*न बंदर वश में, न कुत्ते, सांडों की तो बात ही छोड़ो*
– *इतनी बेबस क्यों है नरक परिषद*
– *सुशील चौहान*
भीलवाड़ा। ये भीलवाड़ा नरक परिषद केंद्र है। शहर की साफ सफाई और आवारा जानवरों से मुक्ति दिलाने की जिम्मेदारी संभाल रहा ये महकमा लगता है पूर्ण रूप से *पंगु* हो चुका है।जनता को पहले तो *सांडो ने सींगवार* से लहूलुहान किया हुआ है।उस पर आए दिन *आवारा कुत्ते* भी अपने नुकीले दांतों की प्रतिभा बच्चों पर दिखाते रहे है।अब इस नरक परिषद की *कुंभकर्णी नींद* का *मजा बंदर* भी लेने लगे है। मगर नरक परिषद को इससे क्या? जनता को कुत्ते काटे या बंदर,।सांड घायल करें या सड़कों के *जानलेवा गड्डे*। *मस्त तनख्वाह* और *चार चांद लगाता कमीशन*। जनता जाए भाड़ में उसका तो काम ही रोने का है। अरे बंदरों की टीम में हिम्मत है तो नरक परिषद के *किसी अधिकारी* को या *उसके बच्चे* को काट कर दिखाओ फिर देखो एक ही दिन में *कैसे तुम पिंजरे* में आते हों। *मेरा तो यही निवेदन* आवारा कुत्तों और सांडों से भी है की एक बार इनके परिवार वालों को अपना शिकार बनाकर देखों। तुम्हें अपनी औकात पता चल जायेगी।बाकी आम जनता तो मजबूर है।उसे कुत्ते काटे या बंदर।सांड घायल करें या सड़क के गड्डे। उसे करनी है तो सिर्फ गुहार और अपना ईलाज।
अब भला कौन नरक (नगर) परिषद के आलाओं को समझाएं कि भाई आपका सबसे पहला काम शहर को स्वच्छ और सुंदर रखना हैं। उसके बाद आवारा कुत्तों और स्वछंद विचरण कर रही गायों व सांडों की मार से शहरवासियों को बचाना हैं। मगर शहरवासियों की परवाह किसे हैं। बस एसी रूम में बैठकर मोटी तनख्वाह उठना ही *परम कर्तव्य* हैं। क्योंकि हम बने ही इसी ऐशो आराम के लिए। शहर के नालों पर लाखों रुपए सफाई पर खर्च होते हैं। लेकिन पहली ही बरसात इस सफाई व्यवस्था पर किए लाखों रुपए की हुई *धूलधाणी* की पोल खोल देते हैं। परिषद के अधिकारी व सफाई ठेकेदार तो चाहते हैं कि *बरखा रानी जमकर बरसों* ताकि हमारी एंटी गर्म रहे। परिषद की इसी अनदेखी का शिकार एक मासूम हो गया जो नालों की सफाई नहीं होने से बरसात के उफनते नालों की भेंट चढ़ गयाऔर एक घर का चिराग हमेशा हमेशा के लिए बुझ गया।
चलो इसे तो छोड़ा यह बरसात की वजह से हुआ, लेकिन भगवती लाल बहेडिया जी का क्या कुसूर था जो सभापति बनने की खुशी भी पूरी तरह नहीं मना सकें और स्वछंद विचरण कर रही गायों का शिकार हो अकाल मृत्यु का काल बन गए।वहीं एक चचा जान का क्या कुसूर था जो गंगापुर मार्ग पर सांडों की लड़ाई का शिकार होकर दुनिया से रुखसत हो गए।
शहर की सड़कों की उधड़ी सड़कों की बात करना तो बेमानी हो गई। क्योंकि जो सड़क बनाई जाती वो टूटने के लिए ही बनाई जाती हैं । पूरे शहर सड़कें अपनी दशा पर आंसू बहा रही है।
चलो सड़कों, सफाई का *राडी रोना छोड़ो*। टूटना बनना और कचरे का सिलसिला तो यूं चलता रहेगा।
अभी तक सफाई,टूटी सड़कों से तो शहरवासी दो चार हो रहे थे। लेकिन अब वानर सेना ने कुछ क्षेत्रों के लोगों का रहना दुश्वार कर दिया। पिछले बीस दिनों से बंदरों के काटे जाने का दंश झेल रहे हैं। परिषद व प्रशासन मौन हैं। जब ज्यादा ही बंदरों ने अपना जलवा दिखाया तो याद आया। अब तो बुला ही लो तो आयुक्त महोदय ने बाहर से बंदर पकड़ने वाले स्पेशलिस्टों की टीम को बुलावा भेजा। टीम जयपुर से आई, लेकिन बताया जा मथुरा वाले हैं। खैर *देर आए दुरुस्त आए* पिंजरा लगाया गया मगर वो शातिर वानर उनकी गिरफ्त में अभी तक नहीं आया। पिंजरा लगाया प्रेम नगर में वहां दूसरे वानर केलों के लालच में आ गए मगर लोगों को अपना शिकार बनाने वाला बंदर शनिवार को भी अपना रूद्र रूप दिखाता रहा और जूना वास में कईयों को घायल कर दिया। परिषद अधिकारी कुछ तो सुनो अभी आपने पूरे दो महीने *राहत शिविर* में दफ़्तर में बैठकर *मौज* की हैं अब थोड़ा बंदरों से पीड़ितों की सुनकर उन्हें भी *राहत* दिलाओं।
– *स्वतंत्र पत्रकार*
– ,*पूर्व उप सम्पादक, राजस्थान पत्रिका, भीलवाड़ा*
– *वरिष्ठ उपाध्यक्ष,प्रेस क्लब भीलवाड़ा*
– *sushil [email protected]*