*” बेरोजगारी का रोना वही रोते हैं जिन्हें कमाना नहीं आता..! “*
*- ओम कसारा ” ओमेंद्र “*
इन दिनों मैं भारत को जानने का प्रयास कर रहा हूं और भारत को जानने के लिए जरूरी है यात्रा करना । तो , यात्रा के दौरान मैं पहुंचा गुजरात के राजकोट शहर । वहां एक फैक्ट्री विजिट के दौरान देखा कि मात्र 28 वर्ष का एक युवक 3 टन वजनी ड्रिलिंग मशीन को छोटे से रिमोट के सहारे इतना आसानी से आगे – पीछे व बाएं – दाएं घुमा और दौड़ा रहा है मानो वह कोई खिलौना हो । बातचीत में पता लगा कि वो युवक फैक्ट्री का मालिक है और उसने यूरोप से मिले ऑर्डर पर 3 करोड़ रुपए मूल्य व 6000 फीट तक खुदाई करने की क्षमता वाली ड्रिलिंग मशीन स्वयं तैयार की है जो कि चंद घंटे बाद ही पुर्तगाल के लिए रवाना कर दी जाएगी । इस ड्रिलिंग मशीन पर लगे ” मेक इन इंडिया ” के लोगो को देखकर मेरा सीना यह सोचकर गर्व से चौड़ा हो गया कि किसी जमाने में जिस हिंदुस्तान में एक सुई भी नहीं बनती थी उसी देश के युवा अब यूरोप तक को आवश्यक साजोसामान निर्यात कर रहे हैं । युवक अब तक ऐसी तीस मशीनें विभिन्न देशों को भिजवा चुका है और उसे अपनी यह फैक्ट्री स्थापित किए सिर्फ पांच साल ही हुए हैं ।
अपनी , ” भारत को जानो यात्रा ” के दरमियान जब बेंगलुरु के लालबाग में घूम रहा था , तब देखा कि बाग के मध्य में स्थित चौराहे के कोने पर 16 -17 वर्ष आयु का एक बालक दो टेबल लगाकर तरबूज , खीरा , पाइनेपल , आम और भेलपुरी बेच रहा है । ग्राहक के कोई भी फल मांगने पर वह उन्हें सीधे ही नहीं दे देता बल्कि हाथों – हाथ उनके छिलके उतारता , सलीके से एक-एक फांक काटता , करीने से उन्हें पेपर प्लेट में सजाता और फिर मसाला डालकर बड़ी इज्जत के साथ ग्राहक के हाथों में थमाता । इस एक प्लेट की कीमत वो ले रहा था पचास रुपए जिस पर असल में दस रूपए भी खर्च नहीं आता , मतलब प्रति प्लेट चालीस रूपए का फायदा । इस छोटे से बालक ने चर्चा में बताया कि उसके पास दिनभर में 150 से 200 ग्राहक आ ही जाते हैं अर्थात प्रतिदिन वह कमा रहा है छः से आठ हजार रुपए ।
दुर्भाग्य इस बात का है कि हिंदुस्तान के अधिकांश युवा सरकारी नौकरी को ही रोजगार का सबसे उत्तम साधन मानते हैं जबकि यह बात किसी से भी छुपी हुई नहीं है कि हमें अच्छे इलेक्ट्रीशियन , प्लंबर , मैकेनिक अथवा स्किल्ड पर्सन नहीं मिलते । निष्कर्ष यही कि बेरोजगारी का रोना वही रोते हैं जिन्हें कमाना नहीं आता , यह इसलिए भी शाश्वत सत्य है क्योंकि भारत के विशाल बाजार में काम की तो कोई कमी ही नहीं है , बस करने वाला चाहिए । ( इति )