*‼️क्या लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस और भाजपा वापस लेगी अपने बाग़ियों और कथित पार्टी विरोधियों को???‼️*🤔
*✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
*लोकसभा के चुनाव भले ही अभी कुछ दूर हैं मगर इतने भी दूर नहीं कि उनको लेकर राजनेता या राजनीतिक पार्टियां सोचना ही शुरू न करें। हक़ीक़त तो यह कि चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस और भाजपा अभी से रणनीति बनाने में पूरी तरह से जुट गई हैं। ऐसे में एक सवाल मैं दोनों ही पार्टियों के लिए मौलिक रूप से उठा रहा हूँ।*💁♂️
*सवाल है कि विधानसभा चुनावों में अधिकृत प्रत्याशियों के विरुद्ध जिन्होंने चुनाव लड़े या लड़ने वालों की मदद की और जो चुनावों में बेहद समर्थ साबित हुए क्या दोनों दल उन लोगों को वापस अपनी मूल धारा में जोड़ना पसंद करेगे ❓*
*फौरी तौर पर तो यही कहा जाएगा कि पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण उनको निकाला गया इसलिए उनकी इस अनुशासन हीनता की सज़ा तो उनको भुगतनी ही पड़ेगी। सिद्धांत: यह बात एक दम सही है मगर व्यवहारिक पक्ष यह है कि लोकसभा के चुनावों के मद्देनजर ऐसे वर्चस्वी लोगों को वापस लेने से पार्टी को कोई नुक़सान नहीं बल्कि फ़ायदा ही होगा।*💯
*एक अनुमान के मुताबिक़ दोनों पार्टियों ने पिछले चुनावों में दो सौ सक्रिय और प्रभावशाली नेताओं को पार्टी से बाहर निकाला। इनमें भाजपा कांग्रेस से आगे रही।भाजपा में टिकिट नहीं मिलने पर भीतरघात सबसे ज़ियादा हुई। खुल कर बग़ावत करने वालों ने कहीं कहीं तो अधिकृत उम्मीदवारों को छठी का दूध ही याद दिला दिया। यही नहीं कुछ क्षेत्रों में तो बाग़ियों ने चुनाव भी जीत लिए।*🙋♂️
*आइए बात करें भीलवाड़ा विधानसभा क्षेत्र की जहाँ चुनाव में भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार के विरुद्ध आर एस एस ने अपना अलग से उम्मीदवार खड़ा कर दिया।पार्टी ने बिट्ठल अवस्थी को उम्मीदवार बनाया। उनको टिकिट संघ (मातृ मंदिर) की इच्छा के विपरीत दी गई। पैनल में जिन संघनिष्ठ लोकप्रिय नेताओं के नाम थे उनको कथित तौर पर पार्टी ने नज़र अंदाज़ कर दिया। टिकिट मिलने पर विठ्ठल अवस्थी जो पहले से विधायक थे को संघ ने टिकिट वापस लौटाने की सलाह दी मगर क्यों कि टिकिट पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा की अनुशंसा पर मिला था और वसुंधरा ने उनको चुनाव जितवाने की गारंटी ले ली थी इसलिए विठ्ठल बैठने को राज़ी नहीं हुए।*🥺
*मातृ मंदिर को यह बात नागवार गुज़री और उन्होंने भाजपा उम्मीदवार के सामने अपना अलग उम्मीदवार खड़ा कर दिया। यदि यह पार्टी विरोधी कृत्य था तो संघ का था। यदि यह अनुशासनहीनता थी तो संघ की थी। यदि आर एस एस से जुड़े समर्पित कार्यकर्ता संघ के फ़ैसले पर साथ देने के लिए आगे आ गए तो इसमें दोषी किसे कहा जाए❓😨*
*संघ के प्रतिनिधि अशोक कोठारी निहायत ही संजीदा इंसान हैं। लोकप्रियता के लिहाज़ से भी वह विठ्ठल जी से ज़ियादा समर्थ नेता थे। जनता की पहली पसंद थे। चुनाव जीत गए।*👍
*उनके पक्ष में जो राजनेता खुल कर सामने आए उनको पार्टी ने तत्काल प्रभाव से निकाल दिया। ये सारे नेता सच पूछो तो विठ्ठल से ज़ियादा ज़मीनी थे। इनमें लक्ष्मी नारायण डाड़ तो ख़ुद विधायक पद के लिए प्रथम पंक्ति के दावेदार थे। नगर सुधार न्यास के सफलतम अध्यक्ष रह चुके थे। सर्वसमाज के नेता थे। इनके अलावा लादूराम तेली भाजपा के पूर्व अध्यक्ष हैं। लोकप्रिय नेता है। इसी क्रम में रामनाथ योगी भी बेहद लोकप्रिय नेताओं में शुमार किये जाते हैं। वर्तमान में नगर निगम के उपसभापति हैं। फिलहाल इन सबको पार्टी ने संघ का साथ देने की सज़ा दी हुई है।*😳
*अब आइए बात की जाए चित्तौड़ की। प्रदेश अध्यक्ष सी पी जोशी के पुराने प्रतिद्वंद्वी चंद्रभान आक्या को किसलिए टिकिट नहीं दिया गया यह सब जानते हैं। जोशी ने उनका नरपतसिंह राजवी की आड़ में शिकार करना चाहा। आक्या का टिकिट कटा तो जनता क्रांति पर उतर आई। आक्या ने निर्दलीय चुनाव लड़ कर जीत लिया। पार्टी के अधिकांश ज़िला पदाधिकारी उनके साथ थे। आक्या के साथ साथ बहुत से नेताओं को पार्टी ने बाहर निकाल दिया।*🙄
*यही हाल अन्य विधनसभाओं का भी हुआ।कहीं कहीं तो बाग़ी निर्दलियों ने बहुत अच्छे वोट लिए। अजमेर में ही ज्ञान सारस्वत ने 26 हज़ार मत लिए।*😱
*ब्यावर में पार्टी से निकाले गए संघ निष्ठ इंदर सिंह बागावास का क्या होगा❓उन्होंने भी तीस हज़ार वोट लेकर सिद्ध कर दिया कि उनकी दावेदारी कमज़ोर नहीं थी और लोकसभा में उनकी मौज़दूगी कितनी ज़रूरी होगी?यहीं के ही महेंद्र सिंह रावत को भी पार्टी खोना नहीं चाहेगी।*🙋♂️
*कांग्रेस में भी कमोबेश यही हुआ। सवाल वही कि क्या इतने प्रभावशाली नेताओं को निकाल दिए जाने का नुकसान लोकसभा चुनावों में पार्टियां भुगत पाएंगी❓🤨*
*मुझे नहीं लगता कि इतने अनुभवी और लोकप्रिय नेताओं को पार्टियां भीतरघात के लिए खुला छोड़ देंगी। मेरा मानना है कि चुनाव से पहले निश्चित तौर पर इन सबको वापस मूल धारा में ले लिया जाएगा। बाक़ी ईश्वर जाने। सद्बुद्धि की सिर्फ़ कामना ही की जा सकती है।*🙏