*‼️राजस्थान में सरकार किसी की भी हो मुख्यमंत्री गहलोत या वसुंधरा ही होंगे‼️*💯
_*दोनों पार्टियों के हाईकमानों पर दवाब बनाने का बन चुका है प्लान!!*_🙋♂️
*✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
*आज जिस विषय पर बात करने जा रहा हूँ वह आपको कपोल कल्पित या कहिए फैंटेसी लगेगी मगर मेरी बात को आप काल्पनिक सिद्ध नहीं कर पाएंगे जबकि मैं राजनीतिक मापदंडों पर अपनी बात सिद्ध कर दूँगा।*👍
*मित्रों! इस बार मुस्लिम मतदाताओं और महिलाओं का बढ़ा हुआ प्रतिशत यह दर्शा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी इक तरफ़ा बहुमत लेने नहीं जा रही। दोनों ही पार्टियों को थोड़े बहुत फ़र्क़ से आगे पीछे विधायक मिलने वाले हैं। हो सकता है भाजपा को कुछ विधायक ज़ियादा मिल जाएं।ठीक उल्टा यह भी हो सकता है कि कांग्रेस को भाजपा से कुछ ज़ियादा विधायक मिल जाएं।*🤷♂️
*ऐसे में सत्ता की चाबी उन 60 लोगों के हाथ मे आ जायेगी जो दोनों ही पार्टियों के बाग़ी हैं। जी हाँ, भाजपा के 32 नेता टिकिट नहीं मिलने से नाराज़ होकर चुनाव में डटे हुए हैं और कांग्रेस में 22 नेता पार्टी के ताबूत में कील ठोक रहे हैं।*😣
*ये पांच दर्जन सभी नेता चुनाव जीत जाएंगे मैं ऐसा नहीं मानता। फिर भी कुल 30- 40 नेता राज्य में ऐसे होंगे जो चुनाव जीतेंगे। इनमें आंचलिक पार्टियों के विधायकों की संख्या भी शामिल है।*👍
*मेरी सियासती समझ कहती है कि जिन नेताओं को दोनों ही पार्टियों ने निकाल दिया है वे बावज़ूद निकाले जाने के ख़ुद को पार्टी की अमानत ही मान रहे हैं।इनका ही उपयोग करने के लिए कांग्रेस और भाजपा के नेताओं ने गुप्त योजना बना ली है।*😍
*गहलोत और वसुंधरा के बीच पारस्परिक समझ विकसित हो गई है। जिस पार्टी का हाईकमान इन दोनों नेताओं को मुख्यमंत्री पद से वंचित करना चाहेगा ये अपनी अपनी पार्टी के जीते हुए बाग़ियों को एक दूसरे की मदद के लिए मोहरा बना देंगे।*😱
*गहलोत और वसुंधरा बहुत से लोगों को चाह कर भी टिकट नहीं दिला पाए।ऐसे नेताओं की जीत के लिए गहलोत और वसुंधरा दोनों ने ही गुप्त रूप से साथ दिया।उदाहरण के बतौर पुष्कर के कांग्रेसी के बाग़ी डॉ श्रीगोपाल बाहेती को ही ले लें। यदि गहलोत चाहते तो उनको बैठा देते मगर उन्होंने नहीं बैठाया बल्कि सचिन समर्थक नसीम अख़्तर को हराने के लिए खुला छोड़ दिया। गहलोत एक बार भी नसीम के पक्ष में प्रचार करने नहीं आए। राज्य में ऐसे कई नेता हैं जो बाग़ी होकर चुनाव लड़ रहे हैं।*🤨
*यही हाल वसुंधरा का भी है। लगभग 32 नेता ऐसे हैं जो पार्टी के ख़िलाफ़ मैदान में हैं और कई जीतने की ताक़त भी रख रहे हैं। ये सब अपने अपने नेताओं के सम्पर्क में हैं।*💁♂️
*तीन दिसम्बर को जैसे ही चुनाव परिणाम घोषित होंगे इन बाग़ियों को गहलोत और वसुंधरा अपने अपने बाड़े में ले जाएंगे।*💯
*वसुन्धरा का प्लान होगा कि सरकार बनती हो तो हाईकमान पर ख़ुद को मुख्यमंत्री बनाए जाने के लिए दवाब बनाए। यदि हाई कमान मानता है तो ठीक! नहीं मानता है तो वह उन जीते हुए विधायकों को जो उनके समर्थक हैं या जिनको टिकिट ही वसुंधरा ने दिलवाए हैं उनको भी जीते हुए बाग़ियों के साथ शामिल कर लें। यह आंकड़ा मेरे आंकलन के हिसाब से 50-55 होगा। यदि वसुंधरा को फिर भी मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाए तो कांग्रेस के बाग़ी मंत्री पद के साथ आयात हो जाएंगे।कहने की ज़रूरत नहीं कि इसमें गहलोत की भूमिका क्या रहेगी।*🤪
*इधर यदि कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में हो और हाईकमान गहलोत की जगह किसी और को मुख्यमंत्री बनाना चाह रहा हो तो वह भी वसुंधरा का ही अनुसरण करेंगे।अपने बाग़ियों! अन्य आंचलिक पार्टियों के विधायकों ! और अपने जीते हुए बाग़ियों के साथ वह मुख्यमंत्री बनने के लिए ज़रूरी आंकड़ा पा लेंगे।यदि कुछ कम पड़े तो भाजपा के बाग़ी मंत्री पद के साथ सहर्ष उनके साथ हो जाएंगे। यहां भी बताने की ज़रूरत नहीं कि वसुंधरा की इस खेल में क्या भूमिका रहेगी।*🤪
*ज़ाहिर है कि राज्य सरकार किसी भी पार्टी की बने मुख्यमंत्री तय होंगे। हाईकमान लाख चाहें तो भी अपनी मर्ज़ी नहीं चला पाएंगे। यह भी ज़ाहिर है कि दोनों ही पार्टियों के हाईकमान चाहे कितने भी बाहुबलि हों इन दोनों क्षत्रपों के सामने कोई वज़ूद नहीं रखते।*😉
*जहाँ तक यह सवाल है कि कोई भी पार्टी पूर्ण बहुमत आने पर क्या इन दोनों नेताओं की नाक में नकेल डाल पाएगी❓😯*
*आप क्या सोचते हैं आप जानें मेरा तो यह मानना है कि हाईकमान किसी भी तरह की बग़ावत से बेहतर समझौता ही करेगी। यदि किसी भी जीती हुई पार्टी ने गहलोत या वसुंधरा पर दवाब बनाया तो वह हो जाएगा जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। गहलोत कुर्सी छोड़ना भी चाहें तो कुर्सी उनको क्यों नहीं छोड़ रही यह आप समझ सकते हैं।हो सकता है वसुंधरा और गहलोत मिल कर कोई नया फ़ैसला कर लें। फ़िलहाल इंतज़ार है तीन दिसम्बर का।*🙋♂️