*रॉकेट* की तर्ज़ पर *महापौर* बने *राकेश*…
– *सुशील चौहान*
भीलवाड़ा. इसे कहते है *किस्मत*। जब सरकारी व्यवस्था *मेहरबानी* करें तो सभापति बैठे बिठाए महापौर बन जाता है। तो सच ही तो है कि हमारे *जनसेवक* सभापति *अटॉमिक महापौर* हो गए है।
सभापति पाठक जी जो अब महापौर हो गए। इनके कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ गई हैं। भीलवाड़ा नगर परिषद को नगर निगम का दर्जा मिल गया। अच्छी बात हैं। लेकिन यह दर्जा मिला *सोमवती अमावस्या* को । और हिन्दू संस्कृति में अमावस्या को अशुभ माना जाता हैं। मंगलवार को जब पाठक जी ने महापौर बनने के बाद परिषद में जो अब निगम बन गई पहला कदम रखा। तो उनके हितेषियों ने मालाओं से लादा। उस समय भी *अमावस्या* थी। पाठक साब धर्म-कर्म में विश्वास रखते हैं। अमावस्या उनके नए पद में कितनी शुभ साबित होगी ? यह तो समय ही बताएगा।
पाठक साब के सामने बहुत चुनौतियां हैं।वो कुछ तो अपनों से ही,तो कुछ शहर की परम्परागत चुनौतियां हैं। पाठक जी ने सभापति का पद संभालते ही समस्याओं के समाधान का दावा किया। लेकिन अभी तक वो समस्याएं ज्यों को त्यों बनी हुई हैं।
अब पाठक साब महापौर बनकर अपनी कालर ऊपर कर सीना तान रहे हैं। लोग कह रहे यह अरे भाई यह तो मनोनीत महापौर हैं *असली महापौर* तो वो होगा जब निगम के चुनाव होंगे और 90 पार्षद अपना महापौर चुनेंगे। लोग चुटकी लेकर कह रहे हैं कि पाठक साब तो मनोनीत या कहें अटाॅमिक महापौर हैं।
पाठक साब की महापौर की राह इतनी आसान नहीं हैं। उनका महापौर का तमगा भाजपाइयों को तो *खल* ही रहा है। साथ ही कांग्रेसी पार्षद भी इसे पचा नहीं पा रहे हैं। अब पाठक साब की *महापौर की नैया को पार लगाने के असली खेवईयां तो निर्दलीय पार्षद* ही हैं होंगे ।जिन्होंने जो अब भगवाधारी हो गए हैं । अब देखो आगे -आगे होता हैं क्या?
पाठक साब के अपनों की तो समस्या हैं ही।और शहर की प्रमुख महत्वपूर्ण समस्याओं के समाधान के लिए जूझना पड़ेगा। इनके सभापति के कार्यकाल में उनकी ऐसी उपलब्धि नहीं हैं जो उन्हें शाबाशी दी जाए। अटाॅमिक महापौर के रूप में तीन प्रमुख समस्या है। पहली सफाई , दूसरी अनियंत्रित यातायात व्यवस्था और तीसरी महत्वपूर्ण और प्रमुख समस्या सड़कों पर स्वछंद विचरण कर रहे गौवंश की।
जिससे आए दिन छोटी -मोटी दुर्घटनाएं होती रहती है।
शहरवासियों को याद तो होगा ही सड़कों पर स्वछंद विचरण कर रही गायों ने नगर परिषद के *एक सभापति* को असमय ही *काल का ग्रास* बना लिया। वो सभापति एक दिन भी कुर्सी पर नहीं बैठ पाए थे।
गायों के नाम पर तो अपने गौ भक्त कोठारी साब मात्र एक सौ ग्यारह दिन में बुलडोजर से कमल के चंद रखवालों को साथ लेकर कमल को कुचलकर विधायक का ताज पहन लिया। अब *लाचार गायें* कोठारी साब की बांट *जौ* रही हैं कि उनका कभी तो उद्धार करेगा। लेकिन वो पहले भी कचरे के ढेर से प्लास्टिक व कचरा खाकर अपना जीवन गुजार रही थी आज भी कचरा व प्लास्टिक ही खा रही है। और हमारे गौ भक्त कोठारी साब विधानसभा की शोभा बढ़ा रहे।और गायें सड़क बीच में बैठ कर कोठारी साब का इंतजार कर रही हैं कि उन्हें प्लास्टिक की जगह हरी घास नसीब होगी। अब इन गायों को कोई लाठी मारता हैं तो कोई *पूंछ पर छुरियां* चला जाता हैं। तो *असली गौ भक्तों को पुलिसिया लाठी का स्वाद चखना* पड़ा ।गौ भक्तों का मार्गदर्शन करने वाले *कंट्रोल बाबा* जिनके सिर पर इन दिनों यूपी के योगी जैसा बनने का भूत सवार हैं। अपने गौ भक्तों पर कंट्रोल नहीं पाएं और गौ भक्तों को लाठियां खानी पड़ी । साथ ही उनके वाहन भी जब्त हुए।
खैर अब बात उप सभापति जी की भी कर ले । भाई उनकी तो *निकल* पड़ी हैं । वो भी कमल से बगावत करने के बाद जैसे तैसे फिर भगवा धारण कर लिया। अब वो भी उप महापौर कहलाएंगे। यानी *हींग लगे ना फिटकरी रंग भी चौखो आए* वाली कहावत इन पर फिट बैठ रही हैं।
अब जब परिषद को निगम का दर्जा मिल गया हैं तो *आटोमिक महापौर* बने पाठक साब से शहर वासियों की उम्मीदें भी बढ़ेगी। जब पाठक साब सभापति बने तो उन्होंने साफ कहा *मैं जनसेवक* हूं। अपने कक्ष के बाहर लिखवाया। लेकिन महापौर बनने के कुछ ही देर बाद अपनी गाड़ी पर महापौर का तमका जड़वा लिया।
*पाठक साब बड़ी कठिन हैं डगर महापौर की…* पहले तो आपको अपने आस्तीन में छुपे ….से तो सावधान रहना हैं और साथ ही साथ शहरवासियों की *कसौटी* पर भी खरा उतरना हैं।
– *स्वतंत्र पत्रकार*
– *पूर्व उप सम्पादक, राजस्थान पत्रिका, भीलवाड़ा*
– *वरिष्ठ उपाध्यक्ष, प्रेस क्लब भीलवाड़ा*
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*रॉकेट* की तर्ज़ पर *महापौर* बने *राकेश*… – *सुशील चौहान* भीलवाड़ा. इसे कहते है *किस्मत*। जब सरकारी व्यवस्था *मेहरबानी* करें तो सभापति बैठे बिठाए महापौर बन जाता है। तो सच ही तो है कि हमारे *जनसेवक* सभापति *अटॉमिक महापौर* हो गए है।
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