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राजस्थान के चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस को फायदा पहुंचाने का काम किया ताकि लोकसभा चुनाव में एक दो सीटें समझौते में ली जा सके।
हनुमान बेनीवाल की अपना वजूद बचाने की कवायद।
ओवैसी ने तेलंगाना से ज्यादा राजस्थान की सीटों पर चुनाव लड़ा।
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आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक वर्ष पहले घोषणा की थी, जिस प्रकार गुजरात में पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ा। उसी प्रकार राजस्थान के विधानसभा चुनाव में भी आप के उम्मीदवार खड़े होंगे। लेकिन केजरीवाल अपनी घोषणा पर कायम नहीं रहे और दो सौ में से 86 सीटों पर ही अपने उम्मीदवार खड़े किए। इन उम्मीदवारों में एक भी ऐसा नहीं जिसने चुनाव जीतने के लिए संघर्ष किया हो। राजनीति के जानकारों का मानना है कि केजरीवाल ने राजस्थान में कांग्रेस को फायदा पहुंचाने के लिए चुनाव लड़ा ही नहीं। कोई दो माह के प्रचार में केजरीवाल मुश्किल से दो बार राजस्थान आए। यह सब दिखाने के लिए किया गया। हालांकि एक वर्ष पहले केजरीवाल ने पंजाब की सीमा से लगे गंगानगर, हनुमानगढ़ में सभाएं की और राजधानी जयपुर में रोड शो भी किया। असल में केजरीवाल को अहसास था कि यदि वे गुजरात की तरह राजस्थान में भी चुनाव लड़ते हैं तो कांग्रेस को नुकसान होगा। जब से कांग्रेस की पहल पर विपक्षी दलों का इंडिया गठबंधन बना है, तब से केजरीवाल के कांग्रेस विरोधी स्वर बदल गए हैं। केजरीवाल की पार्टी भी विपक्षी गठबंधन का हिस्सा है। राजस्थान में अपनी पार्टी की ताकत नहीं लगा कर केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ गठबंधन को और मजबूत किया है। अब लोकसभा चुनाव में केजरीवाल का प्रयास होगा कि राजस्थान में एक दो सीटों पर कांग्रेस से समझौता कर लिया जाए। ऐसे में केजरीवाल को राजनीतिक फायदा होगा। अब देखना है कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव की कीमत लोकसभा चुनाव में कितनी चुकाती है।
वजूद के लिए संघर्ष:
25 नवंबर को संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व वाली आरएलपी ने 124 उम्मीदवार खड़े किए हैं, लेकिन पूरे चुनाव के दौरान ऐसा प्रतीत हुआ कि बेनीवाल अपना वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। बेनीवाल ने 2019 में लोकसभा का चुनाव नागौर से भाजपा के समर्थन से जीता था। लेकिन विधानसभा चुनाव में बेनीवाल स्वयं खींवसर से पार्टी के उम्मीदवार है। इससे प्रतीत होता है कि बेनीवाल ने विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है। इसके लिए बेनीवाल ने भीम आर्मी के साथ समझौता भी किया। बेनीवाल तो केजरीवाल के साथ भी समझौता करना चाहते थे, लेकिन केजरीवाल ने कोई रुचि नहीं दिखाई। 2018 के चुनाव में बेनीवाल को तीन सीटें मिली थी। इस बार आरएलपी को कितनी सीटें मिलेंगी इसका पता तो 3 दिसंबर को ही पता चलेगा। लेकिन जानकारों के अनुसार बेनीवाल को खींवसर सीट पर भी कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। यह सही है कि बेनीवाल का युवाओं खासकर जाट युवाओं पर खासा प्रभाव है, लेकिन बेनीवाल ने ज्योति मिर्धा और दिव्या मदेरणा को लेकर जो व्यक्तिगत टिप्पणियां की उसका जाट समुदाय पर प्रतिकूल असर पड़ा।
ओवैसी के 13 उम्मीदवार:
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के संयोजक असदुद्दीन ओवैसी का गृह प्रदेश तेलंगाना हे। तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद ओवैसी परिसर की लोकसभा की परंपरागत सीट है। उनके दादा भी हैदराबाद से सांसद रह चुके हैं। ओवैसी पूरे देश के मुसलमानों के नेता होने का दावा करते हैं, लेकिन ओवैसी ने अपने गृह प्रदेश तेलंगाना में 119 सीटों में से सिर्फ 9 सीट पर ही अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। जबकि राजस्थान में ओवैसी की पार्टी के 13 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। सवाल उठता है कि आखिर ओवैसी अपने गृह प्रदेश के विधानसभा चुनाव में रुचि क्यों नहीं दिखाते? असल में ओवैसी ने तेलंगाना में केसीआर की पार्टी वीआरएस से समझौता कर रखा है। वीआरएस सत्ता में बनी रही इसके लिए ओवैसी तेलंगाना मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर भी अपने उम्मीदवार खड़े नहीं करते हैं। यह बात अलग है कि ओवैसी राजस्थान के मुसलमानों से वोट की उम्मीद रखते हैं। तेलंगाना में जिन 9 सीटों पर ओवैसी ने अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं उनमें से 7 हैदराबाद शहर की सीट है।
S.P.MITTAL BLOGGER (27-11-2023)