श्री मद्भभागवत कथा में श्री दिव्य मोरारी बापू ने नन्दोत्सव व श्री कृष्ण की बाललीला का विस्तार से वर्णन किया।
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गुलाबपुरा (रामकिशन वैष्णव) सार्वजनिक धर्मशाला में चल रहे श्रीदिव्य चातुर्मास सत्संग
महामहोत्सव पाक्षिक श्रीमद्भागवत ज्ञानयज्ञ कथा में
कथा व्यास-श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू ने
नंदोत्सव एवं बाललीला का वर्णन करते हुए बताया कि अविद्या रूपी पूतना को मां की गति प्रदान करने वाले- दयालु भगवान् श्रीकृष्ण थे। पूतना पहुंच गई भगवान् के पालने के पास। सोने का पालना, पालने को झूलाती हुई बैठ गई। यशोदा को देखकर बोली, तुमने लाल को जन्म दिया है, तुम्हें बधाई हो। बच्चें को ऐसे दूध पिलाना चाहिए, ऐसे गोंद में लिटाना चाहिए, और ऐसे हाथ नीचे लगाओ, ऐसे नीचे और इस प्रकार दूध पिलाना चाहिए। अभिनय करते-2 उसने भगवान् को दूध पिलाना शुरू कर दिया और जड़ में जहर लगाकर आई थी, उस तीखे जहर से उसने कितने बच्चों को मार दिया था।
भगवान ने दूध पीना शुरू कर दिया। पूतना भाग्यशाली है जो भगवान को दूध पिला रही है। अब भगवान दूध पी रहे हैं, पी रहे हैं। पूतना मन में सोच रही है कंस का शत्रु मर गया, तो मैं कंस से पूरे एक प्रदेश का राज्य ले लूंगी। भगवान् ने सोचा कि तू क्या प्रदेश का राज्य लेती है? मैं तुम्हें बैकुंठ का राज्य दे देता हूं।
पूतना का भगवान ने मोक्ष किया। आकाश से फूलों की बरसात होने लगी, देवता जय-जय करने लगे।
श्री शुकदेव जी की आंख में आंसू भर आये। उन्होंने कहा परीक्षित पूतना की कथा ने ही मुझे भगवान् श्रीकृष्ण की ओर मोड़ा था। जब मैं पूतना की कथा पिताजी से सुनी, तो बस कृष्ण का भक्त बन गया।
पूतना भगवान् बालकृष्ण को मारने आई थी। उस पूतना का भी भगवान् ने उद्धार किया, तो अगर कोई भक्त श्रद्धा भक्ति से भगवान् की पूजा आराधना करेगा तो उसका उद्धार क्या नहीं होगा? अर्थात् अवश्य होगा। कथा में श्री दिव्य चातुर्मास संत्सग मंडल आयोजक घनश्यामदास जी महाराज, सत्संग मंडल अध्यक्ष अरविंद सोमाणी, विजय प्रकाश शर्मा, सुभाषचंद्र जोशी सहित श्रद्धालु मौजूद थे।