*भागवत कथा में रुक्मणी विवाह का मंचन, भक्तों ने लगायें जयकारे*
✍️ *मोनू नामदेव।द वॉयस ऑफ राजस्थान 9667171141*
शाहपुरा।कस्बे के कोली समिति प्रांगण में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में आज साहित्याचार्य पंडित कमलेश शास्त्री ने कहा की समस्या का समाधान चिंता से नहीं होता वह तो प्रभु चिंतन से ही होता है हृदय में अगर क्रुरता व कपट भाव है तो भगवान को नहीं पाया जा सकता वह तो हृदय में निश्छल प्रेम भाव है निष्कपट प्रेम भाव से ही पाया जा सकता है कृष्णा तो ब्रह्म व परमात्मा है परमपिता परमेश्वर अपने बाल रूप में कितने सुंदर लगते हैं शास्त्री ने कथा में बताया कि इससे आपका भला होता है परंतु अपने माता-पिता की सेवा करने के भाव को कभी नहीं छोड़ना क्योंकि उनके चरणों में ही चारों धाम है ब्रज में नंद बाबा के यहां पर स्वयं को भेजा और कहां की ब्रज वासियों को व कान्हा व बलराम को भी साथ लेकर आए और उस यज्ञ में राजा कंस ने कुश्ती करने कृष्ण और बलराम को नगर के सबसे बड़े पहलवान कुश्तीबाजों से युद्ध के लिए कहा क्योंकि कंस ने उन दोनों को मारने के लिए ही यह आयोजन किया परंतु यह क्या कृष्ण और बलराम ने तो उन दोनों कुश्तीबाजों को मार दिया वह कृष्ण ने 27 फीट ऊंचे आसन पर बैठे राजा कंस को मारने के उस मंच पर छलांग लगा दी और कंस को उसकी तलवार को लेकर मामा कंस का मस्तक काट दिया व मथुरा वासियों को उसके पापा से छुटकारा दिलाया वह नाना उग्रसेन को वापस राज्य का महाराजा बनाया इस कथा में मां यशोदा से कहा कि मुझे भले ही देवकी ने जन्म दिया परंतु आने वाले कल व भविष्य में मुझे यशोदा मैया के लाल के रूप में जाना जाएगा भजन यशोदा का नंद लाला ब्रज का उजाला है व आशा रख पगली वो कृष्ण आएंगे भजन पर श्रोता खूब झूमे जिंदगी भर अपने आप को छोटा मान लो परंतु अंत समय में मुझे बड़ा मानकर आपका जीवन सुधार लो शास्त्री ने कृष्ण रुक्मणी विवाह प्रसंग में बताया कि यह तो प्रेम की बात है उद्धो बंदगी तेरे बस की नहीं है भजन पर श्रोता झूमे व विवाह के लिए द्वारकापुरी में आए और द्वारकाधीश कहलाए विदर्भ देश के राजा विस्मक की कन्या का स्वयंवर रुकमा बेटा व रुक्मणी बेटी है नारद द्वारा अपने आप को द्वारकाधीश कहकर उस स्वयंवर में आते हैं और सारे देश के राजा भी आते परंतु रुकमा द्वारा बहन का विवाह शिशुपाल के साथ करने की बात पर राजा विस्मक के द्वारा विवाह पत्रिका कृष्ण के पास भेजते हैं और विवाह के लिए कह देते हैं कि आप रुक्मणी से विवाह करो तब कृष्ण वहां आते हैं और स्वयंवर में उनको ना देखकर रुक्मणी राज भवन से बाहर निकलती है वहां पर रुक्मणी को कृष्ण भगवान रथ पर मिलते हैं तब वह स्वयंवर की माला कृष्ण को पहनाकर उनको वर के रूप में चुनती है इस प्रसंग की आज कथा में कृष्ण व रुक्मणी विवाह की भव्य संजीव जांकी सजाई गई तथा कथा आयोजक से पूजा करा कर कन्यादान कराया। आज मंगलवार को आयोजक रामगोपाल राजाराम पोरवाल ने बताया कथा में सुदामा चरित्र श्रीमद् भागवत व्यास पूजन और सुखदेव विदाई हवन के साथ पूर्णाहुति होगी।