आज 14 दिसंबर 2024 को मेरे पैतृक शहर शाहपुरा का 393वां स्थापना दिवस है। मेरे इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक आलेख को पढ़ें और इस जानदार शहर की शानदार थाती को अनुभत करें।
मैं शाहपुरा हूं…
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मैं शाहपुरा हूं, सुन्दर वीथियों, राजमार्गों से जुड़ा, देश और दुनिया में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाला एक समृद्ध नगर।16 दिसम्बर सन् 1631 में महाराणा प्रताप के वंशज सिसोदिया सुजानसिंह ने शाहजहां के नाम पर मुझे बसाया । पाँच दरवाजों और सुदृढ़ परकोटे से घिरा हुआ मैं सदैव अजेय रहा। मेरे यशस्वी राजवंश में उम्मेद सिंह प्रथम जैसे अद्वितीय शासक हुए जिन्होंने मातृभूमि के गौरव की रक्षा हेतु मेवाड़ की सेनाओं का नेतृत्व करते हुए क्षिप्रा नदी के तट पर अपना प्राणोत्सर्ग कर दिया, जिसकी कीर्ति इतिहास में स्वर्णाक्षरों से मंडित है। मेरे शक्तिपुंज सुतों की सुदीर्घ परंपरा की यश गाथा में अमर वीर प्रताप सिंह बारहठ के बलिदान और केसरी सिंह व जोरावर सिंह बारहठ सहित पूरे परिवार का स्वतंत्रता संग्राम में सर्वस्व समर्पण अप्रतिम है। रमेश चंद्र ओझा, लादूराम व्यास और लक्ष्मीदत्त काँटिया की त्रिवेणी का स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान स्मरणीय रहेगा। स्वतंत्र भारत को सबसे पहले अपनी रियासत सौंप कर अंतिम नरेश सुदर्शन देव ने मुझे लाजवाब बना दिया।
मैंने शक्ति के साथ भक्ति को भी जीया है। सर्व धर्म सम्भाव की मैं अनूठी मिसाल हूं। मेरे आँगन में निर्गुण, सगुण और सूफी परंपरा की अद्भुत संगत ने मेरे देवालयों, दरगाहों, जिनालयों, देव-देवरों को पवित्रता प्रदान की है। स्वामी रामचरण जी महाराज के श्री चरणों से पावन हुई मेरी धरती कोटि-कोटि श्रद्धालुओं का तीर्थ स्थल बन गई। राम नाम का उद्घोष मेरी दसों दिशाओं से ऊर्धस्वित हो अखिल विश्व के परिचय का आधार बन गया। अन्तरराष्ट्रीय रामस्नेही सम्प्रदाय की मुख्य पीठ रामद्वारा की पावनता ने मुझे तीर्थ स्थल होने का गौरव प्रदान किया है। वैदिक परंपरा की अखण्ड ज्योति आर्य समाज के संस्थापक महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती के कर कमलों से यहां अद्यतन प्रज्वलित है। आर्य समाज के प्रमुख ग्रंथ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के कईं अध्याय स्वामी जी द्वारा मेरे परिसर में ही बैठ कर लिखे गए जो मेरे लिए सदैव स्मरणीय रहेंगे। हजरत सुजातुल अली सरकार, हजरत अहमद अली सरकार रहमतुल्ला, हजरत अजीम अली साहब की दरगाहों से सूफी परंपरा के कलाम ने मेरे भीतर को सदैव रोमांचित किया है। भगवान चारभुजानाथ, वराह माताजी, गोविंद देव जी, श्रीजी व अन्य मंदिरों में स्थापित देव प्रतिमाओं के शिल्प सौंदर्य में ऐसा चुम्बकीय आकर्षण है जिससेे मैंं क्या मेरे सभी निवासी प्रति दिन दर्शन कर आनंदित होते हैं। जैन देवालयों की अनूठी देव प्रतिमाएं ‘जय जिनेन्द्र’ के उद्घोष से मुझे आनंदित करती है। मेरे हृदय प्रदेश में स्थापित बालाजी की छतरी तो मेरे प्राण है। धर्मों के इस अलौकिक संगम में निमग्न मैं स्वयं को धन्य समझता रहा हूं।
