श्रीमदभागवत कथा गोमाता के दूध में स्वर्ण धातु के कारण अमृत है ।
रायला माधोपुरा में श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन जड भरत चरित के बारे में बताया तथा धुर्वचरित्र शिव विवाह गाजे बाजे के साथ संपन्न हुआ तथा अजामिल उपाख्यान का भी विशंद वर्णन किया गया । उपाचार्य पंडित राकेश जी शास्त्री ने विधिवत मंत्रोच्चारण के साथ भगवान शिव विवाह संपन्न कराया । कथा व्यास पंडित पवन जी शास्त्री ने कहा कि देसी जड़ी बूटी है जो धन्वंतरि ऋषि की देन है । जो गौ माता के दूध में अमृत हैं वह पीला होने का कारण इसके अंदर स्वर्ण धातु है , जो गो माता के रीड की हड्डी के द्वारा सूर्य की किरणों से प्राप्त करती हैं
कलयुग जब समय आया तो परीक्षित ने रोका तो कलयुग में 84 कला होने से राजन से कहा कि जब सत्य युग , त्रेतायुग, द्वापर किसी नही रोका था आप मुझ नही रोक सकते है तो राजा परीक्षित ने उन्हें पहले चार जगह दी जो शराबी के घर , कसाई के घर , वेश्या , जुआ खेलने पर जो चारो जगह परीक्षित के राज में प्रतिबंधित थी तो कलयुग ने पांच जगह मांगी थी एक जगह रहने को ओर दे तब राज ने विवस होकर कलयुग को स्वर्ण सोने पर जगह दी थी तो कलयुग सर्वप्रथम राजा के मुकुट में जगह बना । जब थकावट के कारण उन्हें प्यास लग गई थी। एक वृद्ध मुनि (शमीक) मार्ग में मिले। राजा ने उनसे पूछा कि बताओ, हिरन किधर गया है। मुनि मौनी थे, इसलिये राजा की जिज्ञासा का कुछ उत्तर न दे सके। थके और प्यासे परीक्षित को मुनि के इस व्यवहार से बड़ा क्रोध हुआ। कलियुग सिर पर सवार था ही, परिक्षित ने निश्चय कर लिया कि मुनि ने घमंड के मारे हमारी बात का जवाब नही दिया है और इस अपराध का उन्हें कुछ दंड होना चाहिए। पास ही एक मरा हुआ साँप पड़ा था। राजा ने कमान की नोक से उसे उठाकर मुनि के गले में डाल दिया और अपनी राह ली।
राजा परीक्षित को मुनिश्री के द्वारा राजा को श्राप दिया और 7 दिन में मृत्यु होना तय हुआ था । तब राजा सुखदेव मुनि के पास जाकर मोक्ष की प्राप्ति के लिए मार्ग पूछे रहा है । कथा में ग्रामवासियों द्वारा भगवान का आनंद ले रहे तथा भक्ति में नाचते गाते जय जय राधे बोल रहा है