*वैभव प्रदर्शन का मंच बनी शादियां बन रही अन्न बर्बादी का केन्द्र*
*चखने-चखाने के नाम पर आइटमों का ढेर लगा ‘अन्नदेव का अपमान’*
*बात मन की- निलेश कांठेड़*
हमारी संस्कृति में अन्न को केवल पेट भरने का साधन नहीं मान उसे अन्नदेव के रूप में देवता की उपमा दी गई है। अन्नदेव की पूजा करने की सीख दी जाती है। उस अन्नदेव की जो हालत इन दिनों शादियों के ‘‘महाभोजों’’ में हो रही वह हमारी कथनी व करनी के अंतर को साफ बताता है। एक तरफ देश में लाखों परिवार ऐसे है जिन्हें दो वक्त पेट भरने के लिए पूरा भोजन भी नसीब नहीं होता वहीं दूसरी तरफ वैभव व आडम्बर प्रदर्शन का मंच बनी शादियां अन्न बर्बादी का केन्द्र बन गई है। अन्नदेव का जितना अपमान ऐसी शादियों में होता उतना शायद कहीं भी नहीं होता होगा। आदमी चखने-चखाने के नाम पर महंगे भोजन से भरी प्लेट सीधे डस्टबीन में यूं डाल देता है जैसी उसकी कोई कीमत ही नहीं हो। भोजन लेने वाली प्लेटों की साइज तो नहीं बढ़ी है पर दिखावे की होड़ाहोड़ के चलते प्रीतिभोजों में आइटमों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि एक बार में सारे आइटम प्लेट में लेने में महारथियों के भी पसीने छूट जाते है। ऐसे में कोई भी आइटम चखने से न छूट जाए इसलिए एक कोर चखकर स्वाद नहीं जमा तो शेष पूरा हिस्सा डस्टबिन के हवाले करने में कोई हिचक नहीं होती। कहने के लिए कई समाजों ने सामाजिक सुधार के नाम पर शादियों के खाने में 15 से लेकर 21 तक आइटम संख्या की बंदिश लगा रखी है लेकिन उन बंदिशों का हाल उस कानून की तरह है जिसमें बनाने से पहले बचाव की गलियां ढूंढ ली जाती है। विशेषकर वह लोग समाज के आइटम संख्या बंदिशों के नियमों की पालना करने से बचना चाहते है जिनके लिए शादियां उनकी सम्पन्नता व वैभव प्रदर्शन का अवसर बन जाती है। भोजन में स्टार्टअप से लेेकर जूस कॉर्नर व पंजाबी ढाबे तक के नाम पर आइटमों का ढेर बनाने वाले भी जानते है कि कितने भी टेस्टी आइटम क्यों न हो सभी का स्वाद ले पाने की क्षमता एक सामान्य व्यक्ति का शरीर नहीं रखता। हम चाहे 50-100 आइटम भी क्यों न बना ले हमारे शरीर के खाने की क्षमता वो ही 250-300 ग्राम से अधिक नहीं हो सकती। ऐसे में जितने अधिक आइटम बनाएंगे उतनी अधिक अन्न की बर्बादी होना तय है। कई शादियों के भोज में देखने में आया कि काउंटर पर लंबी कतारे होने से बार-बार लाइन में कौन लगे इसलिए व्यक्ति बिना चखे ही एक बार में ही सारे आईटम प्लेट में भर लेना चाहता है। इसके बाद जिसका स्वाद रास नहीं आता उसे फेंक दिया जाता है। भोजन की बफेट प्रणाली के कारण प्लेट भरने से रोकने वाला भी कोई नहीं होता है। यहां मुद्दा ये नहीं है कि अधिक आइटम लेने से किस तरह रोका जाए बल्कि ये है कि आपके पास सम्पन्नता होने से आपको अन्न की बर्बादी करने का अधिकार कतई नहीं मिल जाता है। हम अन्न का सम्मान नहीं करेंगे तो कभी वह दिन भी आ सकता जब पैसा देकर भी अन्न मिलना कठिन हो जाए। शादियों में जो मेहमान आए उनकी अच्छी मेजबानी करें लेकिन खाने की ऐसी होड़ न लगाए कि यूं लगे शादी में आने का मतलब ही सुबह उठने से लेकर रात में सोने जाने तक खाते ही रहना है। हम अन्न के साथ उसे ग्रहण करने वाले का भी मन से सम्मान करना चाहते है तो शादियों में उतने ही आइटम भोजन में बनाए जितने आसानी से प्लेट में आ सके। आइटम कम बनाए पर ये सुनिश्चित करें कि हमारा एक भी मेहमान उस आइटम से वंचित नहीं रह जाए यानि आइटम कम लेकिन सुस्वाद होने के साथ काउंटर ज्यादा रखने की थीम ही मेजबान के साथ मेहमान को भी तृप्त कर सकती। लक्ष्मी की कृपा आप पर बरस रही है तो उसका लाभ समाज, मित्रों व परिवार को अवश्य दे लेकिन ये लाभ खाने की आईटमों का ढेर लगाकर नहीं बल्कि किसी जरूरतमंद के लिए भामाशाह बनाकर प्रदान करें। भरे पेट वाले को खिलाने पर अल्पकालिक रूप से वाहवाही जरूरी उठा सकते लेकिन वह परमसंतुष्टि कभी नहीं मिल पाएगी जो किसी असहाय की सेवा में सहभागिता निभाकर, किसी जरूरतमंद का उपचार कराके या किसी प्रतिभावान बच्चें की पढ़ाई में सहारा बनकर मि
लेगी।
*बस इतना सा ले संकल्प प्लेट में जूठा नहीं छोड़ेंगे हम*
मैं जानता हूं कि इस तरह लिखने से रातोरात कोई व्यवस्था नहीं बदलने वाली पर इसे पढ़कर सौ में से एक व्यक्ति भी अपने यहां अवसर आने पर अन्न की बर्बादी रोकने का प्रयास करता है तो लेखनी सार्थक हो जाएगी। इतना ही लो थाली में जूठा न जाए नाली में ये कथन कागजों से बाहर निकाल हकीकत के धरातल पर साकार करने के लिए हम सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे। हम किसी को जूठा नहीं डालने की प्रेरणा नहीं देनी है बस ये संकल्प लेना है कि मैं जूठा नहीं डालूंगा। अभी होता ये है कि हम जूठा नहीं छोड़ने पर लंबा भाषण दे सकते या लेख लिख सकते लेकिन जब प्लेट हाथ में आती है तो स्वयं उस पर अमल नहीं कर पाते। इस स्थिति को बदलना है। हमें किसी को नहीं सुधारना है बस स्वयं सुधरना है। हर व्यक्ति दूसरों के लिए प्रेरक बनने की बजाय स्वयं जूठा डालना छोड़ देगा तो जूठन के नाम पर अन्न की बर्बादी स्वतः रूक जाएगी। हमारे सामूहिक प्रयास ही हमारे समाज व परिवार में अन्नदेव का सम्मान फिर कायम कर सके