तो क्या राजस्थान में विधानसभा चुनाव की मतदान की तिथि बदल जाएगी?
आखिर चुनाव आयोग से देवउठनी ग्यारस वाली चूक कैसे हुई?
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चुनाव आयोग ने राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान की तारीख 23 नवंबर तय की है। पूरे प्रदेश में एक ही दिन में चुनाव हो जाएंगे। प्रदेश में 30 अक्टूबर से नामांकन प्रक्रिया शुरू हो जाएगी, लेकिन मतदान की तारीख घोषित होते ही विरोध भी शुरू हो गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि चुनाव आयोग ने 23 नवंबर की तारीख निर्धारित करते समय राजस्थान की सामाजिक धार्मिक परंपरा का ख्याल नहीं रखा। आमतौर पर आयोग इस बात का ख्याल रखता है कि मतदान वाले दिन कोई बड़ा सामाजिक और धार्मिक उत्सव न हो। यदि चुनाव प्रक्रिया से जुड़े अधिकारी राजस्थान की सामाजिक और धार्मिक परंपराओं को जानते तो मतदान के लिए 23 नवंबर का दिन तय नहीं करते। शायद अधिकारियों ने हिन्दू कैलेंडर को देखने के काम भी नहीं किया। सब जानते हैं कि राजस्थान में हिन्दू कैलेण्डर के कार्तिक माह की तिथि देवउठनी ग्यारस का सामाजिक और धार्मिक महत्व है। राजस्थान के रंग रंगीलो माहौल में कार्तिक माह की ग्यारस को शुभ दिन माना जाता है। यही वजह है कि ग्रामीण क्षेत्र में इस दिन हजारों शादियां होती है। कार्तिक माह की ग्यारस तिथि पर कोई शुभ कार्य करने के लिए किसी पंडित से मुहूर्त निकालने की जरूरत भी नहीं होती। ग्रामीण इस तिथि का पूरे वर्ष इंतज़ार करते हैं। जब इस तिथि पर प्रदेश में हजारों शादियां होंगी तो फिर मतदान पर असर तो पड़ेगा ही। मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए चुनाव भी करोड़ों रुपया खर्च करता है। जागरुकता के लिए विशेष अभियान चलाए जाते हैं, लेकिन इन सभी प्रयासों पर चुनाव आयोग खुद पानी फेरता नजर आ रहा है। आयोग चाहे कितने भी प्रयास कर ले, लेकिन यदि 23 नवंबर को मतदान होता है तो राजस्थान में मतदान के प्रतिशत में बड़ी कमी आएगी। कार्तिक माह की ग्यारस पर इस सामाजिक परंपरा के साथ धार्मिक भावना भी जुड़ी हुई है। राजस्थान के तीर्थ स्थल पुष्कर में पंचतीर्थ का जबरदस्त महत्व है। इस दिन लाखों श्रद्धालु पुष्कर आकर पवित्र सरोवर में स्नान करते हैं। ऐसे में चुनाव आयोग को चाहिए कि राजस्थान में 23 नवंबर की तिथि में बदलाव किया जाए। साथ ही इस बात की जांच करवाई जाए कि आखिर 23 नवंबर का निर्धारण करते समय राजस्थान की सामाजिक और धार्मिक परंपराओं का ख्याल क्यों नहीं रख गया है? चुनाव आयोग को एक स्वतंत्र और संवैधानिक संस्था माना जाता है। ऐसे में चुनाव प्रक्रिया में लगे सभी अधिकारियों का यह दायित्व है कि वे प्रदेश की सामाजिक और धार्मिक परंपराओं का ख्याल रखे।
S.P.MITTAL BLOGGER (10-10-2023)