●एक नजरिया
*विधानसभा आम चुनाव राजस्थान*
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राजस्थान की जनता पिछले एक माह से मीडिया और गहलोत की मीडिया कम्पनी का प्रायोजित दबाव झेल रही थी, जिसमे *राजस्थान को घोषनास्थान* और *गहलोत को राजस्थान का अमिताभ बच्चन* दिखाया जा रहा था।
हईं
😜😜
जनता को *इतनी घोषणाएं और रेवड़ियां खिलाई गयी कि अपच हो गया।* सरकारी तंत्र का दुरुपयोग कर खूब रेवड़ियां बाँटी गयी। इन्ही *1.31 करोड़ लाभार्थियों के भरोसे गहलोत जी सरकार रिपीट करने चले है।* लाभार्थियों मे कितने नमक का हक अदा करेंगे और कितने अगली सरकार से ज्यादा रेवड़ियों की आकांक्षा में सूपड़ा साफ करेंगे, ये तो आने वाला समय ही बताएगा।
जननायक और जादूगर के स्वघोषित तगमो के साथ गहलोत छाए रहे। भाजपा ने भी मोदी के जहाज का लंगर राजस्थान में ही डाल दिया। वसुंधरा को आंख भी दिखाई और मनाया भी। कुल मिला कर मनोरंजक राजनैतिक ड्रामा खूब हुआ है। जनता ने भी आनंद लिया, पर पत्ते नही खोले है।
अब वोटिंग हो चुकी है, और नेताओं का भाग्य ईवीएम में बन्द हो गया है। *3 दिसम्बर को परिणामो का जिन्न बाहर आ ही जायेगा।*😎😎
किसे बहुमत मिलेगा और कौन सरकार बनाएगा, इस पर अलग अलग कयास लगाए जा रहे है। 30 नवम्बर बाद ओपिनियन पोल भी आ जाएंगे। परिणाम जो भी हो, लेकिन हर आम और खास, अपने अपने तरीके से आंकलन कर माहौल का विश्लेषण तो कर ही रहा है।
आज का सट्टा बाजार भाजपा की सरकार बनने की संभावना दिखा रहा है। भाव घट बढ़ रहे है, पर कांग्रेस 70 तक भी नही पहुंच पा रही है। 😉😉
ज्योतिष भी अपने तरीके से ग्रहों नक्षत्रों की स्थिति बांच रहा है, और सरकार परिवर्तन का योग बता रहे है। भविष्यवाणियों में कितनी सच्चाई है, ये 3 दिसम्बर को पता चलेगा।
कयास है कि, कांग्रेस हाइकमान के लिए भी गहलोत को काबू में रखने का यही उपाय दिख रहा है कि *राजस्थान में 5 वर्ष का सत्ता विराम मिले।* इस बार कांग्रेस के हारने पर ही गहलोत युग का अंत हो सकेगा, अन्यथा *सर कटने के बाद भी लड़ने की गहलोत की क्षमता* से आलाकमान डरा हुआ सा दिखता है।🤓🤓
भाजपा के क्षत्रप 100 से अधिक सीटे चाहते है, पर वसुंधरा की गणित 95 तक ही पहुंचने की है। मोदी शाह को काबू रखना भी तभी सम्भव हो सकेगा।😁😁
पिछली बार से डेढ़ प्रतिशत मतदान अधिक हुआ है। *रिकॉर्ड 3 करोड़ 92 लाख राजस्थानियों* ने अपना वोट दिया है। ये बढ़ा मतदान प्रथमदृष्ट्या, परिवर्तन की आहट सुना रहा है।🤓🤓
कांग्रेस को पार्टी कार्यकर्ताओं के अलावा मुस्लिम वोट एकमुश्त मिले है। करोड़ो योजना लाभार्थी और जातिगत वोटों के वोटों ने कांग्रेस ✋ को लगातार टक्कर में रखा हुआ है। *यही वो समीकरण है, जिससे रिवाज बदलने की भविष्यवाणी की जा रही है।*🥳🥳
इस बार भाजपा को मोदी का ही भरोसा है। वसुंधरा तक मोदी मोदी कर रही है। प्रादेशिक नेतागण तो अपने क्षेत्र तक ही सीमित रह गए। लगातार सभाओं और रोड शो में राम मंदिर🛕🛕 और बुलडोजर बाबा ने पूरे चुनाव को भगवा🚩🚩 कर दिया। जातिगत समीकरणों को साधने के अलावा मुस्लिम तुस्टीकरण को भी भाजपा ने बड़ा मुद्दा बनाया। कांग्रेस सरकार की नाकामियों जैसे पेपर लीक, महिला अत्याचार, भ्रस्टाचार आदि मुद्दे गरमाये रहे। ED और लाल डायरी📕📕 भी बड़े प्रभावी मुद्दे बने थे। कुल मिला कर परंपरागत वोटों के अलावा हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा का मजबूत हथियार बना हुआ है।💪💪
चुनाव परिणामो पर इनका असर तो 3 दिसम्बर को ही पता चले सकेगा।
