*हार का बदला हार…*
*अब देखो “थप्पड़ की गूंज” कहां तक सुनाई देगी?*
*सुशील चौहान*
भीलवाड़ा. चुनावी माहौल है। सभी अपनी *गोटियां सेट* करने में व्यस्त है। *कमल* जीत *बरकरार* रखने की *जिद* में है तो *हाथ* इतिहास बदलने की *जिद* कर चुका हैं। इसी लक्ष्य के साथ दोनों ही दल के उम्मीदवार रात दिन एक कर रहे है। लेकिन इस बार जो सीन है जो बहुत अलग है। *हाथ का मजबूत* या यूं कहे *मजबूर* उम्मीदवार अपने पुराने कामों को लेकर मैदान मैं है। मगर *सारथी की कमी अखर* रही है। उधर *कमल* तो वैसे भी *मोदी जी* के *सहारे* हैं ।लेकिन टिकट बंटवारे के बाद बने सीन ने सभी को सोचने पर विवश किया हुआ हैं। *कमल को कुचल* कर शहर विधायक बने *कोठारी जी और उनकी चौकड़ी* भले ही उसी कमल की पार्टी में प्रवेश पाने में कामयाब हो चुके हों पर कोई *haajmola(हाजमोला)* गोली उनको *पचा* ही नहीं पा रही।
गोली तो एक्सपायर डेट की हो सकती हैं। मगर अब तो *थप्पड़ की गूंज* सुनाई दे रही हैं। यह थप्पड़ की गूंज कितनी दूर *तलक* गूंजेगी। यह चार जून को ही पता चलेगा?
कल शुक्रवार की रात को भाजपा कार्यालय में जो कुछ हुआ वो ना तो अनुशासित पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए ठीक था और ना ही *मन्नतें* कर फिर भगवा गले में डालने वालों के लिए उचित। क्योंकि नसों में बरसों से भगवा समाया हुआ हैं। हां विधायक जी जरा अलग हैं। क्योंकि कहते तो वो यही हैं कि मैं तो शुरू से *नेकरधारी* हूं और हम *मोदी परिवार* के ही हैं। लेकिन कल जो विधायक जी के *अपने* ने किया वो शायद ठीक नहीं था। उस पर *दादा* के अपनों ने *कर्मा फिल्म* की याद दिला दी। यानी *डाक्टर डेन* के थप्पड़ जड़ दिया। बस फिर क्या था दोनों ओर से कार्यकर्ता उखड़ गए। यह तो स्थानीय संगठन ने उन्हें रोककर फजीहत होने से रोक लिया वरना कुर्सियां तो उठ ही गई थी। अब देखना हैं यह थप्पड़ की गूंज कितनी गूंजती हैं।
चुनाव के लिए *स्वयं भू मेवाड़ के मोदी* ने अपने गले में तीन माह पहले *रोलर से कमल* कुचलने वालों को *जीत का मोहरा यानी हीरों का हार* समझ कर अपने गले में धारण किया। वो स्वयं भू मोदी के गले और सीने पर अच्छे लग रहें हैं लेकिन उनको चूभ रहें हैं जो *स्वयं भू* के गले मिल रहें।
अब विधायक जी एक ही राग अलाप रहें *हम तुम्हारे हैं तुम्हारे…* वो उनकी चौकड़ी सोच रही हैं कि आजाद चौक में भगवा गले में पड़ गया तो अब पार्टी के हो गए। लेकिन विधायक जी आपके गले में कमल के फ़ूल वाला भगवा नहीं केवल भगवा रंग वाला दुपट्टा ही डाला हैं। अब कितने भी जतन कर लो। पांच साल के लिए आपके *माथे पर निर्दलीय का टेक* लग गया है। जो सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हैं और रहेगा। अब कितना भी कहो *हम बने, तुम बने इक दूजे के लिए*
कहलाओगे तो *निर्दलीय* ही। आपके साथ जो चौकड़ी थी और हैं। उनको तो पार्टी ने *फर्श से अर्श* तक पहुंचाया था । उसके बाद भी जब वो भगवा के नहीं हुए तो क्या गारंटी वो आपके ही रहेंगे। क्योंकि आज कल तो केवल एक की ही *गारंटी* देश में मान्य हैं।
अब थोड़ा उन पर भी नजरें इनायत करें जो चुनावी मैदान में हैं । हाथ वाला मजबूत तो हैं लेकिन मजबूरी में आ गए। पिछली बार जब आए और भागीरथ का खिताब लिया जो इस चुनाव का प्रमुख मुद्दा हैं। लेकिन पिछली बार उनके चुनावी रथ का जो *सारथी* बना वो इस बार उनका सारथी नहीं हैं। क्योंकि सारथी को पता नहीं था *राजनैतिक गुरु* आएंगे। कुछ दिन पहले सारथी ने अपने गले में भगवा डाल लिया। क्योंकि स्वयं भू को पता था यह सारथी उनके रथ को अच्छी तरह चलाएंगे। इस कारण आज कल स्वयं भू मोदी अपनों को छोड़ चार दिन पहले आए को लेकर घूम रहें हैं, लेकिन उन्होंने शायद राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म *प्रेम रत्न धन पायो* नहीं देखी। उसमें राजकुमार का सारथी बीच रास्ते में *बग्गी* की लगाम छोड़कर कूद गया। अब आगे आप जानो स्वयं भूं जी?
अब एक *भागीरथ* बनकर मैदान में दांव लगा रहें हैं तो दूसरी तरफ *स्वयं भू* अपने को मोदी मानकर मैदान में *अपनों पर कम और गैरों* के भरोसे पर राजधानी की राह पकड़ने की तैयारी में हैं।
*स्वतंत्र पत्रकार*
*पूर्व उप सम्पादक, राजस्थान पत्रिका, भीलवाड़ा*
*वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रेस क्लब,भीलवाड़ा*
हार का बदला हार…* *अब देखो “थप्पड़ की गूंज” कहां तक सुनाई देगी
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