*शिक्षक हैं या सरकार के बेगारी*
-पढ़ाई के अलावा सभी काम करवाती है सरकार
-इसीलिए तो सरकारी स्कूलों की दुर्दशा हो रही है
-शिक्षक दूसरे कामों में जोत दिए जाते हैं, तो बच्चे कैसे पढ़ेंगे
-अब ग्रीष्मावकाश में भी जमानेभर के काम सौंप दिए
✍️ *मोनू सुरेश छीपा*
*द वॉइस आफ राजस्थान*
👉शिक्षक हैं या सरकार के बेगारी। पढ़ाई के अलावा सभी काम करवाती है सरकार। इसीलिए तो सरकारी स्कूलों की दुर्दशा हो रही है। शिक्षक दूसरे कामों में जोत दिए जाते हैं, तो बच्चे कैसे पढ़ेंगे। अब ग्रीष्मावकाश में भी जमानेभर के काम सौंप दिए। काम के बोझ के मारे शिक्षक अब अपनी व्यथा किससे कहें, कोई भी सुनने वाला नहीं है। भले ही सरकार अपनी योजनाओं को सफल बनाने के लिए शिक्षकों को लगा देती है, उनके पीछे लट्ठ लेकर पड़ जाती है, लेकिन यह नहीं देखती कि शिक्षकों को अन्य कामों में लगाने से स्कूलों में पढ़ाई का क्या होगा। आप शिक्षकों की व्यथा देखिए, बच्चों को स्कूलों में पढ़ाने वाले कभी मतदाता सूचियां सुधारने, कभी जानवरों की गिनती करने, कभी महंगाई राहत शिविर में रजिस्ट्रेशन कराने, कभी शहरी ओलंपिक, कभी ग्रामीण ओलंपिक कराने, कभी बाल विवाह पर नजर रखने जैसे अनेक कामों में लगा दिए जाते हैं, जिन्हें निभाने के लिए वे गांव-गांव, ढाणी-ढाणी, गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले घूमते फिरते हैं। अब सरकार उनकी गर्मी की छुट्टियां भी हजम कर रही है। राजस्थान सरकार शिक्षा विभाग में कहने को तो वर्षभर का कार्य का ब्यौरा शिविरा पंचांग में घोषित करती है, परंतु शिक्षकों को विभिन्न प्रकार के गैरशैक्षणिक कार्यों में लगा दिया जाता है। शिक्षकों के लिए ग्रीष्मावकाश या अन्य अवकाश मात्र कहने-सुनने जैसे रह गए हैं। असलियत में शिक्षकों को पिछले कई वर्षों से निर्बाध ग्रीष्मावकाश प्राप्त नहीं हुए हैं। अभी भी हालात देखें तो ग्रामीण ओलंपिक, शहरी ओलंपिक, बीएलओ का डोर टू डोर सर्वे, कला किट का विद्यालय में आना, दुग्ध पैकेट के लिए विद्यालय खोलना, आंगनबाड़ी के फर्नीचर आदि के लिए स्कूल खोलने आदि कार्यों में लगा दिया गया है। अब छात्रों की डिटेल को वेरीफाई करने का काम दिया गया है। अब सवाल यह उठता है कि क्या शिक्षा विभाग के अधिकारी या वह लोग, जो इस प्रकार के आदेश निकालते हैं, उन्हें ज्ञात नहीं कि ग्रीष्मावकाश में शिक्षक अपने मुख्यावास पर नहीं रहते हैं। ऐसे में इस प्रकार के आदेश निकालने से शिक्षक व संस्था प्रधान को मानसिक वेदना और प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है। क्या इस प्रकार के आदेश निकालने से पहले शिविरा पंचांग नहीं देखा जाना चाहिए। शिक्षा विभाग द्वारा वर्षभर के लिए शिविरा पंचांग जारी तो किया जाता है, परंतु अनेक अवसर ऐसे आते हैं, जब शिविरा पंचांग को नजरअंदाज करते हुए विभिन्न प्रकार के आदेश निकाल दिए जाते हैं। ऐसे में शिविरा पंचांग महज मजाक बनकर रह गया है। राजस्थान शिक्षक संघ राधाकृष्णन व राधाकृष्णन शिक्षिका सेना ने इस प्रकार के आदेशों का विरोध किया है। दोनों संगठनों के नुमाइंदों का कहना है कि अधिकारी अपनी कार्यशैली में सुधार लाएं और शिविरा पंचांग के अनुसार कार्य आदेश जारी करें या फिर यह कह दें कि शिक्षा विभाग में किसी प्रकार का अवकाश नहीं होगा। ना ऐच्छिक, ना राजपत्रित, ना शीतकालीन, ना मध्यावधि और ना ही ग्रीष्मावकाश होगा। साल के 365 दिन शिक्षकों को किसी भी प्रकार के काम में जोता जा सकेगा। उनका कहना है कि शिक्षा विभाग में कहने को अवकाश दिया जाता है, किंतु अवकाश वाले दिन विभिन्न कार्यों में शिक्षकों को लगा दिया जाता है। उनका यह भी कहना है कि अब शिक्षकों के सब्र का बांध टूटता जा रहा है। शिक्षकों का आक्रोश कभी भी ज्वालामुखी बनकर फूट सकता है।