*भाजपा तो सीख गई राज करना पर कांग्रेस कब सीखेगी जनता के लिए विरोध करना*
*विपक्ष की भूमिका में भी सत्ताधारी रंग-ढंग होने से कांग्रेस से बढ़ी मतदाताओं की दूरी*
*निलेश कांठेड़*
कुछ वर्षों पहले तक राजनीतिक जगत में एक कहावत प्रचलित थी कि भाजपा राज करना नहीं जानती ओर कांग्रेस विरोध करना नहीं जानती। अब जो हालात बने है उससे लगता भाजपा ने तो कांग्रेस के दावपेच उसी पर आजमाते हुए राज करना सीख लिया पर कांग्रेस अब भी भाजपा की तरह विरोध करना नहीं सीख पाई है। भाजपा पहले राज करते हुए भी विरोधी दल वाली आदत छोड़ते हुए नहीं प्रतीत होती थी जिस कारण कांग्रेस वालों को यह कहने का अवसर मिल जाता था कि भाजपा वाले विरोध ही अच्छा कर सकते राज करना नहीं आता। अब ये धारणा टूट चुकी है ओर भाजपा पिछले एक दशक से देश में सत्ताधारी होने के साथ राजनीति के सभी दाव-पेच आजमाते हुए सत्ता कायम रखने के सभी गुर में दक्षता हासिल कर चुकी है। इसके विपरीत कांग्रेस अब केन्द्रीय शासन सहित अधिकतर जगह विपक्ष में होने के बावजूद उसके नेता सत्ताधारी मानसिकता का त्याग नहीं कर पा रहे है। इसके चलते वह विपक्ष की भूमिका भी सार्थक ढंग से नहीं निभा पा रही है। राजस्थान में भी सत्ता से बाहर होने के बावजूद कांग्रेस के कई नेताओं के रंग-ढंग अब भी सत्ताधारियों जैसे ही प्रतीत होते है। कांग्रेस के विपक्ष की भूमिका निभाने में परफेक्ट नहीं बन पाने से ही वह सत्ता के द्वार से दूर होती जा रही है। सत्ता के गलियारों में जनता की आवाज बन विपक्ष की भूमिका प्रभावशाली ढंग से निभाने पर ही कोई राजनीतिक दल भविष्य में सत्ता हासिल करने की सोच सकता है। कांग्रेस इसके विपरीत यह मानकर चलती प्रतीत होती है कि मतदाता जब भी भाजपा से निराश हो जाएंगे तो सत्ता उसे ही सौंप देंगे। ये मानकर चलने से ही लोकसभा चुनाव नजदीक होने के बावजूद कांग्रेस जमीनी स्तर पर अधिक सक्रिय नजर नहीं आ रही है। पिछले दो लोकसभा चुनाव जीत चुकी भाजपा विरोधी दल कांग्रेस से अधिक सक्रिय जमीनी स्तर पर दिखाई दे रही है जबकि हमेशा चुनाव से पहले सत्ताधारी दल रक्षात्मक ओर विपक्षी दल आक्रामक मुद्रा में होता है। इसके बार नजारा अलग प्रतीत हो रहा है। कांग्रेस जैसा विपक्षी दल स्वयं की ताकत तो बचा पाने की जद्दोजहद में लगा है तो केन्द्र व राजस्थान में राज कर रही भाजपा कांग्रेस की बचीखुची ताकत को भी समाप्त करने के लिए राजनीतिक शतरंज की हर चाल आजमा रही है। भाजपा की आक्रामकता व दबाव की राजनीति कांग्रेस के कई नेताओं को उसके द्वार तक पहुंचा रही है। राजस्थान में कांग्रेस के प्रमुख आदिवासी चेहरे महेन्द्रजीतसिंह मालवीय का भाजपा में जाना भी इसी राजनीतिक उखाड़-पछाड़ के खेल का एक पार्ट है। यहां यह भी कहना प्रासंगिक होगा कि लोकसभा चुनाव की विधिवत घोषणा से पूर्व ही भाजपा में प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक जब चुनावी समर में सीधे उतर चुके है वहीं कांग्रेस के