*प्राइवेसी के नाम पर मत करों युवा प्रतिभाओं की जिंदगी से खिलवाड़*
*अभिभावकों को सोचना होगा लग्जरी लाइफ के नाम पर बच्चों को क्या दे रहे*
*बात मन की- निलेश कांठेड़*
आजकल अखबार पढ़ते हुए या सोशल मीडिया पर हर सप्ताह मन को विचलित करने वाली एक-दो खबर तो ऐसी ही मिल जाती है जो किसी होनहार प्रतिभावान युवा की आत्महत्या कर लेने के बारे में होती है। मन में यहीं सवाल उठता है कि आखिर क्षणिक भावावेश में आकर युवा आत्महत्या जैसा कदम कैसे उठा लेता है। जिन प्रतिभाओं से देश का भविष्य जुड़ा है उनका इस तरह दुनिया छोड़ देना किसी के भी मन को दुःखी कर सकता है। हाल ही कुछ माह में देश के कोचिंग हब कहलाने वाले कोटा में कई युवा प्रतिभाओं के आत्महत्या कर लेने की खबरे मीडिया की सुर्खियां बनी है। ये खबरे किसी के लिए सामान्य बात हो सकती पर इनमें कॉमन बात जो अधिकतर मामलों में सामने आई वह यह थी कि आत्महत्या करने वाला हॉस्टल या पीजी में सिंगल रूम में रहता था ओर उसे अपना कमरा किसी के साथ शेयर नहीं करना था। कुछ वर्षो पहले तक कोचिंग करने वाले या प्रोफेशनल कॉर्सेज की पढ़ाई करने वाले बच्चों को हॉस्टल या पीजी में सिंगल रूम की कोई सोचता ही नहीं था। हर कक्ष में न्यूनतम एक ओर अधिकतम तीन-चार साथी तो होते ही थे। रूम शेयर करने के नुकसान बहुत नग्ण्य लेकिन फायदे बहुत ज्यादा थे। अभिभावक या छात्र कभी सिंगल रूम की बात ही नहीं करते थे। अब समय बदला और भौतिक सुख-सुविधाओं की चाह बढ़ी तो एक नया शब्द तेजी से चलन में आया ‘प्राइवेसी’यानि निजता जिसमें कोई डिस्टर्ब नहीं करने वाला है। किसी दंपति के लिए तो प्राइवेसी होना समझ में आता है लेकिन किशोरावस्था से युवावस्था में कदम रख रहे बच्चों के लिए प्राइवेसी के नाम पर सिंगल रूम दिलाने का बढ़ता चलन उपर से भले सुविधाजनक लगता हो लेकिन इसके जो दुष्परिणाम आ रहे है उसमें एक सबसे गंभीर आत्महत्या जैसे कदम उठाना भी है। सिंगल रूम में रहने वाला बच्चा कभी किसी भी कारण से तनाव या आवेश में आ जाए तो उसे समझाने वाले या सांत्वना देने वाला कोई नहीं होता है ओर बंद कमरें में ही वह अपनी जिंदगी समाप्त कर लेने जैसा अकल्पनीय कृत्य कर लेता है। ऐसे सिंगल रूम में रहने वाले बच्चों के आत्महत्या कर लेने का पता तब चलता है जब वह क्लास में नहीं पहुंचते या दोपहर तक दरवाजा नहीं खोलते या जरूरी फोन नो रिप्लाई होने पर कोई छानबीन होती है। कुछ वर्षो पूर्व जब हॉस्टल ओर पीजी में रूम शेयर सिस्टम ही था तो कम से कम रूम के अंदर ही आत्महत्या कर लेने की घटनाएं न के बराबर सामने आई है। इसका सबसे बड़ा कारण किसी भी बात पर क्षणिक भावेवश में आकर जान देने का ख्याल मन में आने पर रूम मेट समझाईश कर देते थे या बात अधिक गंभीर लगती थी तो वार्डन से लेकर सम्बन्धित साथी के परिजनों को सूचित कर देते थे। इससे अधिकतर मौकों पर कोई अप्रिय कदम उठाने से पहले ही उसे रोक लिया जाता था। अब सब कुछ बदल चुका है न माता-पिता ओर परिजनों व वार्डन के पास बच्चों की मनोस्थिति समझने का समय है ओर सिंगल रूम कल्चर में मन का दर्द बयां करने के लिए कोई साथी भी नहीं है। सोशल मीडिया के इस आभासी युग में तनाव इतना बढ़ रहा है कि क्षणिक भावावेश में सारे सपनों को जुदा कर युवा मौत को गले लगाने से नहीं हिचकते है। प्राइवेसी की वकालत करने वालों को समझना होगा कि पढ़ाई करने वाला ओर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाला जितना साथियों के संग रहेगा उतना ही उसके मानसिक रूप से मजबूत होने की उम्मीद रहेगी ओर जितना अकेला छोड़ा जाएगा उतना ही गलत कदम उठा लेने का खतरा बढ़ेगा। हम समझना होगा कि युवावस्था इंसान को मेहनतकश बनाने के लिए होती है लेकिन आज अभिभावक युवा संतान को मेहनतकश बनाने की बजाय प्राइवेसी ओर लग्जरी लाइफ देने का तर्क परोस हर भौतिक सुखसुविधा उपलब्ध कराने के लिए अपने सपनों को भी दफन करने से नहीं हिचक रहे है। बच्चों को पढ़ाई के लिए जरूरी संसाधन ओर सुविधाएं अवश्य उपलब्ध होनी चाहिए इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन उनके लिए जरूरी की परिभाषा भी हमे ही तय करनी होगी। बच्चों के लिए सिंगल रूम ओर लग्जरी लाइफ को जरूरी मानने वाले अभिभावकों को सोचना होगा कि वह अपनी संतान का भविष्य संवारने की बजाय बर्बादी का जोखिम तो नहीं ले रहे है। बच्चों को लग्जरी सुविधाएं उपलब्ध कराने मात्र से ही अभिभावक का कर्तव्य समाप्त नहीं हो जाता। अपने अधूरे सपने बच्चों से पूरा कराने की चाह में 16-18 वर्ष की उम्र में ही उन्हें अपने से सैकड़ो-हजारों किलोमीटर दूर भेजने वालों को उनकी मनोस्थिति का भी ख्याल रखना होगा। बच्चों के खाते में पैसे ट्रांसफर करने से भी अधिक महत्वूपर्ण कार्य उनकी भावनाओं ओर उनकी मनोदशा को समझना है। बच्चें रूम से लेकर भावनाएं तक दूसरों से अधिकाधिक शेयर करना जितना सीखेंगे वह जिंदगी में मानसिक रूप से मजबूत बनकर देश के आदर्श नागरिक व परिवार के आदर्श सदस्य भी बनेंगे। भविष्य में किसी युवा के समक्ष आत्महत्या की नोबत न आए यही प्रार्थना हमे ईश्वर से करनी चाहिए।
*स्वतंत्र पत्रकार एवं विश्लेषक*
पूर्व चीफ रिपोर्टर,राजस्थान पत्रिका, भीलवाड़ा
मो.9829537627