मधुमेह और उच्चरक्तचाप की बीमारी, आई भूल से हमारी, दातुन ना छोड़ते तो खुश रहती दुनिया सारी
स्वस्थ भारत सबल भारत
डॉ राव पी सिंह
जियो जी भर
एक संकल्प
# भारत हिन्दू राष्ट्र घोषित हो
# जनसंख्या क़ानून लागू हो
डायबिटीज और हाइपरटेंशन है?
यानी दातून करना भूल चुके हो…तो
वापसी कीजिये, तुरंत!
सन 1990 से पहले कितने लोगों को
डायबिटीज़ होता था? कितने लोग हाइपरटेंशन से त्रस्त थे? नब्बे के दशक के साथ हर घर में एक डायबिटीज़ और हाई ब्लड प्रेशर का रोगी आ गया, क्यों? बहुत सारी वजहें होंगी, जिनमें हमारे खानपान में बदलाव को सबसे खास माना जा सकता है। बदलाव के उस दौर में एक चीज बहुत ख़ास थी जो खो गयी, पता है ना क्या है वो? दातून ?…गाँव देहात में आज भी लोग दातून इस्तमाल करते दिख जाएंगे लेकिन शहरों में दातून पिछड़ेपन का संकेत बन चुका है। गाँव देहात में डायबिटीज़ और हाइपरटेंशन के रोगी यदा कदा ही दिखेंगे या ना के बराबर ही होंगे। वजह साफ है, ज्यादातर लोग आज भी दातून करते हैं। डायबिटीज़ और हाइ ब्लड प्रेशर के साथ दातून का क्या संबंध, यही सोच रहे हो ना?..तो आज आपका दिमाग हिल जाएगा..और फिर सोचिएगा, हमने क्या खोया, क्या पाया?
ये जो बाज़ार में टूथपेस्ट और माउथवॉश आ रहे हैं ना, 99.9% सूक्ष्मजीवों का नाश करने का दावा करने वाले, उन्हीं ने सारा बंटाधार कर दिया है। ये माउथवॉश और टूथपेस्ट बेहद स्ट्राँग एंटीमाइक्रोबियल होते हैं और हमारे मुंह के 99% से ज्यदा सूक्ष्मजीवों को वाकई मार गिराते हैं। इनकी मारक क्षमता इतनी जबर्दस्त होती है कि ये मुंह के उन बैक्टिरिया का भी खात्मा कर देते हैं, जो हमारी लार (सलाइवा) में होते हैं और ये वही बैक्टिरिया हैं जो हमारे शरीर के नाइट्रेट (NO3-) को नाइट्राइट (NO2-) और बाद में नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) में बदलने में मदद करते हैं। जैसे ही हमारे शरीर में नाइट्रिक ऑक्साइड की कमी होती है, ब्लड प्रेशर बढ़ता है। ये दुनियाभर की रिसर्च स्ट्डीज़ बताती हैं कि नाइट्रिक ऑक्साइड का कम होना ब्लड प्रेशर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। जर्नल ऑफ क्लिनिकल हायपरेटेंस (2004) में ‘नाइट्रिक ऑक्साइड इन हाइपरटेंशन’ टाइटल के साथ छपे एक रिव्यु आर्टिकल में सारी जानकारी विस्तार से छपी है। और, नाइट्रिक ऑक्साइड की यही कमी इंसुलिन रेसिस्टेंस के लिए भी जिम्मेदार है। समझ आया खेल? नाइट्रिक ऑक्साइड कैसे बढ़ेगा जब इसे बनाने वाले बैक्टिरिया का ही काम तमाम कर दिया जा रहा है? ब्रिटिश डेंटल जर्नल में 2018 में तो बाकायदा एक स्टडी छपी थी जिसका टाइटल ही ’माउथवॉश यूज़ और रिस्क ऑफ डायबिटीज़’ था। इस स्टडी में बाकायदा तीन साल तक उन लोगों पर अध्धयन किया गया जो दिन में कम से कम 2 बार माउथवॉश का इस्तमाल करते थे और पाया गया कि 50% से ज्यादा लोगों को प्री-डायबिटिक या डायबिटीज़ की कंडिशन का सामना करना पड़ा।
अब बताओ करना क्या है? कितना माउथवॉश यूज़ करेंगे? कितने टूथपेस्ट लाएंगे सूक्ष्मजीवों को मार गिराने वाले? दांतों की फिक्र करने के चक्कर में आपके पूरे शरीर की बैंड बज रही है सरकार.. गाँव देहातों में तो दातून का भरपूर इस्तेमाल हो रहा है, और ये दातून मुंह की दुर्गंध भी दूर कर देते हैं और सारे बैक्टिरिया का खात्मा भी नहीं करते। अब आप सोचेंगे टूथपेस्ट और माउथवॉश को लेकर इतनी पंचायत कर ली तो दातून के प्रभाव को लेकर किसी क्लिनिकल स्टडी की बात क्यों नही की? तो भई, अब दातून से जुड़ी स्टडी की भी बात हो जाए।
बबूल और नीम की दातून को लेकर एक क्लिनिकल स्टडी जर्नल ऑफ क्लिनिकल डायग्नोसिस एंड रिसर्च में छपी और बताया गया कि स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटेंस की वृद्धि रोकने में ये दोनों जबर्दस्त तरीके से कारगर हैं। ये वही बैक्टिरिया है जो दांतों को सड़ाता है और कैविटी का कारण भी बनता है। वो सूक्ष्मजीव जो नाइट्रिक ऑक्साइड बनाते हैं जैसे एक्टिनोमायसिटीज़, निसेरिया, शालिया, वीलोनेला आदि दातून के शिकार नहीं होते क्योंकि इनमें वो हार्ड केमिकल कंपाउंड नहीं होते जो माउथवॉश और टूथपेस्ट में डाले जाते हैं।
आदिवासी दांतों पर दातून घुमाने के बाद एकाध बार थूकते है, बाद में दांतों पर दातून की घिसाई तो करते हैं और लार को निगलते जाते हैं? लिंक समझ आया? लार में ही तो असल खेल है। ये हिंदुस्तान का ठेठ देसी ज्ञान है ।
मुद्दे की बात ये है कि वापसी करो, थोड़ा वापस आओ फ्लैश बैक में दातुन लाओ खुल के जियो।
बासी पानी जे पिये, ते नित हर्रा खाय।
मोटी दतुअन जे करे, ते घर बैद न जाय।।
भारत माता की जय 🇮🇳