*बदलती तकनीक नए युग के पत्रकारों की संहयोगी है दुश्मन नही*
*तकनीक एवम MSME के कारण गांव गांव में बन गए पत्रकार-खबर के लिए नही करना पड़ता सुबह का इंतजार*
*केकडी 18 नवंबर
*आज का दौर पूरी तरह बदल चुका है। सोशल मीडिया, फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम के इस युग में, खबरें अब पल भर में लोगों तक पहुंचती हैं।*
*पारंपरिक पत्रकारिता पर असर:-*
*इस डिजिटल युग ने पत्रकारिता के* *उस मूल स्वरूप को हिलाकर रख दिया है, जिसे कभी सूचना का सबसे* *विश्वसनीय स्रोत माना जाता था।* *आज, यदि कोई पत्रकार या मीडिया हाउस तकनीक और समय की इस तेज़ दौड़ के अनुसार नहीं चलता तो उसका पीछे छूटना तय है। बड़े-बड़े नामचीन पत्रकार जिन्हें कभी आदर्श माना जाता था आज संघर्ष करते नजर आते हैं।*
*अच्छे-अच्छे सिकंदर कब्र में दफन हो जाते है* *चाहे कितने ही बड़े पत्रकार या मीडिया संस्थान क्यों न हों यदि वे इस दौर की बदलती तकनीक और जनमानस की जरूरतों को नहीं समझते तो उनका अस्तित्व खतरे में है। अब कोई खबर खबर नहीं रहती बल्कि वह वायरल हो जाती है। यह दौर त्वरित टिप्पणी का है जहां हर कोई पहले मैं की दौड़ में शामिल है।*
*युवा पीढ़ी के पास अब समय नहीं है कि वे किसी पत्रकार के कार्यालय में जाएं और उनसे खबरें साझा करें। वे खुद सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बात रखते हैं। यह एक नई चुनौती है जिसे पारंपरिक मीडिया को समझना और स्वीकार करना होगा।*
*क्या पत्रकारिता का भविष्य खतरे में है?:-*
*यह बदलाव की मांग करता है। पत्रकारों को यह समझना होगा कि अब उन्हें सिर्फ खबरें देने वाले नहीं बल्कि विश्वसनीयता और तथ्यात्मकता के प्रहरी बनना है। उन्हें सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपनी ताकत एवम अनन्य सहयोगी के रूप में करना होगा न कि इसे खतरे के रूप में देखना चाहिए।*
*इस युग में जो समय और तकनीक के साथ कदमताल करेगा, वही टिकेगा। बड़े-बड़े सिकंदर तभी ज़िंदा रहेंगे जब वे इस डिजिटल दौर की भाषा बोलेंगे। यह समय है पारंपरिक और आधुनिक पत्रकारिता के बीच तालमेल बैठाने का ताकि खबरें न सिर्फ तेजी से पहुंचें चाटुकारिता का जमाना गया। बल्कि सच्चाई और विश्वसनीयता भी बनी रहे।*
*हाँ बदलती तकनीक ने चाटुकारिता और सलाम के शौकीन पत्रकारों के अरमानों पर जरूर पानी फेर दिया है और वे तिलमिलाकर रह गए और अपनी सारी खीझ वाट्सप पर उतारने से बाज नही आ रहे।उसका प्रमुख कारण है उनकी स्वयंभुवादिता का अस्ताचल की और जाना और बदलते परिवेश में कब्र में दफन हो चुके पत्रकारों का कब्र फाड़कर बाहर आना उनका हाजमा बिगाड़ रहे है।*
*वाट्सअप को कोसने वाले दो मुंही दम्बी से कम नही क्योंकि एक और ये वाट्सअप को कोसते है तो दूसरी और खुद वाट्सअप चलाते है ये तो वही हुवा ना कि लोमड़ी के अंगूर हाथ नही लगे तो खट्टे है!*
*ऐसे लोगो को मेरी नेक सलाह है कि पहले वो खुद अपने आप को सोसियल मीडिया के सभी प्लेटफॉर्म से हटाए फिर उपदेश दे!वो जो अभी उपदेश झाड़ रहे है वह भी नई तकनीक से वायरल होते है ये वो भूल बैठे और कालिदास बन उसी शाख को काटने की कुचेस्टा कर रहे* *जिस पर आज वो खुद बैठे है।*