ओंकार ही गणेश है, श्री गणेश ही ओंकार है= श्री दिव्य मोरारी बापू
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गुलाबपुरा (रामकिशन वैष्णव) मोनु सुरेश छीपा स्थानीय सार्वजनिक धर्मशाला में चल रहे श्रीदिव्य चातुर्मास के पावन अवसर पर ‘सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय’ (भव्य-सत्संग)में
श्रीमद् गणेश महापुराण कथा
ज्ञानयज्ञ (षष्टम्-दिवस)
कथा व्यास-श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू ने भगवान गणपति का प्राकट्य पर वाचन किया। संत श्री ने कहा कि ओंकार (प्रणव) भी गणेश हैं। ओंकार की आकृति बिल्कुल गणेश जैसी है। ओंकार ही गणेश हैं। गणेश ही ओंकार हैं। जो स्वास्तिक बनाते हैं। गणेश भगवान का जो भारी शरीर है, बीच का हिस्सा है।
चार हाथ हैं वो चार लाइनें हो गई, चारों में जो शस्त्र हैं वो चार उनमें जो टेढ़ापन आ गया, गणेश भगवान ही स्वास्तिक रूप में विद्यमान है। महामंडलेश्वर संत श्री ने कहा कि श्री गणेश जी को चाहे ओंकार के रूप में मान लो, चाहे स्वास्तिक के रूप में मान लो, चाहे आकृति के रूप में मान लो, गणेश जी आपकी रक्षा करते रहेंगे। इस दौरान दिव्य सत्संग मंडल के पदाधिकारी व शहर के गणमान्यजन व महिलाऐं श्रद्धालु मौजूद थे!