*”चाय” से ज्यादा गरम रही “केतली”…..*
*निर्वाचित से ज्यादा बोले *रहमोकरम वाले*
*नगर परिषद बैठक का ‘सार”*
*सुशील चौहान*
भीलवाड़ा. नगर परिषद की मह्त्वपूर्ण बैठक में इस बार भी वहीं हुआ l *टुच्ची भाषा*. एक दूसरे को *चोर* कहने से भी नहीं चूके। अब पूरी बैठक के बाद भी ये तय नहीं हो सका कि *चोर कौन है और साहूकार कौन*।.
बस इस बार की खासियत ये रही कि बोलने और हुड़दंग कर हीरो और हीरोइन बनने मे मनोनीत होकर आए या यूं कहे कि किसी के *रहमोकरम* पर पार्षद बने लोग ही माहौल को गर्म रखे हुए थे।यानी निर्वाचित पार्षदों से ज्यादा *मनोनीत* का बोलबाला था। हो भी क्यों नहीं, उन्हें भी पता है कि धमाल करने की फोटो बड़े अखबारों में उन्हीं की लगनी है। बस फिर क्या था *खूब हंगामा* किया।
अब जरा मेरे जानकार पाठक को बता दूं कि *चाय* का मतलब *निर्वाचित पार्षद और *केतली* का मतलब अपने आंकाओं के *रहमो-करम* से बने पार्षद।
शुक्रवार को हुई नगर परिषद की साधारण सभा हमेशा की तरह हंगामेदार ही रही, और क्यों नहीं रहें हर पार्षद चाहता था कि अखबारों में उसकी फोटो छपे। इसमें बाजी मारी अपने राजनैतिक आंकाओं के रहमो-करमों से बनें पार्षदों ने। बैठक शुरू होते ही सिलसिला शुरू हो गया। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का। मामला उस समय ज्यादा गरमा गया। जब सहवृत पार्षद योगेश सोनी ने जोश दिखाते हुए एक निर्दलीय पार्षद सहित सभी पार्षदों को *चोर* कह दिया तो निर्दलीय पार्षद उठकर सोनी की तरफ दौड़े तो दोनों ओर के पार्षद आपस में उलझे गए नौबत हाथापाई तक पहुंच गई यह तो सभापति राकेश पाठक ने बीच-बचाव किया, लेकिन कांग्रेसी व सहवृत पार्षद नहीं माने तो सभापति पाठक भी अपना आपा खो बैठे और सहवृत पार्षद सोनी को कह दिया *साले तू चोर है*।बस फिर माहौल गरमा गया। आखिर में जुम्मा जुम्मा बीस मिनट पहले सदन के प्रतिपक्ष ने नेता कार्यभार संभालने वाले धमेंद्र पारीक को अपनी पार्टी के पार्षदों की अभ्रद्र भाषा का इस्तेमाल करने पर सदन में माफी मांगनी पड़ी। प्रतिपक्ष के नेता पारीक पर *सिर मुड़ाते ओले पड़े* वाली कहावत चरितार्थ हुई। यानी सदन की पहली ही बैठक की शुरुआत माफी से हुई।
वैसे प्रतिपक्ष के नेता पारीक जो स्वयं ठेकेदार भी हैं अपनी पार्टी की तरफ़ *कम* और सभापति की *गोद* में बैठे ज्यादा नजर आए।
सदन की कार्यवाही से लगा कि सभी पार्षद केवल और केवल अपने हितों की बातों पर ध्यान दें रहें थे। कोई भी पार्षद तैयारी करके नहीं आए। कांग्रेस में दो पूर्व सभापति ओम नराणीवाल और मंजू पोखरना जैसे सशक्त नेता होने के बाद भी पार्टी सत्ता पक्ष के सामने *बौनी* ही नजर आई।
अब जरा मीटिंग के एजेंडे पर बात करें। किसी भी पार्षद ने प्रस्तावों के बारे यह जानने की कोशिश नहीं की कि इसका असर क्या होगा । बस पास पास करके प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। सबसे महत्वपूर्ण प्रस्ताव था चिंरजीवी योजना की प्रीमियम राशि परिषद की ओर से वहन करना । सबने इसे बिना हकीकत जाने पास तो कर दिया । प्रस्ताव में यह भी था कि इसे राज्य सरकार की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। इस प्रस्ताव पर * *ना नौ मण तेल होगा ना राधा नाचेगी* वाली कहावत चरितार्थ होती नजर आ रही हैं क्योंकि आचार संहिता लगते ही काम नहीं होगा और अगर सरकार बदल गई तो यह प्रस्ताव धरा रह जाएगा। यह प्रस्ताव पास करना मात्र जनता को। *मीठी गोली* देना जैसा ही होगा। वहीं दो करोड़ रुपए शहर से आवारा कुत्तों पर पकड़ने पर ख़र्च होंगे। अब कितने श्वान पकड़े जाएंगे? यह समय ही बताएगा।
वहीं नव नियुक्त प्रतिपक्ष के नेता पारीक ने अपना जलवा दिखाया और उन्होंने भगवान विराट स्वरूप की प्रतिमा और टंकी के बालाजी के यहां भी रावण दहन करने का प्रस्ताव पारित करवा दिया। यानी अब भीलवाड़ा में तेजाजी चौक,लेबर कालोनी, पुर सहित टंकी के बालाजी के यहां रावण दहन होगा। परिषद जिस तरह के रावण दहन करवाती हैं वो शहरवासी काफी सालों से देख रहे। ना फटाखे चलते हैं और ना ही ठीक से रोशनी होती हैं। *अब चार जगह रावण दहन होगा तो वो कैसा होगा?*
कुल मिला कर परिषद की साधारण सभा की बैठक केवल मात्र औपचारिकता बनकर रह गई।
– *स्वतंत्र पत्रकार*
– *पूर्व उप सम्पादक, राजस्थान पत्रिका, भीलवाड़ा*
– *वरिष्ठ उपाध्यक्ष, प्रेस क्लब भीलवाड़ा*
– *sushil chouhan [email protected]*