मौन में भरपूर शक्ति होती है,,,,
साध्वी प्रसन्न यशा
गंगापुर
(रिपोर्टर दिनेश लक्षकार)
मौन में जितनी ताकत होती है उतनी बोलने में नहीं, क्योंकि जितना समय व्यक्ति मौन रखता है उसकी शक्ति का संचयन हो जाता है। शक्ति का संचरण भीतर की ओर हो तो बहुत कुछ अकल्पित घटित हो सकता है।
शक्ति का जागरण हो परंतु उसका सम्यक नियोजन आवश्यक है तथा शक्ति का उद्धवारोहण हो उसका अधोगमन ना हो तभी सार्थकता है । तीर्थंकर जब तक सर्वज्ञता प्राप्त नहीं करते तब तक मौन रखते थे ,जब सर्वज्ञ बन जाते तो ज्ञान के प्रसाद को जन जन तक वितरित करना प्रारंभ करते। इसीलिए वह वाणी लोगों के अंतर्मन को छू पाति।
उपयुक्त विचार साध्वी श्री प्रसन्न यशा ने पर्यूषण पर्व के चतुर्थ दिवस वाणी संयम दिवस के अवसर पर बोलते हुए स्थानीय कालू कल्याण कुंज में उपस्थित धर्म परिषद के समक्ष व्यक्त किए।
वाणी संयम दिवस की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए साध्वी क्षिती प्रभा ने कहा कि इस संसार में सर्वथा मौन रखना संभव नहीं है ।हर व्यक्ति को व्यवहार हेतु वाणी की आवश्यकता होती है ।अब यह उसके विवेक पर निर्भर करता है उसे क्या बोलना चाहिए, कैसे बोलना चाहिए, कब बोलना चाहिए। यदि वाणी से शब्दों का चयन सही हो तो व्यक्ति अपनत्व से जुड़ जाता है इसके अभाव में महाभारत शुरू होने में देर नहीं लगती।
महाभारत काल में द्रोपदी के वाणी के अविवेक के कारण ही इतना बड़ा महायुद्ध झेलना पड़ा जिससे हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। वाणी से ही व्यक्तित्व की पहचान होती है इसीलिए व्यक्ति की वाणी मित्तभाषी हो, मधुभाषी हो तथा सत्यभाषी हो, वही व्यक्ति लोगों के हृदय में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो सकता है।