षण कर वापस नए मुकाम पर चले गए।ना गांधी सागर तालाब सुधरा और ना ही महात्मा गांधी चिकित्सालय। नए हुक्म के आने की सूचना पहले ही चिकित्सालय व परिषद,नगर विकास न्यास के बरसों से जमें अधिकारियों को मिल जाती हैं और चमक जाते सब स्थान।
नए हुक्म का मंगलवार को शहर निरीक्षण का कार्यक्रम था तो परिषद के आला अधिकारियों ने सोमवार दोपहर तीन बजे सफाई करवा टीपू सहित गांधी सागर तालाब के आस-पास के क्षेत्र को सफेद चदर की तरह चमका दिया। जिससे लगे रोज ऐसी ही सफाई रहती हैं शहर व गांधी सागर, महात्मा गांधी चिकित्सालय की। जबकि महिनों कचरा नहीं उठता, मिट्टी के ढेर फुटपाथ की शोभा बने रहते हैं।
जितने भी हाकिम आए सब गांधी सागर तालाब आए। मगर गांधी सागर तालाब की व्यवस्था *ठंस से मस* नहीं हुई। जो बीच में टापू बनाया गया वो आज तक चमन नहीं हुआ। पूर्व हाकिम शुचि त्यागी जो अब जिले की प्रभारी सचिव हैं। उन्होंने जरुर टापू को ठीक करने में *रुचि* दिखाई मगर साकार नहीं हो सकी। टापू कल भी वीरान था टापू आज भी वीरान हैं। नए हुक्म को दिखाने के लिए मंगलवार को अतिक्रमण हटाए। तालाब के फुटपाथ पर सट्टेबाजी का खेल बदस्तूर जारी हैं। एक समुदाय के लोगों ने अस्थाई आशियाने बना लिए। उनका सुलभ शौचालय गांधी सागर तालाब ही हैं और आस पास के क्षेत्र का *डम्पिंग याड* भी यह तालाब ही हैं। एनजीटी की टीम आती हैं तो *तथाकथित स्वयं भू पर्यावरण विद्* फोटो खिंचवाने आ जाते और सुबह समाचार पत्रों की सुर्खियां बन प्रशासन के सामने अपनी *दुकानदारी* चलाते हैं। जबकि परिषद की ओर से तालाब में गंदगी डालने से रोकने के लिए लोहे की रैलिंग लगवाई गई वो अब किसी कबाड़ी की दुकान या लोहा कम्पनी की शान बन गई।
गांधी सागर तालाब तो नगर परिषद में अब तक आसीन अधिकारियों और सभापतियों के लिए *सफेद हाथी* साबित हुआ। कितना पैसा तालाब पर खर्च हुआ यह *श्री नाथजी* ही जानें। शास्त्री नगर का गंदा पानी गांधी सागर की शान बन गया। इसके अलावा आस-पास घरों की वो मूर्तियां, प्रतिमाएं जिन्हें सुबह-शाम पूजते हैं वो फट जाने या खंडित होने पर तालाब के आगोश में समा जाती हैं। परिषद के अधिकारी शास्त्री नगर के गंदे पानी को आज दिन तक नहीं रोक पाएं।
मजे की बात तो यह हैं कि तीन दिन पहले *स्वच्छता सवेक्षण* 2023 की *टीम ने गांधी सागर तालाब, नेहरू तलाई साफ सफाई के लिए *सौ प्रतिशत अंक* दिए हैं। जबकि आज नए हुक्म ने बदबू और गंदगी को लेकर नाराजगी जताई। लगता हैं केन्द्रीय टीम ने घर बैठे ही *स्वच्छता का प्रमाण* पत्र देने के लिए परिषद के अधिकारियों की ओर से दी गई रिपोर्ट पर ही *अपनी चिड़िया* बिठा दी।
शहरवासी की *आस* हैं कि *नए हुक्म नमित जी* से शहर व गांधी सागर तालाब के *निमित* क्या करते हैं *?*। युवा हुक्म से शहरवासियों को यातायात व्यवस्था में सुधार, अतिक्रमण से मुक्ति, भू-माफियों से निजात दिलाने की काफी उम्मीदें हैं।
– *स्वतंत्र पत्रकार*
– *पूर्व उप सम्पादक, राजस्थान पत्रिका, भीलवाड़ा*
*वरिष्ठ उपाध्यक्ष, प्रेस क्लब,भीलवाड़ा*
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