*बिना इजाजत रैली, “कोठारी कुनबा” कानून के घेरे में…..*
*अभी से ये हाल तो….*
*कानून को ठेंगा*
*सुशील चौहान*
भीलवाड़ा. *विधानसभा चुनाव लड़ने को मजबूर किए गए* निर्दलीय प्रत्याशी कोठारी का पहले प्रोग्राम दुपहिया वाहनों का *रेला* निकालने का था, लेकिन ऐन वक़्त पर रंजिश वश एक मासूम की अकाल मौत को चुनावी रंग देने के लिए निकल गई रैली। उसकी न कोई प्रशासन की सहमति और न ही शुभ चिंतकों की राय ली। बस जो *आजू बाजू* थे। उन्होंने *जोश* भार दिया। कहते है *भोले कोठरी फिर बातों में आ गए* ।निकाल गई रैली वो भी *आक्रोश वाली*। जब कि आक्रोश की तो बात ही नहीं थी। पुलिस ने मामले की *तह* तक जाकर *बाल की खाल* निकालने के बाद *खुलासा* किया कि बच्चे पर हमला किसी भी राजनीतिक दल और निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले के कार्यकर्ता होने का कारण नहीं रहा और आरोपी भी पकड़ लिए। फिर भी *शुभ चिंतक* है कि मानते नहीं,कर दिया *भोले कोठरी* को आगे। अब जब पुलिस ईमानदारी से जांच कर रही है तो नतीज़ा तो आना ही था। आ गया कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज हो गई है।बिना इजाजत रैली की।
जिला मजिस्ट्रेट आशीष मोदी के स्पष्ट निर्देश हैं कि जिले में धारा 144 लागू हैं। इसके बाद भी निर्दलीय कोठरी के नए नए *सलाहकार* बने लोगों ने *आव देखा ना ताव* और फिर रख दी कोठरी के कंधे पर बंदूक रखकर और यह सोच कर चला दी कि यह मामला *तोप* का काम करेगी, लेकिन उनका यह *तीर* जहां लगना था वहां नहीं लगा।उल्टे इन पर ही चल गया। ठीक वैसा ही जैसा दीपावली पर कोई बच्चा *राकेट* चलाता हैं और वो आकाश की ओर जाने की बजाय उस पर आ जाता हैं और वो जल जाता हैं। ऐसा ही हुआ धरना प्रदर्शन करने वालों के साथ।
अभी तो राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई।और *सिर मुडवाते ही ओले* पड़ गए।
कोतवाली थानाधिकारी दिनेश कुमार ने अधिकृत पुलिस अधिकारी की पूर्वानुमति के बिना चित्रकूट धाम से रैली निकाल कंट्रोल रूम के सामने धरने पर बैठे गए। यह सोचकर कि उनके हाथ चुनाव जीतने की *संजीवनी बूटी* लग गई हैं ।सलाहकारों ने ना आगे की सोची ना पीछे की। कोतवाली थानाधिकारी दिनेश कुमार ने निर्दलीय प्रत्याशी अशोक कोठरी, भाजपा में रहकर *पहचान* पाने वाले (अब भाजपा से निष्कासित) लक्ष्मी नारायण डाड,लादू लाल तेली और गणेश प्रजापत, विजय ओझा, राजेन्द्र पोखरना, विश्वबंधु सिंह व अन्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 283,188और143 में मामला दर्ज कर जांच थानेदार मदनलाल को सौंप दी हैं।
परसों रात कुछ युवकों द्वारा एक नाबालिग बच्चे की हत्या करने का कृत्य निंदनीय हैं। मुझे उसके परिवार के प्रति पूरी संवेदना हैं। आपसी रंजिश के चलते हुई घटना को राजनैतिक रंग देने का प्रयास निंदनीय हैं। इस हत्या प्रकरण की निन्दा होनी चाहिए।
शहर में चर्चा हैं कि भोले कोठरी के *चिलगोजों* का अभी यह हाल हैं तो बाद में जाने क्या होगा? लोग तो एक कहावत कह रहें हैं *पूतों के पैर पालने में नजर आ रहें हैं*।
*स्वतंत्र पत्रकार*
*पूर्व उप सम्पादक, राजस्थान पत्रिका, भीलवाड़ा*
*वरिष्ठ उपाध्यक्ष, प्रेस क्लब, भीलवाड़ा*
*Sushil Chouhan [email protected]*