*”भाव से भगवान को भजने से बेड़ा पार हो जाता है”* -दिग्विजय राम महाराज
श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का दितीय दिवस
✍️ *मोनू नामदेव।द वॉयस ऑफ राजस्थान 9667171141*
भीलवाड़ा 23 दिसंबर
भक्ति हमेशा भाव से होती है हाथ पैर या आंखों से नहीं जन्म चक्षुऔ से भगवान के दर्शन नहीं होते हैं दर्शन तो अंतर चक्षुऔ से होते है भगवान तो भाव के भूखे हैं, प्रभु से यदि कुछ मांगना है तो संसार की तुच्छ वस्तुएं ने मांग कर प्रभु की भक्ति मांगना चाहिए, संसार में जब हजार हाथ देने वाला है तो दो हाथ वाला कितना समेट पाएगा, व्यक्ति को भोजन हमेशा मात्रा में करना चाहिए और भजन की कोई मात्रा नहीं होती क्योंकि भजन शब्द में मात्र है ही नहीं l व्यक्ति के घर में जब कोई विशेष अवसर आता है तो सर्वप्रथम व्यक्ति भक्ति छोड़ देता है, संसार में भगवान किसी को कष्ट नहीं देता सब अपने प्रारब्ध अनुसार फल भोगते हैं जीवन में सुख-दुख का कर्म बना रहता है,जीवन में सुख है तो दुख आएगा और दुख है तो सुख आएगा अतः व्यक्ति को भक्ति मार्ग का मार्ग नहीं छोड़ना चाहिए l. व्यक्ति के जीवन में भक्ति का मंगलाचरण कब होता है ? भगवान की कथा में रुचि होने पर, तीर्थों के दर्शन करने पर, गुरु वंदन करने पर भक्ति प्राप्त होती हैं, तीर्थ स्थान जब पर्यटन में बदल जाते हैं तब संसार में प्रलय आता है तीर्थ करने का अर्थ होता है उसे देवभूमि से आप कितना लाभ अपने अतः मन में उतार रहे हैं यही तीर्थाटन है संत घर बैठे व्यक्ति को तीर्थो का लाभ देते हैं ,तीर्थ स्थान पर अधिक से अधिक सेवा करना चाहिए ,संतों का सत्संग भक्ति का प्रथम मंगलाचरण हैl यह बात श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के द्वितीय दिवस पर दिग्विजय राम जी महाराज ने गंगापुर में लक्ष्मी बाजार में आयोजित राधा कृष्ण वाटिका में कहीं
मीडिया प्रभारी महावीर समदानी में जानकारी देते हुए बताया कि कथा के पूर्व नाथू लाल मुन्दडा ,मुकेश डाड,रतन, गोपाल, राजेश, राकेश मूंदड़ा ने सपत्नीक भागवत जी की आरती की,
कथा के दौरान दिग्विजय राम महाराज ने बताया कि संतों का जब साथ होता है तब स्वतः ही व्यक्ति की रुचि कथा में बढ़ जाती है l जीवन में गुरु चार प्रकार से कृपा करते हैं स्मरण कृपा दूसरा शब्द कृपा तीसरा दृष्टि कृपा चौथा स्पर्श कृपा l गुरु की कृपा से ही भक्ति प्राप्त होती है और संसार में सब कुछ सरलता से मिल जाता है परंतु संत कृपा बड़ी दुर्लभ है व्यक्ति को सद्गुरु कृपा तभी प्राप्त होती है जब व्यक्ति के पुण्य बढ़ते हैं l भक्ति दो प्रकार की होती है से प्रथम अहेतु दूसरा अर्प्रतिहता जीवन में कल्याण का मार्ग भक्ति है भक्ति अहेतु होनी चाहिए भगवान से कभी कुछ मांगने नहीं जाना चाहिए जब इंसान का स्वार्थ सिद्ध नहीं होता तो वह परमात्मा की सर्वोत्तम सत्ता को भी नकार देता है इंसान इतना स्वार्थी हैl प्रभु से प्रेम करो प्रभु के प्रति समर्पण भाव रखो ,व्यक्ति को चिंता नहीं चिंतन करना चाहिए चिंतन करने से चिंता स्वतः समाप्त हो जाती हैंl अप्रतिहता भक्ति:- कभी-कभी व्यक्ति को भक्ति के दौरान बहुत कुछ सहना पड़ता है कभी-कभी भूखा रहना पड़ता है लोगों के ताने भी सहन करने पड़ते हैं बहुत कष्ट सहने पड़ते हैं, मीरा का उदाहरण सामने है मीरा ने भगवान से कभी कुछ नहीं मांगा केवल चरणों की भक्ति ही मांगी थी l व्यक्ति को परमपिता परमात्मा के सामने कभी कुछ नहीं मांगना चाहिए उसको सब पता है कि किस क्या चाहिए केवल ईश्वर चरणों की भक्ति मांगना चाहिए ताकि व्यक्ति का कल्याण हो सके भगवान की कृपा जब होती है तब व्यक्ति को सब कुछ स्वतः ही मिल जाता हैl भगवान के अवतार का प्रयोजन धर्म को बचाना था धर्म को बचाने के लिए प्रभु बार-बार अवतार लेते हैl वल्लभाचार्य जी से एक भक्त प्रश्न करता है कि इस संसार में श्रेष्ठ कौन है वल्लभाचार्य जी कहते हैं हरी श्रेष्ठ है पुन: भक्त प्रश्न करता है कि हरि से श्रेष्ठ किया है तो वल्लभाचार्य जी कहते हैं कि हरी से भी श्रेष्ठ हरि का नाम है पुनः भक्त पूछता की हरि नाम से भी श्रेष्ठ किया है तो वल्लभाचार्य जी कहते हैं हरि नाम से भी श्रेष्ठ संत प्रसादी है पुन:प्रश्न करता है कि संत प्रसादी से किया श्रेष्ठ है?
तो वह वल्लभाचार्य जी कहते हैं कि संत प्रसादी से श्रेष्ठ कुछ भी इस संसार में नहीं हैl अर्थार्त संत प्रसादी का एक कण भी श्रेष्ठ होता हैl संत प्रसादी के कारण दासी पुत्र अगले जन्म में देव ऋषि नारद कहलाये यह है संत प्रसादी की कृपा l जहां पर महाभारत का अंत होता है वहीं से भागवत का मंगलाचरण होता है जो अपना नहीं है उसे प्राप्त करना महाभारत है और जो अपना है उसे भी त्याग दे वह भागवत हैंl जीवन में रामायण जीना सिखाती है और भागवत मरना l संसार बंदर की संतान नहीं है बल्कि मनु और शतरूपा की संतान है l आज के कथा प्रसंग में नारद मुनि के पूर्व जन्म की कथा एवं उत्तरा के गर्भ से राजा परीक्षित के जन्म, व ध्रुव चरित्र के बारे में बताया गया