शोर्य और धर्म की तरंगों से तरंगित मेरा अस्तित्व मेरे शिल्पकारों, सर्जकों, कवियों और और कलाकारों ने ऐसा अनूठा रचा कि एक बार जो मेेेेरे आगोश मेें आया वो सदैव मेरा होकर रह गया। मेरे मन मोहक पीवनिया तालाब मेें खिले हुए कमल पुष्पों के बीच स्थित बगरू के अलौकिक सौंदर्य को तो जब आप स्वयं देखेंगे तभी अनुभूत कर पायेंगे। कला के चितेरों ने मेरी भित्तियोंं पर ऐसे चित्र उकेरे जिन्हें देख कर दुनिया रोमांचित हुई। वे ही चित्र प्राकृत रंग में कपड़े पर सज्जित हो फड़ कला के रूप में विश्व की धरोहर बन गए। चित्रकला के कई रंगों को समेेेटे कलाकारों की पीढ़ियां अपनी तूलिका, रेखाचित्रों, कलाकृतियों से अमरत्व को प्राप्त हुईं जो अनुसंधान का विषय है। कला के अनेकानेक मनीषियोंं ने मेरी कीर्ति को आकाश चढ़ा दिया। कला धर्मिता के साथ-साथ मेरे शब्द शिल्पियों ने संस्कृत, हिंदी, उर्दू और राजस्थानी भाषा में अपने उच्च स्तरीय सृजन से राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मेरे नाम को अपने नाम के साथ महिमा मंडित किया है।
बहुमुखी प्रतिभाओं की उर्वरा धरती हूं मैं जहां सिंह और भेड़ एक घाट पर पानी पीते रहे। खेलों के क्षेत्र में तो मेरा नाम सदैव अग्रणी रहा। मेरे तरणताल ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के तैराकों की अनवरत शृंखला दी है जो एक कीर्तिमान है। महलों के चौक में यंग स्पोर्ट्स क्लब का मैदान जिले में वाॅलीबाल का लार्ड्स बन चुका है जहां बारहों महिने नौजवानों के हाथों की गूंज गमकती है। बास्केटबॉल, खो-खो में मैंने कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी दिए है। मेरे खेल मैदान सभी खेलों के लिए आदर्श हैं।
मेरे कुटीर उद्योगों जिसमेें विशेेेेषकर हैंडलूम और हाथ छपाई ने पीढ़ियों से मेरे निवासियों को आत्मनिर्भर बनाया। रीको क्षेत्र के विकास की संभावनाओं को चंबल के पानी ने परवान चढ़ा दिया है । रजवाड़ी शासकों द्वारा बनाए गए नाहर सागर और उम्मेद सागर बाँधों की नहरें मेरे कृषकों की जीवन शक्ति है जो उन्हें धन धान्य से परिपूर्ण करती है। मेरे चर्म शिल्पियों की हस्त निर्मित जूतियां पूरे देश में पसंद की जाती है। मेरे ढाई इंची गुलाब जामुन का रस जिसने एक बार चखा वो कभी इसका स्वाद नहीं भूल पाया। जब कभी भी दो शाहपुरावासी कहीं मिले तो उनके आत्मीय और ठेट शाहपुरी अंदाज ने मेरी जड़ों को मजबूत किया।कमाल के लोगों के साथ जीते-जीते मैं खुद भी कमाल का हो गया। मेरे परकोटे, प्राचीन इमारतें, बावड़ियां, हस्त लिखित साहित्य धरोहर हैं। देखरेख के अभाव में निरंतर इनका क्षय हो रहा है जिससे मैं चिंतित हूं। ये स्मारक, धर्मस्थल, सुरम्य सरोवर, कुटीर उद्योगों की सामग्री, यहां की अद्भुत वीथियां और आसपास के ऐतिहासिक स्थल मेरे निवासियों के लिए पर्यटन व्यवसाय की असीम संभावनाओंके द्वार खोले हुए हैं। राजमार्गों के साथ बहुप्रतीक्षित रेल मार्ग मेरी चिर प्रतीक्षा है। आजादी के बाद मैं कुछ समय जिला मुख्यालय