
ं *”कर्म व भाग्य दोनों जीवन की धुरी है”– संत दिग्विजय राम*
श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह की पूर्णाहुति हुई
✍️ *मोनू नामदेव।द वॉयस ऑफ राजस्थान 9667171141*
भीलवाड़ा/ गंगापुर 28 दिसंबर
बिना भाग्य व प्रारब्ध के किसी को कुछ भी प्राप्त नहीं होता है समय से पहले वह भाग्य से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता है जो व्यक्ति के भाग्य में नहीं होता है वह नहीं मिलता और जो भाग्य में है वह गया हुआ भी लौटकर वापस आ जाता है l भाग्य और कर्म एक सिक्के के दो पहलू है न भाग्य को नकारा जा सकता है न हीं कर्म को भुलाया जा सकता हैl व्यक्ति के जीवन में कर्म की प्रधानता है अतः व्यक्ति को अच्छे कर्म करना चाहिए व्यक्ति को कर्म करते हुए परिणाम ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए व्यक्ति को जो कुछ भी जीवन में प्राप्त होता है वह उसके प्रारब्ध का ही फल होता है कभी-कभी व्यक्ति की सूली की सजा सूल में बदल जाती है अतः भगवान की न्याय प्रणाली को दोष नहीं देना चाहिए जीवन में माया कभी-कभी अभिशाप बन जाती है इस संसार में किसी का काम रुकता नहीं है जो नहीं है वह ‘माया’ है भागवत महापुराण में कहा गया है कि किसी को दान में दी गई वस्तु पुनः स्वीकार करने से 60 हजार वर्ष तक मल का कीड़ा बनना पड़ता हैl इस संसार में मांगने से कुछ नहीं मिलता यदि मांगने से ही सब कुछ मिल जाता तो उस ईश्वर को कौन याद करता सुख-दुःख ,संपत्ति , वैभव सब व्यक्ति को प्रारब्ध अनुसार प्राप्त होते हैं जो प्रारब्ध भाग्य में लेकर आए हैं उनको भोगना ही पड़ता है चिंता करने से कुछ नहीं होता होता वही है जो हमारे भाग्य में लिखा हैl भाग्य जीव को कहां से कहां ले जाता है आदमी का जन्म कहां होता है कहां बड़ा होता है और कहां वह रहता है यह सब भाग्य का खेल है यह बात मुख्य जजमान नाथू लाल मुंन्दडा द्वारा आयोजित राधा कृष्ण वाटिका, गंगापुर में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह में कहि, इस अवसर पर नाथूलाल मुंन्दडा, रतनलाल मुंन्दडा,गोपाल मुंन्दडा, राजेश ,राकेश ,बसंती देवी, दुर्गा लाल ,सावित्री ,अनीता ,दीपा, मुंन्दडा, मुकेश डाड, कृष्णा डाड दक्षिणी राजस्थान प्रादेशिक महेश्वरी सभा के प्रदेश मंत्री देवेंद्र सोमानी, भीलवाड़ा नगर माहेश्वरी सभा उपाध्यक्ष महावीर समदानी , सिंगोली श्याम ट्रस्ट पूर्व अध्यक्ष प्रकाश चंद्र पोरवाल नै कथा समापन परभागवत जी की आरती कर महाराज श्री से आशीर्वाद लिया
महाराज जी ने कथा में विस्तार से बताते हुए कहा कि इस संसार में भक्ति करने वाले व्यक्ति को भी बहुत दुख प्राप्त होते हैं यह सब प्रारब्ध का ही फल है भाग्य किसी ने खोलकर नहीं देखा क्या पता व्यक्ति के भाग्य में क्या लिखा है सुख-दुख पाप पुण्य संपत्ति यह सब व्यक्ति के पुण्य से प्राप्त होते हैं l इस संसार में जीव का सामर्थ्य नहीं कि वह प्रभु कृपा के बिना एक स्वास भी ले सके परमात्मा की कृपा के बिना जीव एक क्षण भी जी नहीं सकता सबका समय उसे परमपिता परमात्मा ने निश्चित कर रखा है यह शरीर नश्वर है इसका नष्ट होना निश्चित है जिस प्रकार कपड़े का रंग फीका पड़ता है उसी अनुसार यह शरीर भी समय के साथ अपना रंग छोड़ देता है l व्यक्ति को समय व शब्द का प्रयोग बहुत ही सोच समझकर करना चाहिए चाकू का गाव तो भर जाता है लेकिन शब्दों का गाव नहीं भरता ,जुबान में हड्डी नहीं होती है परंतु जब यह चलती है तो अच्छे-अच्छे की हड्डियां टूट जाती है अतः जीवन में शब्द बड़े सोच समझकर बोलना चाहिए हमेशा मीठा बोलना और नम चलना सीखना चाहिए l महाभारत का युद्ध का बीजारोपण केवल द्रोपती के बोल से ही हुआ था l व्यक्ति का वास्तविक धन्य पुण्य है जो सुदामा के पास था l आज कथा प्रसंग में भगवान कृष्ण के विवाह ,जरासंध वध, कृष्ण सुदामा मित्रता ,राजा परीक्षित का मोक्ष प्रसंग सुनाते हुए भागवत कथा को विश्राम दिया गया l