*शाहपुरा जिले का वजूद वेंटीलेटर पर !*
*कभी भी टूट सकती है जिले की सांस और जनता की आस*
*कल केबिनेट की बैठक में पंवार कमेटी की रिपोर्ट पर हो सकता है फैसला*
✍️ *मोनू नामदेव।द वॉयस ऑफ राजस्थान 9667171141*
शाहपुरा जिले का वजूद इन दिनों वेंटीलेटर पर है। पता नहीं कब जिले की सांस और जनता की आस दोनो ही टूट जाए। राजस्थान में नए जिलों को खत्म करने की चर्चाओं ने क्षेत्र के विकास के सपनों को धूमिल कर दिया है। एक समय के उत्साह से भरी हुई जनता आज गहरे अंधकार और निराशा में डूबी हुई है।
17 मार्च 2023 को जब शाहपुरा को जिला घोषित किया गया, तो पूरे शहर में जश्न मनाया गया। लोगों ने मिठाइयां बांटी, सड़कों पर उत्साह का माहौल था। सबको लगा कि अब शाहपुरा विकास के नए आयाम छुएगा। लेकिन अब, जब जिलों को खत्म करने की संभावनाएं बढ़ रही हैं, वह सपना टूटता नजर आ रहा है। नए साल की खुशियां इस मायूसी के आगे फीकी पड़ गई हैं और लोगों के चेहरे पर उदासी छा गई है। जो उम्मीदें कभी चमक रही थीं, वे अब धुंधली होती जा रही हैं। शनिवार होने वाली केबिनेट की बैठक में प्रदेश के नए जिलों को लेकर पंवार कमेटी की रिपोर्ट पर फैसले को लेकर क्षेत्रवासियों की निगाहें टिकी हुई है।
*कांग्रेस और भाजपा दोनों मौन*
जिन नेताओं ने कभी शाहपुरा को विकास की मिसाल बनाने का वादा किया था, अब वे इस मुद्दे पर मौन हैं। भाजपा के ही पूर्व विधायक कैलाश मेघवाल जिन्होंने जिले के दर्जे के लिए कड़ी मेहनत की थी, अब इस मुद्दे पर चुप हैं। बीजेपी विधायक लालाराम बैरवा, जिनसे जनता को उम्मीदें हैं, वे भी इस मुद्दे पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है, और उस सन्नाटे में लोगों की उम्मीदें बिखर रही हैं।
वही विपक्षी पार्टी जिनकी सरकार में शाहपुरा को जिले की सौगात मिली थी वे भी मौन होकर सरकार के आगामी फैसले का इंतज़ार कर रहे है।
*जिला न रहने से विकास की रुकावट*
रियासतकालीन समय में मेवाड़ की प्रमुख रियासत जहां आज़ादी से एक दिन पूर्व तिरंगा लहरा तत्कालीन दरबार ने अपनी रियासत देश मे सबसे पहले समर्पित कर ऐतिहासिक कार्य किया था जिस पर यहां पहली बार आये पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने वादा किया था कि विकास का सूरज सबसे पहले शाहपुरा से ही उगेगा। परन्तु बाद में राजनीतिक शिकार हुआ शाहपुरा विकास के क्रम में पिछड़ता ही रहा। शाहपुरा का जिला बनना केवल प्रशासनिक बदलाव नहीं, बल्कि यह शहर ही नही क्षेत्र के विकास की संभावनाओं का प्रतीक है। जिले के दर्जे से शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार और बुनियादी ढांचे में सुधार की उम्मीद बनी है। व्यापारियों, छोटे उद्यमियों और युवाओं ने जिले के दर्जे के साथ नई संभावनाओं की आस लगाये हुए है। अब, जिले का दर्जा छिनने की खबरों ने इन सपनों को बिखेर दिया है। विकास की उम्मीदें धूमिल हो गई हैं, और लोग खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
*आगे की राह..?*
शाहपुरा के निवासियों के सामने अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि उनका भविष्य क्या होगा। जिला रहे बिना विकास की उम्मीदों पर कितना असर पड़ेगा, यह सोचने का समय है। अब देखना यह है कि पंवार कमेटी की रिपोर्ट पर अब प्रदेश की भाजपा सरकार शाहपुरा को जिला बनाए रखेगी या यह शहर अपने सपनों के साथ गुमनामी में खो जाएगा। जिले का भविष्य सरकार के फैसले पर निर्भर है।
विधायक डॉ लालाराम बैरवा का कहना है कि जिले के वजूद पर अंतिम निर्णय उनकी सरकार का है, व्यक्तिगत नहीं। यह दर्शाता है कि प्रशासनिक निर्णय, जैसे जिलों का दर्जा, मुख्यमंत्री, कैबिनेट और संबंधित विभागों के सामूहिक निर्णय पर निर्भर होते हैं। बैरवा व्यक्तिगत रूप से जिले का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन सरकार की प्राथमिकताएं ही निर्णायक होती हैं। राजनीतिक रूप से विधायक डॉ बैरवा विवाद से बचते हुए अपनी पार्टी की निर्णय प्रक्रिया में भरोसा रखे हैं, जिससे जिले का भविष्य सरकार की नीतियों पर निर्भर है, न कि किसी एक विधायक की इच्छाओं पर।