वा…ह…रे ..नेताओं!
सबसे कम उम्र के शाहपुरा जिले को नही बचा सके जिले के कोई जनप्रतिनिधि।
शाहपुरा क्षेत्र की जनता को कांग्रेस के बाद भाजपा ने भी छला।
शाहपुरा में किसी भी राजनीतिक दल का कद्दावर नेता नही होने से नही बचा जिला।
शीर्ष नेता के अभाव में शाहपुरा विधानसभा क्षेत्र आज भी विकास की राह तकने को मजबूर है।
17 माह बाद टूटा जिला।
शाहपुरा- शाहपुरा को जिला बनाने की सबसे पहली व बड़ी गलती विगत कांग्रेस सरकार ने की जिन्होंने शाहपुरा को बिना जांचे परखे, जिला बनने के मापदंडों पर खरा नही उतरने के बाद भी केवल औऱ केवल अपना वोट बैंक बढ़ाने के प्रयास में शाहपुरा को जिला बनाने की श्रेणी में चिन्हित कर जिला बना डाला। जिले बनने की घोषणा को लेकर कांग्रेस ने जिला तो बना दिया। लेकिन कांग्रेस के ही कद्दावर नेताओं ने क्षेत्र की जनता के साथ छलावा किया। छलावा ही नही क्षेत्र की जनता के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात भी किया।
कांग्रेस नेताओं ने भीलवाड़ा जिले का बंटवारे को लेकर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हुए भीलवाड़ा मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर दराज के हुरड़ा, गुलाबपुरा को अपने स्वार्थ तथा भीलवाड़ा जिले का राजस्व बरकरार रखने को लेकर जानबूझ कर भीलवाड़ा जिले का ही हिस्सा बनाये रखा।
जिला बनने के बाद कांग्रेस के बड़े नेताओं के साथ साथ भाजपा के नेताओं ने भी शाहपुरा क्षेत्रवासियों को छलने में कोई कोर कसर नही छोड़ी।
शाहपुरा जिले के जहाजपुर, बनेड़ा उपखण्ड क्षेत्र के भाजपा नेता स्वयं नही चाहते थे की हम शाहपुरा जिले के हिस्सा बने। सत्ताधारी पार्टी के ही जिलानेता राजधानी के कई चक्कर काटकर अपने मंत्रियों से कानापुसि कर कर के स्वयं शाहपुरा जिले में नही रहने का अनुनय विनय करने की जानकारी जनता के सामने आई।
सबसे बड़ी शर्म की बात यह रही कि शाहपुरा के ही सबसे लोकप्रिय व बड़े जन प्रतिनिधि स्वयं शाहपुरा जिले को खण्ड खण्ड करने में कोई कसर नही छोड़ी।
शाहपुरा विधानसभा क्षेत्र के अपने आपको जननायक कहलवाने वाले बड़े जन प्रतिनिधि बनेड़ा क्षेत्र के एक प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व करते हुए राज्य सरकार से यह मांग की कि बनेड़ा को शाहपुरा जिले से निकाल कर भीलवाड़ा जिले में शामिल करें।
कांग्रेस राज में जिले का पुनः परिसीमन करवाने की मांग को लेकर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने आंदोलन करने वालों पर लाठियां बरसाई गई। आंदोलनकारियों के खिलाफ मामले दर्ज कर उनकी कमजोर नस दबा कर उनकी सम्पतियों को जप्त करने, नस्ते नाबूत करने की धमकियां देकर डराया, धमकाया और आंदोलनकारियों का दमन किया।
पंवार कमेटी की रिपोर्ट पर जिले के जाने की आशंका के चलते सर्व दलीय आंदोलन में सत्त्ता से जुड़े छूट पुट भईया व जनप्रतिनिधि भी अपनी ही सरकार के खिलाफ जनता के साथ खड़े होकर जिला बचाने की जद्दोजहद में एक छोटासा आंदोलन खड़ा करने की कोशिश की लेकिन जनप्रतिनिधि ने झूठे आश्वासन देकर जनता को गुमराह कर अंधेरे में रखकर आंदोलन को बढ़ने से रोक दिया।
इस आंदोलन की चिंगारी सुलगाने वाले सत्ताधारी कुछ छोटे जन प्रतिनिधियों की शिकायत अपने आला कमान के नेताओं के पास पहुंचे ही ऊपर से आला कमान के आये फरमान से सत्ता रूट से जुड़े लोगों ने आंदोलन की ओर बढ़ते कदम वापस खिंच लिए। आंदोलन की चिंगारी जिला प्रशासन के ज्ञापन तक ही सीमित रह गई।
जिले में सत्ताधारी पार्टी का एक भी कद्दावर नेता नही होने से यानी जिसकी पहुंच केवल जिले तक ही सीमित थी हाथ मलते ही दिखे।
राज्य सरकार में आसीन मंत्रियों तक भी अपनी पहुंच नही बना पाने में असक्षम जिले के नेता की हालत अब गांधी जी के बंदर के समान ही रही।
सत्तारुठ पार्टी के जिला पदाधिकारियों के साथ विपक्ष यानी कांग्रेस के जिला नेताओं की भी उदासीनता के कारण जिले जाने का एक कारण बना। विपक्ष कमजोर होने से बड़े स्तर पर कोई विरोध दर्ज नही करवाने का भी जनता को मलाल है व भविष्य में रहेगा।
अब क्या कहे….किससे कहे…औऱ कहे तो भी क्या कहे?
कल शाहपुरा बंद करवाने के बाद क्या सरकार जिले को पुनः बहाल रख पाएगी?
अब तो सांप निकलने के बाद लाठी पीटने वाली कहावत यहां चरितार्थ साबित होने जा रही है।
साभार –
राजेन्द्र पाराशर, शाहपुरा