आत्मा के निखार का पर्व -संवत्सरी,,, साध्वी प्रसन्न यशा
( गंगापुर के कालुगुणी में धर्म सभा आयोजित)
गंगापुर
( रिपोर्टर
दिनेश लक्षकार)
जैन मत में अपने को देखने का पर्व है पर्यूषण,यही वह काल है जब व्यक्ति अपने भीतर झांकता है तथा अपने भीतर छिपी कलुषिता को बाहर निकालने का प्रयत्न करता है। संवत्सरी इसका श्रेष्ठ दिन है। इस दिन व्यक्ति सभी बाह्य आडंबर से मुक्त होकर सिर्फ आत्म दर्शन करता है तथा समस्त जीव योनियों से अपने द्वारा कृत समस्त भूलो और गलतियों के लिए क्षमा याचना करता है। जिससे वह पूर्णतया निर्मल बन जाता है। यही आत्मा से परमात्मा का सफर होता है। उक्त विचार साध्वी प्रसन्न यशा ने संवत्सरी महापर्व के अवसर पर उपस्थित विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कालू कल्याण कुंज में व्यक्त किये। साध्वी क्षिति प्रभा ने भगवान महावीर के 11 गंधर्व के बारे में विस्तार से बतलाया और साध्वी माधुरी प्रभा ने जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों को याद किया। संवत्सरी महापर्व जैनों का सबसे बड़ा पर्व है। यह अपने आप में आलोकिक हैं। इस दिन निराहार रहकर उपवास व पोषध कर आत्मा साधना की जाती है। सवेरे सभी से क्षमा याचना कर पारणा किया जाता है ।सांयकाल प्रतिक्रमण के पश्चात सभी श्रावकों ने आपस में क्षमा याचना की । कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएं मौजूद थे।