शिव को जल की धारा बहुत प्रिय है, शिव के पूजन में जल की प्रधानता है। = मोरारी बापू
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गुलाबपुरा (रामकिशन वैष्णव) स्थानीय सार्वजनिक धर्मशाला में चल रहे श्रीदिव्य चातुर्मास सत्संग
महामहोत्सव में श्रीशिवमहापुराण कथा में कथा व्यास-श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू ने बताया कि भगवान् शिव जी का पूजन कैसे करना चाहिए? श्री
शिवमहापुराण में उस पर विचार किया गया है। मूर्ति पूजन के कई भेद हैं- पंचोपचार, षोड़शोपचार, चतुष्ट-उपचार और महा-उपचार।
भगवान् की पूजा एक बहुत बड़ी साधना है। पूजा में दो शब्द हैं’,पू और जा।पू शब्द का अर्थ है ऐश्वर्य, लक्ष्मी, सुख संपत्ति और जा का अर्थ है प्राप्ति। जिसके द्वारा ऐश्वर्य सुख और संपत्ति का जन्म हो, प्राप्ति हो और ईश्वर तत्व का बोध हो, उसे कहते हैं पूजा। अपने घर में पूजन जरूर करना चाहिए। यदि घर के पास कोई मंदिर है, वहां जाकर भगवान् का दर्शन करो, पूजन करो, पूजा अनादि काल से चली आ रही है। भगवान् शंकर की पूजा या किसी भी देवता की पूजा पंचोपचार से करना चाहिए। कम से कम पांच चीजें समर्पित करनी चाहिए- गंध, पुष्प, धूप,दीप और नैवेद्य। यदि शिवलिंग के पास पहुंच गये, तब जलधारा चढ़ाओ। जलधारा प्रियः शिवः। शिव को जल की धारा बहुत प्रिय है।शिव के पूजन में जल की प्रधानता है, इसीलिए शिव पूजन मे जल जरूर चढ़ाएं।
भगवान विष्णु, राम, कृष्ण के पूजन में जल नहीं चढ़ाते। जो सोलह श्रृंगार किए खड़ा हो और उनके ऊपर आप जल चढ़ाने लगो, तब समस्या खड़ी नहीं हो जायेगी। शिव शंकर की पूजा में आप जल चढ़ाने के लिए आते जाओ और एक लोटा जल चढ़ाते जाओ और जलधारा से शिव प्रसन्न हो जाते हैं। यदि अखंड जलधारा आप चढ़ाने लग जाओ फिर मौज ही मौज है।
एक तिपाई लेकर उस पर छिद्र वाला घट रख दीजिए, सारा दिन एक-एक बिंदु शंकर पर गिरता रहे। भगवान शंकर पर जो जल की धारा गिरती है, उससे जितना शीतल शिव होते जाएंगे,आपके हृदय को भी उतनी शीतलता प्राप्त होती जाएगी। वैसी ही शीतलता होती जाएगी क्योंकि जिस पर आप जल चढ़ा रहे हैं, उसका अंश आपके भीतर आत्मा के रूप में विद्यमान है। इस दौरान दिव्य सत्संग व्यवस्थापक श्री घनश्यामदास जी महाराज, श्री दिव्य सत्संग मंडल के पदाधिकारी एवं श्रद्धालु मौजूद थे।