*कैसे कायम होगा सुशासन जब अपराधी होंगे बैखौफ ओर आमजन में होगी दहशत*
*बढ़ते अपराधों पर लगाम के लिए कायम करना होगा पुलिस का इकबाल,हम सभी को होना पड़ेगा जागरूक*
*निलेश कांठेड़*
कभी समय था जब अपराधियों में पुलिस का खौफ इस कदर होता था कि थाने के आसपास से निकलने से भी कतराते थे ओर राजनेता भी अपराधियों को संरक्षण देने का हौंसला इमेज खराब होने के डर से नहीं जुटा पाते थे। अब समय बदल चुका है नारे सुशासन के लगाए जा रहे पर हालात अपराधियों में कानून का भय खत्म हो जाने के बन गए है। थानों के बाहर भले अब भी बड़े-बड़े अक्षरों में आमजन में विश्वास ओर अपराधियों में भय जैसे स्लोगन अंकित हो लेकिन राजस्थान जैसे राज्य की ही बात करे तो हकीकत के धरातल पर हालात ये बन गए है कि आमजन पीड़ित होने पर भी यथासंभव थाने में जाने से भी हिचकता है ओर अपराधियों व बदमाशों को सूनसान इलाके तो दूर की बात दिनदहाड़े थाने के बाहर भी अपराध करने में डर नहीं लगता। अपराधियों के इसी बेखौफ होने का एक बड़ा उदाहरण वस्त्रनगरी भीलवाड़ा में 15 जुलाई की रात एक पेंट व्यवसायी आदित्य जैन को व्यस्ततम क्षेत्र से रात 9 बजे के आसपास ही पिस्टल ओर चाकू की नोक पर अपहरण कर 45 लाख की फिरौती मांग लेने की घटना है। इस घटना में भले अपराधियों के आईटी तकनीक की दृष्टि से अधिक शातिर नहीं होने के कारण पुलिस के हाथ जल्द ही उनके गिरहबान तक पहुंच गए ओर व्यवसायी को बिना फिरौती मुक्त करा लिया गया हो लेकिन ये घटना बताती है कि अपराधियों के मन से पुलिस का खौफ किस तरह खत्म हो चुका है। पुलिस को अपहरण की इस घटना का राजफाश करने की बधाई तो दी जा सकती लेकिन सोचने की बात यह है कि जब व्यस्ततम मार्ग पर रात 9 बजे भी सुरक्षित नहीं होंगे तो देर रात सूनसान क्षेत्र में क्या होगा। भीलवाड़ा में अपराधियों के मन से खाकी वर्दी का खौफ खत्म होने की घटनाएं निरन्तर हो रही है। भीलवाड़ा ही नहीं समूचे राजस्थान में ऐसे ही हालात नजर आते है। ये हालात कोई एक-दो माह में नहीं बने इसलिए राजनीतिक दृष्टि से अपराधियों के पनपने ओर अपराध बढ़ने के लिए भाजपा की वर्तमान सरकार के साथ कांग्रेस की पिछली सरकार भी कम जिम्मेदार नहीं है। दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल इस मामले में एक जैसे नजर आते है। अपराधियों को संरक्षण देने ओर पुलिस पर अनावश्यक दबाव बनाने की राजनेताओं की प्रवृति भी अपराधियों के बेलगाम होने का एक बड़ा कारण है। कई बार ऐसे भी नजारे देखने में आते है कि नफरी की कमी से जूझ रहे पुलिस महकमे का बड़ा हिस्सा नेताओं ओर अफसरों की आवभगत व गैर पुलिसिया कामों में ही उलझकर रह जाता ओर अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए संसाधन ही उपलब्ध नहीं हो पाते। पुलिस की पहली प्राथमिकता बिना सिफारिशी वाहन चालकों की गाड़ियों में कमियां निकाल चालान काटने से पहले अपराधियों के नापाक मंसूबों को विफल करना ओर उनके मन में अपराध करने से पहले ही दहशत बिठाना है। अपराध करने के बाद पकड़ने से महत्वपूर्ण कानून का वह डर है कि अपराधी गलत कार्य करने की हिम्मत ही ना करे। राजस्थान में राज बदलने के बाद सुशासन देने का दावा करने वाली भाजपा की भजनलाल सरकार के समक्ष भी ये चैलेंज है कि वह आमजन में पुलिस की निरन्तर बिगड़ती छवि को कैसे सुधार पाती है। अभी तो हालात यह है कि लोग पीड़ित होने पर भी बहुत मजबूरी नहीं होने तक पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने तक से कतराते है ओर बाहरी स्तर पर ही मामले निपटाने का जुगाड़ करते है। लोगों को लगता है पुलिस थाने में कोई मामला ले जाना ऐसा चक्रव्यूह है जिसमें प्रवेश का मार्ग तो आसान है लेकिन बाहर निकलना अत्यंत दुष्कर है। पुलिस की इस बिगड़ी इमेज के लिए सत्ता में रहने वाले वहीं राजनेता सर्वाधिक जिम्मेदार है जो सब कुछ जानते हुए भी अपने स्वार्थो के लिए दोषियों को बचाने में विश्वास करते है। निरन्तर बदतर हो रहे हालात के बावजूद यहीं नहीं कह सकते है कि पूरा पुलिस महकमा नकारा या अपराधियों से मिला हुआ है अब भी कई ‘सिंघम’ जैसे पुलिस अधिकारी ओर पुलिसकर्मी है जो अपराधियों की गर्दन नाप उनमें दहशत उत्पन्न करना चाहते है ओर आमजन को राहत दिलाना चाहते है लेकिन इसके लिए राजनेताओं को उन्हें फ्रीहैण्ड देना होगा ओर पार्टी कार्यकर्ता,
धर्म या समाज के नाम पर अपराधियों को संरक्षण देने की मानसिकता त्यागनी होगी। पुलिस की समस्याओं का समाधान भी करना होगा ओर शहरी क्षेत्रों का जिस तेजी से विस्तार हो रहा उस अनुपात में नफरी व संसाधन भी उपलब्ध कराने होंगे। नेताओं को भी सोचना होगा कि जिन अपराधियों को वह आज अपने स्वार्थो के लिए पनपा रहे वह भविष्य में बेखौफ होकर कभी उनका भी ‘शिकार’ कर सकते है। ऐसे अपराधी राजनेताओं के लिए भस्मासुर बने उससे पहले ही उनका खात्मा करने के लिए उन्हें पुलिस का सहयोग करना चाहिए। पुलिस के निर्भिक अधिकारियों को भी अपराधियों को बचाने की पैरेवी करने वाले नेताओं के दबाव में आने के बजाय पारम्परिक ओर सोशल मीडिया के माध्यम से उनके चेहरे बेनकाब करने होंगे ताकि आमजन इन सफेदपोशों को पहचान उनको वोट की चोट के माध्यम से सबक सिखाने की सोच सके। इधर, पुलिस की अपनी सीमाएं होने हम सभी को भी जागरूक होना पड़ेगा और किसी को संकट में देखे तो तमाशबीन बनने या मोबाइल निकाल रील बनाने से पहले सहायता के लिए हाथ आगे बढ़ाने पड़ेंगे। हम एक दूसरे की सहायता की भावना रखेगे तो भी अपराधी दिनदहाड़े अपराध करने की हिम्मत आसानी से नहीं जुटा पाएंगे।
*स्वतंत्र पत्रकार एवं विश्लेषक*
पूर्व चीफ रिपोर्टर,राजस्थान पत्रिका, भीलवाड़ा