अघोषित आलाकमान राहुल गांधी न्याय यात्रा में ही व्यस्त है। चुनावी रणनीति को अंतिम रूप देने की बजाय यात्रा को प्राथमिकता देने की राहुल की नीति स्वयं कांग्रेस के अंदर भी चर्चा का विषय है हालॉकि कार्रवाई के डर से खुलकर इस मामले में बोलने से अधिकतर नेता बचते रहे है। राजस्थान में पिछले दो लोकसभा चुनाव से सभी 25 सीटे भाजपा नीत एनडीए की झोली में जा रही है ओर क्लीन स्विप की हेट्रिक बनाने के लिए वह इस बार भी आतुर नजर आ रही है। इसके विपरीत कांग्रेस नेता भाषणों ओर बैठकों में तो लोकसभा चुनाव में अच्छी सीटे जीतने के दावे कर रहे है लेकिन जमीनी स्तर पर कहीं उस अनुरूप तैयारियां नजर नहीं आती है। राजस्थान में कांग्रेस में अंदरखाने चर्चा यहीं है कि राजनीतिक हालात को प्रतिकूल भांप कांग्रेस के बड़े नेता लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कतई उत्सुक नहीं है ओर वह खुद की बजाय अपने क्षेत्रों में दूसरे नेताओं का नाम आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे है। कांग्रेस को अपनी उपलब्धियों व ताकत से अधिक भाजपा सरका
र की विफलताओं के सहारे जीत की आस है जबकि कहा जाता है कि सफलता उसी को मिलती है जो मेहनत कर स्वयं पर भरोसा रखता है। दूसरी की विफलता के सहारे अपनी सफलता तलाशने पर निराशा ही दामन में आने वाली है। लोकसभा चुनाव में क्या परिणाम देश व राजस्थान में आएंगे यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन जो हालात अभी राजनीतिक जगत में बने हुए है उसमें कांग्रेस की सीटे वर्तमान से भी कम हो जाए तो राजनीतिक विश्लेषकों को शायद कोई आश्चर्य नहीं होगा। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ये तय माना जा रहा है कि भले प्रतिपक्ष की सीटे बढ़ जाए पर कांग्रेस की सीटे बढ़ना बहुत कठिन होगा। इस परिदृश्य को चुनाव से पहले कांग्रेस किस तरह बदल पाती है ये देखने की बात होगी।
*भीलवाड़ा में कांग्रेस में सीपी को मान रहे सबसे मजबूत दावेदार*
आगामी लोकसभा चुनाव में भीलवाड़ा संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस का प्रत्याशी कौन होगा ये तो पार्टी को अभी तय करना बाकी है पर प्रमुख समाचार पत्र दैनिक भास्कर द्वारा कराए गए सर्वे में मतदाताओं ने कांग्रेस का सबसे मजबूत प्रत्याशी वरिष्ठ नेता डॉ.सीपी जोशी को माना है। जोशी वर्ष 2009-14 तक भीलवाड़ा का प्रतिनिधित्व लोकसभा में कर चुके है। सर्वे में नाथद्वारा निवासी सीपी को सबसे अधिक मजबूत प्रत्याशी बताना संसदीय क्षेत्र के उन कांग्रेस नेताओं के लिए भी चिंतन का विषय होना चाहिए जो स्वयं का जनाधार पूरे संसदीय क्षेत्र में होने के दावे करते आए है। केवल दावे करने से काम नहीं चलेगा चुनाव जीतने के लिए उन मतदाताओं का विश्वास भी हासिल करना होगा जिनकी नजर में अभी कांग्रेस बहुत पीछे नजर आती है।
*स्वतंत्र पत्रकार एवं विश्लेषक*
पूर्व चीफ रिपोर्टर,राजस्थान पत्रिका, भीलवाड़ा
मो.9829537627