*बे सहारा बुजुर्गो का “श्रवण” नाम हैं ” राज कुमार बूलियां”*
– *शहर का एकमात्र वृद्धाश्रम(आश्रय) “जहां घर जैसा माहौल”*
– *सुशील चौहान*
भीलवाड़ा। किसी को घर वालों ने नकारा तो किसी को संभालने वाले नहीं रहे। किसी की हालत नहीं तो किसी की हिम्मत नहीं। परिस्थिति कैसी भी हो लेकिन कोई भी बुजुर्ग खुद को बे सहारा नहीं समझ सकता। क्यों कि उन्हें संभालने यानी सेवा करने के लिए मानो उपर वाले ने ही जिसे भेजा है उनका नाम है *राजकुमार बूलियां* जिन्होंने *ऊं शांति सेवा संस्थान* के माध्यम से यह अलख जगा रखी है।
किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि हरणी महादेव मंगरोप रोड स्थित ऊं शांति सेवा संस्थान जिसका नाम *आश्रय*। वो एक दिन बेसहारा वृद्धजनों का सहारा बनेगा। इस कार्य को मूर्तरूप देने का बीड़ा उठाया राज कुमार बुलियां व कुछ लोगों ने। बस मन में एक भावना जागी और परिकल्पना फलीभूत हो गई वृद्धाश्रम के रूप में। जो कई ऐसे लोगों का *आश्रय* बन गया, जिनके जीवन का कोई सहारा नहीं हैं। वर्ष 2007 में आश्रय की नींव डाली और देखते ही देखते आज वृद्धाश्रम ने पूरे जिले में अपनी एक पहचान बनाई। पूरे भवन में 30 कमरे मय शौचालय, स्नान घर, रसोईघर हैं। जहां बुजुर्गों को एसी भोजनशाला में सम्मान के साथ भोजन कराया जाता हैं।
वृद्धाश्रम की शुरुआत सुबह गणेश मंदिर में पूजा अर्चना से होती हैं। जहां वृद्धाश्रम में रहने वाले लगभग चालीस लोग जिनमें महिला व पुरुष स्नान करआरती करते हैं। जिससे वृद्धाश्रम का माहौल भक्ति मय हो जाता हैं। इसके साथ ही वृद्धाश्रम की दिनचर्या शुरू होती हैं। फिर इन बुजुर्गों को सुबह की चाय बिस्कुट के साथ बिस्कुट दी जाती हैं। लगभग नौ बजे नाश्ता करते हैं सभी। जिनमें कभी पोहा तो कभी उपमा और चीज दी जाती हैं। इसके बाद सब 11बजे के लगभग भोजनशाला में आते हैं। कोई पैदल और कोई व्हील चेयर के माध्यम से अपने कक्ष से निकल कर आते हैं। यहां पहले प्रार्थना होती हैं। उसके बाद वो लोग जो भोजन के लिए सहयोग करते हैं। वो इन लोगों को एसी कक्ष में टेबल कुर्सी पर बिठा कर भोजन करवाते हैं। दोपहर में फल , फिर चाय और शाम को छह बजे भोजन कराया जाता हैं। रात में दूध पीकर सब विश्राम करते है। किसी के बीमार होने पर दवा की भी व्यवस्था हैं। ज्यादा तबीयत खराब होने पर अस्पताल में भी उपचार करवाया जाता हैं । एक्सरसाइज के लिए फिजियोथैरेपिस्ट भी अपनी सेवा देता हैं।
लोग यहां अपने दिवंगत हुए परिजनों की पुष्यतिथि, बच्चों के जन्मदिन, विवाह की सालगिरह पर यहां आकर एक समय के लिए एक हजार रुपए का सहयोग राशि देकर भोजन करवाते हैं।
यही नहीं वृद्धाश्रम संचालन मंडल उन लोगों का जन्म दिन मनाना नहीं भूलता हैं जो यहां रह रहे हैं। जिसका जन्मदिन होता हैं उसे माला पहनाते हैं और मुंह मीठा करते हैं। कबूतर खाना भी जहां रोजाना एक बोरी अनाज डाला जाता हैं। यहां की व्यवस्था संभालने का जिम्मा रामस्वरूप डाड को सौंप रखी हैं। जो तन मन से सेवा करते हैं। रसोईघर भी साफ सुथरा हैं ।लगभग दस से पंद्रह आदमी अपनी सेवाएं देते है। शीघ्र ही यहां पांच पलंग वाला वातानुकूलित चिकित्सा कक्ष शुरू किया जाएगा।
आज यह वृद्धाश्रम किसी पहचान का मौहताज नहीं हैं। वृद्धाश्रम (आश्रय) का नाम ज़ेहन में आते मंगरोप रोड का यह अविस्मरणीय आश्रय याद आ जाता हैं।
इस वृद्धाश्रम को पहचान दिलाने में जहां संस्थान के अध्यक्ष राज कुमार बुलियां जी जान से जुटे हैं। वहीं इस नेक काम में अहम भूमिका निभा यहे हैं संस्थान के सचिव सत्यनारायण मूंदड़ा और कोषाध्यक्ष सुभाष चौधरी और इनके अनगनित साथी जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से सहयोग से इन बेसहारा वृद्धजनों का सहारा बने हुए हैं। *इन बेसहारा बुजुर्गों को यहां घर जैसा ही प्यार और सम्मान मिलता हैं*। यह आश्रय स्थल नहीं अपनों का ही आशियाना हैं।
– *स्वतंत्र पत्रकार*
– *पूर्व उप सम्पादक, राजस्थान पत्रिका, भीलवाड़ा*
– *वरिष्ठ उपाध्यक्ष, प्रेस क्लब भीलवाड़ा*
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