रहा पुनः इसकी स्थायी परिणति हुई और मुझे अपने गौरव के अनुरूप जिला मुख्यालय के रूप में घोषित किया गया। इस महनीय और चिर प्रतीक्षित कृत्य से मेरे यश को नया संबल मिला। मेरे नागरिकों और सभी दलों के राजनेताओं का यह निर्णय आने वाले समय में मेरी तकदीर बदलने वाला है। जिला बनने की सभी खूबियों से परिपूर्ण मैं, आने वाले कुछ ही वर्षों में स्वयं को विश्व मानचित्र पर एक समृद्ध, और सभी क्षेत्रों में प्रगतिशील नगर के रूप में देख पा रहा हूं। यहां के जनप्रतिनिधियों पर मुझे पूरा विश्वास है कि वे मेरे कीर्ति रथ को उत्तरोत्तर गति प्रदान करेंगे। आदि काल से ही संकट के विरुद्ध यहां के नागरिकों, स्वतंत्रता सैनानियों, समाज सेवियों और भामाशाहों नेे भरपूर योगदान देकर सदैव अपने जीवट को प्रस्तुत किया है। कला, साहित्य और संस्कृति की धरोहरों को जीवंत रखने वाले मेरे सर्जकों ने मुझे वैभवशाली बना दिया। गणगौर की सवारी, फूलडोल मेले के रंग, गरबा व गैर नृत्य आयोजन, लोककवि मोहन मण्डेला स्मृति कवि सम्मेलन, सूफी कव्वालियों की महफिलें, हर धर्म के शानदार कार्यक्रमों ने मुझे उत्सव धर्मी बना दिया।
मैं आखिर यूं ही तो शाहपुरा नहीं। मेरी अनमोल थाती और सामाजिक सरोकारों के कारण ही मुझे दक्षिण राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता रहा है। जैसा मैं समृद्ध वैसे ही मेरे लोगों की सोच समृद्ध। शिक्षा के क्षेत्र मेें मेेेेरेे सपूतों ने देश को कईं श्रेष्ठ शिक्षाविद, चिकित्सक, इंजिनियर, वैज्ञानिक, चार्टेड और सफल उद्यमी दिए हैं जो सतत अपनी सेवाओं से भूमंडल को आलोकित कर रहे हैं।
मेरी स्थापना के इस ऐतिहासिक दिन मैं सभी नागरिकों से अपील करता हूं कि आप हर क्षेत्र में स्वयं को अग्रणी रख कर जन जागरण और सेवा में जुटे रहें क्योंकि मुझे मालूम है कि बहुत जल्दी मुसीबतों का ताला खुलने वाला है। मेरे आँगन में लगने वाले मेले, गणगौर की सवारियां,उत्सवों की धूम, कवि सम्मेलन के रंग, कव्वालियों के जलवे, गरबा और गैर नृत्य, बिंदौरियां, फाग के रंग, बाजारों की रौनकें, मैदानों में खेलते बच्चे, मंदिरों में गूंजती आरतियों के स्वर, मस्जिदों में आबाद नमाज़ें, रसमय पीवनिया सरोवर में खिलते नयनाभिराम राजीव… यानी कि सब कुछ शानदार होने वाला है। बस, मेरे प्यारे निवासियों, मेरे मेरी आपसे अरज है कि मेरी थाती को सुरक्षित रखें, वीथियों को स्वच्छ रखें, अलगाव और वैमनस्य से दूर रहें, मेरे स्मारकों और परम्पराओं को अक्षुण्ण रखें, मुझे जिला मुख्यालय के अनुरूप समृद्ध बनाने में तन-मन-धन से सहयोग दें, अपनी सृजनात्मकता को बनाए रखें क्योंकि इन्हीं के कारण तो मैं जीवित रहूंगा। मेरा सम्मान आपका गौरव है। कवि कैलाश मण्डेला के शब्दों में यूं कहूं-
“शाहिपुरो म्ह धन धरा, शगती भगती पाण।
कला और साहीत सूं, है म्हारी पहचाण।। ”
लेखक-
कैलाश मण्डेला
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि एवं गीतकार
केन्द्रीय साहित्य अकादमी से पुरस्कृत साहित्यकार
शाहपुरा 9828233434
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