*” विपक्ष को छिन्न-भिन्न करने के लिए ही भाजपा ने पलटूराम नीतीश कुमार से मिलाया हाथ..! “*
*- ओम कसारा ” ओमेंद्र “*
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भारतीय जनता पार्टी से जन-जन को यह बात जरूर सीखनी होगी कि जीत की कितनी भी प्रबल संभावना क्यों न हो , हमें अंत तक लड़ाई पूरे दमखम के साथ लड़ते रहना चाहिए । यदि भारतीय क्रिकेट टीम ने यह सबक सीखा होता तो शायद उसे हैदराबाद टेस्ट में इंग्लैंड के हाथों शर्मनाक हार का सामना नहीं करना पड़ता ।
वर्तमान में पूरा देश राममय है और राजनीति की मामूली सी समझ रखने वाले व्यक्ति को भी इस बात की जानकारी है कि भाजपा नीत एनडीए गठबंधन 2024 में एक बार फिर से केंद्र की सत्ता में आ रहा है , लेकिन इसके बावजूद बीजेपी का थिंक टैंक हर उस कांटे को बड़ी क्रूरता से कुचल रहा है जो उसकी जीत की राह में मामूली सा भी रोड़ा बन सकता है ।
पश्चिमी बंगाल में ममता बनर्जी व पंजाब में भगवंत मान के अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा करने और उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव द्वारा कांग्रेस को सिर्फ 11 लोकसभा सीटें ही देने के एकतरफा एलान के बाद इस बात में ज्यादा संशय नहीं रह गया था कि इंडिया गठबंधन अब सिर्फ नाम का ही रह गया है जो आगामी चुनाव में मोदी सरकार को ज्यादा चुनौती नहीं दे सकेगा । इसके बावजूद आधुनिक चाणक्य अमित शाह ने उस नीतीश कुमार को एनडीए में शामिल करने में तनिक भी संकोच नहीं किया जिसकी प्रमाणिकता अथवा निष्ठा दो कौड़ी की भी नहीं रह गई है । बिहार से संबद्ध एनडीए के तमाम नेता नीतीश के वापस आ जाने के बाद भले ही राज्य की सभी 40 लोकसभा सीटें जीतने की बातें करें लेकिन राजनैतिक पंडितों को इन दावों में ज्यादा दम नहीं लगता । विशेषकर , बिहार के गांव – गांव व ढाणी – ढाणी में घूम रही चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की जन सुराज पदयात्रा के बाद मतदाताओं में आ रही जागरुकता को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि वो अब नितिश कुमार को माफ करेंगे । ऐसे में भाजपा और उसके अन्य सहयोगी भले ही अपने हिस्से में आई सीटें जीत जाए लेकिन जनतादल यूनाइटेड को नीतीश की खोटी करनी का खामियाजा अवश्य ही भुगतना पड़ेगा । वैसे यह सब बाद की बातें है , आज की सच्चाई तो यह है कि नरेंद्र मोदी और उनकी टीम ने सैद्धांतिक नहीं बल्कि व्यवहारिक राजनीति करते हुए नीतीश कुमार को अपने खेमे में मिलाकर उस इंडिया गठबंधन की बखिया उधेड़कर रख दी है जिसके सूत्रधार ही नीतीश कुमार थे । अब भला विपक्ष किसके सहारे एकजुट होकर आगामी लोकसभा चुनाव में एनडीए प्रत्याशी के सामने अपना संयुक्त उम्मीदवार खड़ा कर पाएगा ? और यदि प्रभावी विपक्ष ही नहीं रहा तो भला कौन है जो वर्तमान रामयुग में एनडीए को 400 + के जादुई आंकड़े को छूने से रोक पाएगा ?