पहले ह्रदय में भक्ति आती है तो पीछे भगवान् दिखाई देने लगते है।= श्री दिव्य मोरारी बापू
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गुलाबपुरा (रामकिशन वैष्णव) सार्वजनिक धर्मशाला में चल रहे श्रीदिव्य चातुर्मास सत्संग
महामहोत्सव नवदिवसीय श्रीरामकथा ज्ञानयज्ञ में
कथा व्यास-श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू ने श्रीसीताराम विवाह प्रसंग का विस्तृत वर्णन करते हुए बताया कि भगवान श्री राम के साथ श्री जानकी जी मंडप में बैठीं- तो ऊपर तो देख नहीं सकती श्रीराम को सबके सामने, पर आंखें मानती नहीं देखे बिना, तो लिखा है कि जो हाथों में मणियों के कंगन थे, उन मणियों में भगवान् राम की मूर्ति दिखाई देने लगी। तो नीचे आंख किए हुए- कंगन में श्रीराम के स्वरूप का दर्शन करती हैं।ॠषि-महर्षि कहते हैं कि- पूजन करो। गणेश का गौरी का- पंडित जी कर रहे थे तो श्री सीता जी हाथ नहीं उठाती। क्यों नहीं उठाती? कि हाथ उठेगा, जरा सा भी हीलेंगे तो दर्शन में बाधा पड़ जायेगी। ” राम को रूप निहारात जानकी, कंगन के नग की परछाईं।।”
भगवान श्री राम तो श्री सीता जी को देखकर ऐसे मुग्ध हो गये कि पंडित जी ने कहा कि- गणेश- गौरी को जरा सिंदूर लगा दो, चावल चढ़ा दो, तो श्री राम जी चंदन-चावल उठा करके श्रीसीता जी को लगाना शुरू कर दिये। बड़ी विलक्षण बात है जब महाराज जनक ने पांव पखारे। सनातन धर्म में वर विष्णु का रूप होता है और कन्या लक्ष्मी रूप होती है।” लगे पखारन पायं पंकज, प्रेम तन फुलकावली।” पैर पखारने लगे।
महराज जनक के शरीर में रोमांच हो गया, मैं बड़ा भाग्यशाली हूं। आज जगत पिता परमात्मा के चरण धो रहा हूँ । जिनके जल को शंकर ने गंगा के रूप में धारण किया हुआ है, आज वे साक्षात् चरण मुझे मिल रहे हैं। जब चरण धो रहे थे तो देवता पुष्प बरसा के बाजे बजाकर जय-जयकार कर रहे थे।
हवन हुआ, कन्यादान के बाद परिक्रमा (भांवर) परिक्रमा में पहले तो कन्या आगे रहती है वर पीछे रहता है चार फेरे तक। और फिर वर आगे और कन्या पीछे हो जाती है, ऐसी वैदिक सनातन पद्धति है। तो आगे श्री सीता जी हैं और पीछे श्री राम जी हैं। चारों तरफ मणियों के खंभे थे जो मंडप बनाया गया था। विवाह मंडप वह मणिमय था।
संत जन कहते हैं – आप अपने हृदय को मंडप बना लो और भगवान राम का हृदय में दर्शन करो। जीवन सफल करो। भगवती जानकी आगे-आगेध नचलती है और राम जी पीछे-पीछे चलते हैं तो खम्भे में पहले सीता जी दिखती हैं इसके बाद राम जी दिखते हैं जो आगे होगा वह पहले दिखेगा। और श्री सीता जी आगे बढ़ी खंबे में दिखाई नहीं देती। तो फिर राम भी आगे बढ़ गये तो वे भी नहीं दिखाई देते। तो संतो ने व्याख्या किया, कि- सीता जी हैं भक्ति और राम है ब्रह्म। पहले सीता जी दिखती हैं खम्भे में, फिर राम दिखने लगते हैं। अर्थात् पहले हृदय में भक्ति आती है तो पीछे भगवान दिखाई देने लगते हैं।
जिस हृदय में पहले भक्ति आयेगी उसमें बाद में भगवान दिखेंगे। जिस हृदय से भक्ति चली जायेगी, वहां से भगवान भी चले जाते हैं। अगर भगवान को पकड़ के रखना है, हृदय में बसा के रखना है ।तो भक्ति को पकड़ लो। उपमा देते हैं कवि, ऐसा लगता था जैसे कामदेव और रति अनेक रूप बनाकर खम्भों में प्रकट होकर भगवान राम का विवाह देख रहे हैं। कथा में श्री दिव्य सत्संग मंडल अध्यक्ष अरविंद सोमाणी, विजय प्रकाश शर्मा, सुभाष चंद्र जोशी, रामेश्वर दास, रविशंकर, नंदलाल काबरा, मधुसूदन मिश्रा सहित श्रद्धालु मौजूद थे।