*लड़ाई के बाद मोहब्बत…*
*बात कुछ हज़म नहीं हुई*
*सुशील चौहान*
भीलवाड़ा. बहुत पुराना प्रसिद्ध गाना है *हमीं से मोहब्बत, हमीं से लड़ाई*। ये गीत अपने जमाने में बहुत ही चर्चित रहा। लेकिन यहां की *राजनीति* इस *गाने को उल्टा चला रही है*। जिसमें कहा जा रहा है कि *हमीं से लड़ाई और “अब दिखावे की मोहब्बत”*.। ये *शातिर कला* क्या कहलाती है। अब मुद्दे की बात तो विधानसभा चुनाव में *कमल* को *कुचलने में कामयाब रहे* भाजपा से निकाले गए *तेली साब* की है। चुनाव के समय *भाजपा को हार का सेहरा* पहनाने में *मुख्य किरदार रहे “तेली साब”* इन दिनों उसी भाजपा के *कमल* को *दीवारों पर रंग* कर पार्टी में घुसने के प्रयास में है। क्योंकि बिना पार्टी के उनकी हालत ठीक *जल बिन मछली* जैसी हो गई हैं।
जिले के अधिकारियों व अन्य लोगों की नजर में जो कमल के कारण तेली साब का जलवा था वो इज्जत अब इन्हें और पार्टी से निकाले गए लोगों को नहीं मिल रही हैं तो इधर उधर हाथ पैर मार रहें हैं कि किसी भी तरह कमल वाले उन्हें गले लगा लें।
चर्चा हैं कि भोले भाले कोठारी जी के कंधे पर बंदूक रखकर येन केन तरीके से पार्टी में घुसने का प्रयास कर रहें हैं। क्योंकि अब इन्हें पता चल गया कि पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ कर जीतने वाले का संवैधानिक रूप से तो वजूद हैं। लेकिन वो बात नहीं हैं जो इन्होने सोचा था। ना पार्टी के लोग इन्हें *घास* डाल रहें हैं और ना ही *प्रशासनिक अमला*। *इनके वजूद की तो उसी दिन हवा निकल* गई। जब मुख्यमंत्री भीलवाड़ा आए। यह जनाब बड़े जोश के साथ मुख्यमंत्री का स्वागत करने के लिए जयपुर के लिए नव निर्वाचित जनप्रतिनिधि जी के साथ एम एल वी कालेज पहुंचे। मुख्यमंत्री के लिए साफे, फूलों की माला लेकर गए कि *हम तो कमल के ही हैं हमें कौन रोकेगा* और जनता के निर्वाचित जनप्रतिनिधि जी के तो हम *दायें बायें* हैं ही। लेकिन इनके अरमानों पर उस समय पानी फिर गया जब प्रशासन ने इन्हें कालेज में घुसने ही नहीं दिया। केवल जनप्रतिनिधि जी को ही जाने दिया। स्वागत के लिए साफे और माला की तरह इनके मन भी मुरझा गए।
अब इन्हें एहसास हो रहा हैं कि पार्टी हैं तो *मै हूं* वरना *मैं* कुछ भी नहीं। क्योंकि यह वो ही कमल हैं जिससे इनकी खुशबू बनी हुई थी। इनकी खुशबू प्रदेश में तो फैलती थी और जिले में भी इनकी *जबरदस्त महक* थी। जो कभी *जिंदल की खानों और सीवरेज के दफ्तर में महकती थी। जबसे कमल से *इन* जनाब ने *परहेज* किया हैं। इन दोनों विभाग वालों को अब *इन जनाब के बदन से “मुरझाए कमल” की बदबू* आती हैं।
इसलिए यह जनाब अब अपने कुछ लोगों के माध्यम से जयपुर से हर आने वाले के सामने राग अलापवा रहें कि *छोड़ो कल की बातें* अब इन जनाब सहित बगावत करने वालों के हाथों में फिर से कमल दे दो क्योंकि इन *इन साब व इनकी चौकड़ी* ने खुद अपने ही राजनीतिक भविष्य पर *एक भगवाधारी* के कहने से *बुलडोजर चलवा* लिया हैं।
इन साब व इनकी चौकड़ी की हालत उस मछली की तरह हो गई हैं जो जल के बिना नहीं रह सकती हैं।
इसलिए इन दिनों यह *भोले भाले व्यापारी जो अब जनता के नुमाइंदे भी हैं के हाथों में दीवारें पोतने का बुश थमाकर उन्हें गली गली ले घूम कर कमल का निशान बनाकर संदेश दे रहें कि *हम तुम्हारे हैं, तुम्हारे सनम*मोहब्बत की हर कसम की है कसम,ना जुदा होंगे हम*।
*स्वतंत्र पत्रकार*
*पूर्व उप सम्पादक, राजस्थान पत्रिका, भीलवाड़ा*
*वरिष्ठ उपाध्यक्ष, प्रेस क्लब, भीलवाड़ा*
*Sushil [email protected]*