भगवान प्राप्ति के लिए नवदा भक्ति श्रेष्ठ -आचार्य शक्ति सिंह महाराज
सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा संपन्न
✍️ *मोनू नामदेव।द वॉयस ऑफ राजस्थान 9667171141*
भीलवाड़ा 24 जुलाई
पुराना शहर माहेश्वरी सभा भीलवाड़ा के तत्वाधान सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ महोत्सव के तहत कथा विश्राम पर आज कथा में आचार्य शक्ति देव महाराज ने रास कथा श्रवण कराई, महाराज ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने जो रासलीला करी वह काम पर विजय प्राप्त करने की लीला है रास का प्रसंग कोई साधारण प्रसंग नहीं है इसके लिए हृदय में भक्ति होनी चाहिए भक्ति नौ प्रकार की होती है जिसे नवधा भक्ति कहते हैं जो व्यक्ति इस नवधा भक्ति को अपने जीवन में धारण करता है उसे ही भगवान मिलते हैं यह जो नवधा भक्ति है इससे पूर्व में किस-किस ने भगवान को पाया
भगवान की प्रथम भक्ति श्रवण भक्ति को करके राजा परीक्षित ने भगवान को प्राप्त किया, दूसरी कीर्तन भक्ति को करके मीराबाई ने भगवान को पाया,तीसरी भक्ति स्मरण भक्ति को करके प्रहलाद जी ने भगवान को प्राप्त किया, भजन करके लक्ष्मी जी ने एवं पूजन करके प्रथू ने भगवान को पाया अक्रूर जी ने वंदना करके एवं हनुमान जी ने दास बनकर के भगवान की सेवा करें अर्जुन ने सखा बनकर एवं राजा बलि ने अपना सब कुछ आत्म निवेदित करके भगवान की भक्ति करी हैं इस प्रकार यह नवधा भक्ति है यह नवधा भक्ति जैसे दही मे से घी निकालने के लिए रई को माध्यम बनाना पड़ता है ऐसे ही भगवान संसार में हर जगह व्याप्त हैं हमारे अंदर भी व्याप्त हैं लेकिन इनको प्रकट करने के लिए हमें भक्ति रूपी रई की आवश्यकता होती है जब हम इस भक्ति रूपी रई से अपने अंदर मंथन करेंगे तो भगवान की अनुभूति हमें अवश्य होगी
सुदामा चरित्र कथा में आज महाराज जी ने बताया कि सुदामा जी ब्रह्म को जानने वाले तपोनिष्ठ ब्राह्मण है
सुदामा जी ने अपने मित्र के हित के लिए दुर्वासा जी के द्वारा शापित चने खाए जिससे उन्हें निर्धन होना पडा सुदामा ने अपने मित्र धर्म का पालन करने के लिए कृष्ण की लिए कितना बड़ा त्याग किया यह सब कुछ जानते हुए भी श्रापित चने खाए है
मीडिया प्रभारी महावीर समदानी ने जानकारी देते हुए बताया कि कथा में पंचमुखी दरबार के महंत श्री लक्ष्मण दास जी महाराज का आशीर्वाद भी मिला, उनका सभा के सदस्यों ने स्वागत अभिनंदन किया
कथा में महाराज ने कथा के दौरान भक्तों को बताया कि दत्तात्रेय जी के 24 गुरुओं के बारे में जानकारी दी एवं जीवन में गुरु बनाना अति आवश्यक है गुरु मंत्र जब हम लेते हैं तभी हमारा कल्याण होता है तभी जीवन सार्थक है मंत्र जो गुरु हमें देते हैं वही पुस्तक में भी लिखा होता है लेकिन दोनों में अंतर होता है जैसे कोई व्यक्ति गुनाह करके अदालत में पहुंचे तो नीचे खड़े हुए कितने भी लोग कहें कि वह बेगुनाह है फिर भी उनकी बात नहीं सुनी जाएगी लेकिन यदि गद्दी पर बैठा हुआ जज केवल एक बार बोल दे तो उसकी बात मानी जाएगी क्योंकि वह पद के प्रभाव से बोलता है इसी प्रकार गुरु हमें जो मंत्र देते हैं उसका पुरुश्चरण करते हैं उसको जागृत करते हैं और तपके प्रभाव से मंत्र को हमें देते हैं इसलिए वह गुरु मंत्र प्रभावशाली रहता है जीवन में प्रत्येक व्यक्ति को गुरु अवश्य बनाना चाहिए बिना गुरु के कल्याण नहीं होता है गुरु की महिमा बड़ी अलौकिक है गु का मतलब होता है अंधकार रु यानी प्रकाश जो अज्ञान रूपी अंधकार से निकाल कर ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर लेकर जाए वह गुरु है, आज की कथा में राजा परीक्षित के मोक्ष की कथा श्रवण कराई तक्षक सर्प ने आकर के राजा को डंसा, यह तक्षक कोई और नहीं स्वयं काल ही तक्षक है जो एक दिन हमें और आपको प्रत्येक प्राणी को डसेगा इसलिए अपना कल्याण चाहने वाले को भागवत जी की शरण में आना चाहिए भगवान की शरण में आना चाहिए भगवान के नाम संकीर्तन मात्र से सभी पापो का नाश होता है और जिनको किए गए प्रणाम जीव मात्र के सभी कष्टों को नष्ट करते हैं
कथा में भागवत जी की आरती में प्रदेश अध्यक्ष राधेश्याम चेचानी, प्रहलाद लढ्ड़ा, दीनदयाल मारू, देवेंद्र सोमानी, सत्यनारायण सोमानी ,ओ पी हिंगड़, दिनेश काबरा ,कैलाश तोतला, कृष्ण गोपाल जागेटिया, प्रकाश पोरवाल, पंकज पोरवाल, पुराना शहर माहेश्वरी महिला मंडल की पदाधिकारी
सहित सैकड़ोंजन उपस्थित थे