टायर फैक्ट्री से फैल रहा जहरीला धुंआ, प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी की मिलीभगत का अंदेशा?
टायर फैक्ट्री से खाक हो रही फसले,शिकायत करने पर भी नहीं होती कार्यवाही
फैक्ट्री से निकलने वाले जहरीले कार्बन से लोगों को हो रही भयानक बीमारियां
भीलवाड़ा । जिले के हुरडा उपखण्ड क्षेत्र के रूपाहेली कलां ग्रामपंचायत के आपलियास गांव में ऐसी फैक्ट्रि का जाल बिछ गया है, जिसके प्रदूषण व अवशेषों से ग्रामीण और फसलों की सेहत बिगड़ रही है। खेतों के किनारे की सड़कों से लेकर हाइवे तक इन फैक्ट्रियों के अवशेषों से बेहाल हो रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि खतरनाक प्रदूषण फैला रहीं इन फैक्ट्रियों से निकलने वाले प्रदूषण से ग्रामीणों की सेहत खराब हो रही है।
जिसके प्रदूषण व अवशेषों से ग्रामीण और फसलों की सेहत बिगड़ रही है। खेतों के किनारे की सड़कों से लेकर हाइवे तक इन फैक्ट्रियों के अवशेषों से बेहाल हो रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि खतरनाक प्रदूषण फैला रहीं इन फैक्ट्रियों की तरफ प्रदूषण विभाग, जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र से लेकर जिला प्रशासन तक कभी ध्यान ही नहीं देता।प्रदूषण व ग्रामीण और फसलों की सेहत बिगड़ रही है। खेतों के किनारे की सड़कों से लेकर हाइवे तक इन फैक्ट्रियों के अवशेषों से बेहाल हो रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि खतरनाक प्रदूषण फैला रहीं इ
टायर जलाकर तेल निकालने वाली फैक्ट्रियों के प्रदूषण से ग्रामीण हो रहे बीमार, फसलें और सड़कें भी बेहाल हो गई।
भीलवाड़ा जिले में इंडस्ट्री एरिया में एनएच 79 के किनारे रायला व गुलाबपुरा इंडस्ट्रियल एरिया है। इन सभी से कोसों दूर आपलियास और रूपाहेली कलां गांव के पास एक टायर फैक्ट्री लगाई गई है, जिसमें पुराने टायरों को जलाकर उनमें से तेल निकालने वाली हैं। टायरों से निकलने वाला तेल इंडस्ट्रियों की चिमनियों में ईधन के रूप में बिकता है। लेकिन टायरों से तेल निकालने की प्रकिया इतनी खतरनाक है, जिससे काम करने वाले कर्मचारियों के अलावा आसपास के क्षेत्रवासियों व पर्यावरण की सेहत खतरे में आ जाती है। बड़ी-बड़ी भटियों में टायरों को भरकर जलाया जाता है। जब टायर जलते हैं तो इतना धुआं निकलता है कि पूरे क्षेत्र में धुंध छा जाती है। इसका असर ग्रामीणों की सेहत पर दमा व खांसी जैसी बीमारी के रूप में दिख रहा है। टायर जलने से वातावरण में प्रदूषण का सबसे बड़ा सबूत, पेड़, पौधे व फसलें हैं। कई किलोमीटर दूर की फसलें व पेड़ के पत्ते पाउडर की परत से काले पड़ गए हैं। खेतों में काले पाउडर की परत जम गई है। टायर जलने के बाद उसके अवशेष में महीन काला पाउडर बचता है। फैक्ट्री संचालक दावा करते हैं कि यह बिक जाता है। कुछ फैर्क्टी संचालकों ने बोरों में भरकर यह काला पाउडर रख रखा है, लेकिन हकीकत यह है कि रात के अंधेरे में रबर के इस काले पाउडर को नेशनल हाइवे से लेकर खेतों के आसपास सड़कों किनारे फेंका जा रहा है।
ईटीपी प्लांट नहीं, दूषित पानी फसलें सुखा रहाः
नियमानुसार पानी को प्रदूषित करने वाले ऐसे प्लांटों में इनफ्लूएंस ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) लगता है। ईटीपी प्लांट से पानी की पूरी गंदगी और प्रदूषण दूर होकर, यह पानी दोबारा उपयोग में आने लायक हो जाता है। ईटीपी प्लांट पर 15 से 20 लाख रुपये का खर्च होता है, इसी खर्च से बचने के लिए टायर जलाकर तेल निकालने वाली फैक्ट्रियों ने यह प्लांट नहीं लगवाए और फैक्ट्रियों से निकल रहा काले रंग का दूषित पानी नाले से उफनकर आसपास के खेतों में भर रहा है, जिससे खेतों की मिट्टी खराब हो रही है और फसलें सूख रही हैं।
इनका कहना है
हाई ग्रीन के नाम से संचालित इस टायर फैक्ट्री से सटकर जो कृषि भूमि है उसमे फसले हर वर्ष खराब हो जाती है। जिससे परेशान होकर कई बार शिकायत की लेकिन उस पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई उल्टा हमे ही मुकदमे में फंसाने की धमकी देते रहते है। हमारे खेत में कुएं का पानी भी पीने लायक नही रहा हमे गांव से पानी साथ मे लेकर आना पड़ता है। मेरे पास पहले इस जगह पर अनार की खेती था जिससे मुझे अच्छी आय होती थी लेकिन जब से यह फैक्टरी लगी है इसके प्रदूषण से मेरा पूरा अनार की खेती नष्ट हो गया है अब मेरे इस जमीन को कोई भी लेने के लिए भी तैयार नहीं है।
रामनाथ जाट, खेत मालिक
वही खेत में काम कर रही महिलाओं ने बताया कि यहां काम करने से हमे खुजली (चर्म रोग) हो गया है जिसका इलाज हमारे लिए बहुत महंगा हो गया है। हमारे हाथ और पांव तक एकदम काले हो जाते है स्वांस जैसी गंभीर बीमारियां फैल रही है।
हमें यहा पर सारा काम नियमानुसार किया जा रहा है समय समय प्लांट को बंद कर इसकी सफाई करते है ताकि ग्रामीणों को कम से कम शिकायत करने का मोका मिले।
निर्मल पटेल, डायरेक्ट, हाई ग्रीन कार्बन लिमिटेड