यूं तो *पूर्वी राजस्थान के गुर्जरो की कांग्रेस से नाराजगी* भी कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ती दिखी। उम्मीदवारों का चयन, और अन्य दलों के उम्मीदवारों और निर्दलीय प्रत्याशी को मिले वोटों से भी दोनों दलों के विधायकों की संख्या प्रभावित होगी।🤫🤫
अभी तक *कांग्रेस 50 सीट और भाजपा 70 सीटों पर मजबूत* दिख रही है। 20 से अधिक सीटों पर रालोपा, बसपा, ट्राइबल पार्टी, कम्युनिस्ट और निर्दलीय का जितना संभावित दिख रहे है। इन्हें कब्जाने के लिए हेलीकॉप्टर 🚁🚁 अभी से बुक हो रहे है।🤠🤠
शेष 60 सीटों पर घमासान दिख रहा है। देखिए, *ऊँट 🐪🐫 किस करवट बैठता है।*
माना जा रहा है कि, कम से कम 50 सीटों पर हार जीत का अंतर 5000 वोटों से कम होगा। जहां 1000 से भी कम मतों से हार जीत के समीकरण के, वहां *राजनैतिक विश्लेषक भी कोई भविष्यवाणी* करने से बच रहे है।😏😏
वैसे इस बार दोनों ही मुख्य दल पूरी ताकत से लड़े है। किंतु ये बहुत बड़ा अंतर रहा कि, भाजपा के पास मजबूत संगठन और जोशीले कार्यकर्ता दिखे,🙃🙃 जबकि कांग्रेस में बिखरा संगठन और हताश कार्यकर्ता ही नजर आए।😔😔
संगठन की मजबूती से ही भाजपा पिछले 20 वर्षों से 70 या अधिक सीटें लाती रही है। इस बार लगता तो है कि, मोदी शाह ने कर्नाटक चुनाव से सीख ले कर ही बिसात बिछाई है। *सत्ता के सेमीफाइनल में इसका कितना असर परिणामो में दिखेगा,* ये वक़्त बताएगा।🥸🥸
मुस्लिम वोटों और, लुभावनी योजनाओं के लाभार्थियों के भरोसे कांग्रेस फिर सत्ता में आने के लिए आशान्वित लग रही है। इस बार *राहुल प्रियंका खरगे ने मजबूत आलाकमान का संदेश दिया है।* कांग्रेस को पूरे प्रदेश में भरपूर जनसमर्थन मिला है। इस बार पायलट के मजबूत दिखने से गहलोत का राजनैतिक भविष्य भी दांव पर दिख रहा है। जबरदस्ती टिकट दिला कर स्वामीभक्तो का ऋण गहलोत ने चुका तो दिया है, पर जीतेंगे कितने??🤪🤪
गहलोत गुट बहुत दबाव में है, और उनके लिए ये चुनाव जीवन मरण का प्रश्न बन गया है। सबसे बड़ा डर तो ED का है। 🤣🤣
क्या रिवाज बदल सकता है? क्या कोई चमत्कार हो सकता है?
🤔🤔
आंकड़े गवाह है कि *पिछले 20 साल में कांग्रेस अधिकतम 100 सीटें जीत* सकी है, वो भी तब तब, जब मत प्रतिशत गिरा हो। इस बार जनता की अदालत भाजपा या कांग्रेस में से किसके पक्ष में निर्णय सुनाएगी, ये देखना दिलचस्प होगा। आरम्भिक आंकलन में तो कांग्रेस को 70 से कम सीट मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है, पर *गहलोत ने इस बार सत्ता का चतुर उपयोग* किया है। आम आदमी से गहलोत का जुड़ाव गजब का दिख रहा है। वे अत्यंत लोकप्रिय है और भाग्य के धनी भी। *योजनाओं का लाभ पाने वाले ही उनके मुख्य प्रचारक है* और कांग्रेस के मुख्य हथियार⚔️🔫 भी।
गहलोत के राजस्थान मॉडल ने मीडिया का भी बहुत ध्यान खींचा है। इसमें कोई शक नही कि, कांग्रेस ने हार के समीकरणों को बदलने का अथक प्रयास किया है। निर्णय जो भी हो पर गहलोत का जुझारूपन लंबे समय तक याद अवश्य रखा जाएगा। 😉😉
*राजस्थान की जनता भोली भाली दिखती जरूर है*, 😇😇 लेकिन इतिहास यही कहता है कि जनता जानती है कि, *सरकार बदलने के बाद भी किसी चालू योजना को बंद नही किया जाता है*। जब भी नई सरकार आई है, उसने राज बदलने के भय से खूब रेवड़ियां बांटी है। वर्तमान सरकार भी अपवाद नही है।
🥳🥳
*पिछले 20 सालों से जनता को दोनों हाथों में लड्डू रखने की, और हर 5 साल में जीमण खाने की आदत सी पड़ गयी लगती है*।😁😁
*रोमांच चरम पर है। देखते है कि, राज बदलेगा या रिवाज*
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चुनावी समर है।
आगे आगे देखिए होता है क्या??
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