*‼️अब भी इतना आसान नहीं गहलोत और सचिन के बीच सुलह करवाना‼️*😴
_*एक को मनाऊं तो दूसरा रूठ जाता है,*_
_*शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता है!*_😇
*✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
*कांग्रेस पार्टी अति उत्साह में है। उम्मीद की जा रही है कि आज शाम तक कई लंबित पड़े फ़ैसले हो जाएंगे। कल के अख़बारों में सुर्खियां होंगी। सचिन पाललेट और अशोक गहलोत के बीच सुलह करवा दी जाएगी।*🤝
*सुलह किस रूप में होगी यह भले ही तय नहीं है मगर कहा यही जा रहा है कि चुनावों के लिए कोई न कोई कारगर फ़ैसला हो जाएगा।*🙋♂️
*जहां तक मेरी राजनीतिक पकड़ का सवाल है मुझे सचिन और अशोक गहलोत के बीच कोई स्थाई समझौते के आसार नज़र नहीं आ रहे। दोनों ही नेताओं की ज़िद को दुनिया अब तक पूरी तरह से जान चुकी है। ख़ास तौर से गहलोत अपने ज़रा से भी विरुद्ध हुए फ़ैसले को पहली बात तो स्वीकार ही नहीं करेंगे और यदि राजनैतिक दवाब में मान भी गए तो गेयर बदल कर कोई न कोई फच्चर अड़ा देंगे।फच्चर भी इस क्वालिटी का कि जैसे गले मे अटकी हड्डी होती है।*😝
*यहाँ लगे हाथ आपको बता दूँ कि आज हाई कमान की जो महत्वपूर्ण बैठक हो रही है उसमें शामिल होने के लिए बेहद शातिर समझे जाने वाले दो नेताओं को बैठक के लिए अवांछित माना गया है।शांति धारीवाल और महेश जोशी को बैठक में शामिल होना था। धारीवाल तो दिल्ली पहुंच भी गए थे मगर उनको हाईकमान ने ब्लैक लिस्टेड क़रार देते हुए आमंत्रित नहीं किया है। धारीवाल, जोशी और अजमेर में हनुमानी गोटा घुमाने वाले धर्मेन्द्र राठौड़ को उनके पार्टी विरोधी हरक़त का अब भी दोषी माना जा रहा है। ये बात अलग है कि उनके विरुद्ध सीधे तौर पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है।*😇
*धारीवाल और जोशी यदि बैठक में होते तो शायद गहलोत के पक्ष को मजबूती मिल जाती मगर लगता है इस बार गहलोत को घेर कर कमज़ोर और सचिन को मुक्त हस्त से मज़बूत किया जाएगा।*👍
*क्या होगा❓️यह दावे के साथ तो कोई नहीं कह सकता मगर फ़ैसला भाजपा की तर्ज़ पर होगा। भाजपा हाईकमान जिस तरह चुनाव प्रबंध समिति बनाकर वसुंधरा और बाक़ी नेताओं को एक जुट करने जा रही है ठीक उसी तर्ज़ पर कांग्रेस भी राजस्थान में इसी तरह की चुनाव प्रबंध समिति बनाएगी और चुनाव संयोजक सचिन पायलट को बनाया जाएगा। दूसरा फार्मूला यह भी हो सकता है कि राजस्थान को तीन भागों में बांटा जाए। राज्य का आधा आधा हिस्सा और टिकटों की ज़िम्मेदारी गहलोत और सचिन के बीच बांट दी जाए। तीसरा हिस्सा अलवर संसदीय क्षेत्र का भंवर जीतेन्द्र सिंह को दे दिया जाए। जो ज़ियादा विधायक जितवा कर लाए उसे मुख्यमंत्री का ताज़ पहना दिया जाए।सचिन तो इस फार्मूले के लिए सहमत हो भी जाएं मगर लगता नहीं कि गहलोत को यह फार्मूला मंज़ूर होगा।*🙄
*यदि सचिन को चुनाव समिति का संयोजक बनाया गया तो तय है कि टिकिटों के बंटवारों में उनको अतिरिक्त मजबूती मिल जाएगी जो गहलोत और उनके समर्थकों को मंज़ूर नहीं होगा। ऐसे में गहलोत का वर्तमान संख्या बल किस तरह प्रतिक्रिया देगा इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है।*🙋♂️
*संख्याबल की सियासत पहले भी दिखाई जा चुकी है । तब की ही तो तलवार धारीवाल, जोशी और धर्मेन्द्र राठौड़ पर आज तक लटकी हुई है। ये तीनों नेता तो आज भी गहलोत के कथा वाचक हैं। इस्तीफों की राजनीति यदि चुनावों से ठीक पहले खेल दी गई तो हाईकमान की सारी कवायदों पर बारिश हो जाएगी। भाजपा के लिए मैदान ख़ाली हो जाएगा।*🤪
*राजनीति संभावनाओं का खेल है। यह जुआ जैसा है। राजनीतिक वैश्यावृत्ति के उल्लेख भी इतिहास में मिलते हैं।*
*सोनिया! राहुल! प्रियंका ! खड़गे! वेणुगोपाल !और स्वामी प्रमोदम जैसे अन्य तुर्रम खां जितना आसान सचिन और गहलोत के बीच सुलह को समझ रहे हैं उतनी आसान है नहीं। कोई नकारा निकम्मा टिकिट बांटे और गहलोत के 90 पक्षधर ख़ामोश बैठ जाएं यह इतना सम्भव नहीं। फिर ख़ुद ख़ुदा जाने।*🤷♂️