*जयपुर/भीलवाड़ाआर जी एच एस की डोर स्टेप डिलेवरी के प्रति ई पी फार्मा स्टोर उदासीन, प्रतिकूल शर्तों के कारण बनानी पड़ी दूरी।*
*-विभाग की कथनी और करनी में असमानता से दवा विक्रेताओं में भारी रोष व्यापत।*
*-अब सिर्फ आश्वासन से काम नहीं चलने वाला, आगामी दिवसों में समस्याओं का त्वरित निस्तारण नहीं किया गया तो, लाभार्थियों को दवा मिलने में होने वाली असुविधा के लिए राज्य सरकार स्वयं होगी जिम्मेदार।*
भीलवाड़ा :- राज्य सरकार के ऐम ओ यू के अनुसार 21 दिन में भुगतान करने का दावा अब फेल होता नजर आ रहा हैं। नतीजन 4 माह में राजस्थान के 4500 दवा विक्रेताओं के 600 करोड़ से अधिक के बकाया भुगतान की अब पूरजोर मांग उठने लगी हैं जिसके चलते दवा विक्रेताओं में भुगतान नहीं होने के कारण भारी रोष व्याप्त हैं।
प्रादेशिक आजीएसएच अधिकृत दवा विक्रेता समिति के उपाध्यक्ष सुनील भारद्वाज ने जानकारी देते हुए बताया की राज्य सरकार ने राज्य के सेवारत-सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तहत डोर स्टेप डिलीवरी (कर्मचारी के घर तक दवा पहूँचाने) की घोषणा की थी। उन्ही घोषणा की शर्तों में पोर्टल पर बिल रिजेक्शन के डर से अधिकतर केमिस्ट योजना को लेकर आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।
उपाध्यक्ष सुनील भारद्वाज बताते हैं कि डीएसडी यानी डोर स्टेप डिलीवरी योजना में अजीबों गरीब शर्तें हैं, इसमें दवा व्यापारियों को सरकार से पैसे डूबने का डर हैं। जबकि आरजीएचएस में जुड़ने के लिए 1 लाख रुपए की बैंक गारंटी ली गई थी। अब दोबारा होम डिलीवरी की सेवा योजना में दवा दुकानदारों से फिर से 1 लाख रुपए की बैंक गारंटी मांगी जा रही हैं। इधर केमिस्टों का कहना हैं कि पहले से तीन माह में केमिस्टों के 600 करोड़ रुपए आरजीएचएस में अटके पड़े हैं। और प्रदेशभर में अब तक सरकार से 2 अरब से ज्यादा रुपए भुगतान नहीं हो पाए हैं। साथ ही DSD मे पोर्टल पर पर्ची स्वीकृत कर ली तो रिजेक्ट नहीं कर सकते, सब्सिट्यूट नही दे सकते, लिखी गयी सभी दवाई उपलब्ध करवाने की बाध्यता, पेनेल्टी जैसी शर्ते भी शामिल हैं । साथ ही इस योजना में सेवारत व सेवानिवृत्त कर्मचारियों को आरजीएचएस पोर्टल पर अपनी एसएसओ आईडी के जरिए परामर्श पर्ची अपलोड करनी होती हैं। पर्ची में जिस ब्रांड की दवा लिखी हैं, उसी ब्रांड की दवा देनी भी होगी। यदि दूसरा नामी ब्रांड दे दिया तो केमिस्टों का बिल रिजेक्ट किया जा रहा हैं। दूसरा दुकानदारों ने पर्ची पोर्टल से स्वीकृत कर ली तो अब वे उसे रिजेक्ट नहीं कर सकते। इसी तरह कैंसर की तीन लाख की दवा जोड़ी हुई, इंडियन ब्रांड 14 हजार की नहीं जोड़ी। वही आरजीएचएस योजना में कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने वाली दवा लिनपार्जा 3 लाख रुपए की हैं और इस दवा को योजना में जोड़ा हुआ हैं, जबकि दूसरी और इंडियन ब्रांड इसी सॉल्ट की दवाइयों को नहीं जोड़ा गया हैं। इसी तरह कई महँगी दवाइयो को जोड़ा जाना एवं उसी घटक की कम कीमत की दवाइयो को नही जोड़ा जाना राज्य सरकार के लिए शुद्ध नुकसान हैं। जिसके चलते केमिस्टाें में भारी आक्रोश व्याप्त हैं। ऐसे में सरकार किसकी गलती की वजह से जान बूझकर ये घाटा झेल रही हैं?। जबकि इंडियन ब्रांड सही नहीं हैं तो इसे मार्केट में क्यों अप्रूव किया गया।
उपाध्यक्ष भारद्वाज बताते हैं कि क़रीब ढाई साल से रिजेक्शन और डिडक्शन के बिलों का जानबुझ कर निस्तारण नहीं किया जा रहा हैं, उसमे भी राजस्थान के केमिस्टों का करोड़ो रुपया अटका हुआ पड़ा हैं। कुछ इन्हीं अति गम्भीर कारणों के चलते प्रदेशभर के सभी केमिस्टों में भयंकर आक्रोश व्याप्त हैं। इसी कारण आरजीएचएस के लाभार्थी को समय पर दवाईयो की आपूर्ति नहीं होती हैं। और पर्ची में कोई छोटी मोटी कमी रह जाय तो दुकानदार लाभार्थी को दवाई का मना कर देता हैं जिसके चलते रोगी डॉक्टर और दवा विक्रेता के बीच चक्कर काट काट करके परेशान होता रहता हैं। अब इस समस्या पर राज्य सरकार शीघ्रतापूर्वक ध्यान देकर उक्त मामले का जल्द से जल्द निस्तारण भी करें ताकि रोगियों को आर जी एच एस योजना का सही तरीके से पूरा पूरा लाभ मिलें जिससे सरकार की योजना का संचालन हो सके